नोटबंदी - क्यों जरुरी, इतना विरोध क्यों और लाभ
हम नोट बंदी की संक्षेप मे बात करेंगे । 1- क्यों किया गया , 2- इतना विरोध क्यों हैं ? 3- क्या लाभ हैं ?
जरा ध्यान से पढ़ें ये पोस्ट,
बोल रहा हूँ न आने वाले समय में बड़ा धमाका होगा।
प्रोपगेंडा के आज के युग का सबसे कारगर राजनितिक हथियार इसलिये मेरे कुछ
विशेषज्ञ दोस्तों ने एक रिपोर्ट तैयार की हैं ,इसमें एक राज्य के इनकम
टैक्स प्रमुख , एक कम्पनी के जोनल मैनेजर , लंदन से TCS के इंजीनियर , अर्थ
शास्त्र के प्रोफेसर , sbi के मैनेजर हैं ,पत्रकार और मै लेखक हूँ। ,
हम नोट बंदी की संक्षेप मे बात करेंगे ।
1- क्यों किया गया ,
2- इतना विरोध क्यों हैं ?
3- क्या लाभ हैं ?
1- मोदी सरकार जिस समय आई उस समय रिज़र्व बैंक प्रमुख रघुराजन थे , सरकार
ने रिज़र्व से कहा आप रेपो दर कम कर दीजिये , रघुराजन इसके लिये तैयार ने
नही थे , कारण पूछने पर उन्होंने ने एक रिपोर्ट भेज दी , गलती कहिये या
काँग्रेसी सरकार समझकर उन्होंने ऐसा किया , उस रिपोर्ट मे था की भारत 86 %
मुद्रा जो 1000 , 500 की नोट हैं , लगभग 50% चलन (circulation) मे नही
हैं , मतलब इतनी मुद्रा दबी हैं , सरकार के कान खड़े हो गये ,
इसी समय 2 राजनितिक घटनाएं हुई , पहली कश्मीर मे उपद्रव , दूसरा तमिलनाडु मे चुनाव ,
कश्मीर मे जो उपद्रव हुये इंटिलिजेंस ने रिपोर्ट दी कालाधन इसके पीछे हैं ,
पहले सरकार ने अलगावादी नेताओ के खाते को रोका गया लेकिन बात नही बनी ,।
तमिलनाडु के चुनाव मे करुणानिधि की पार्टी DMK चुनाव जीत रही थी , लेकिन
रातो रात पुरे तमिलनाडु मे पैसे और उपहार बाटे गये जो कालाधन था और जयललिता
चुनाव जीत गई ,
रामचन्द्र शेखर RTI कार्यकर्ता उन्होंने ने 150 फ़ाइल चुनाव आयोग को भेजी लेकिन कुछ नहीं हुआ , कहते हैं बंगाल मे भी यही हुआ था ,
उत्तर प्रदेश मे भी यही होने वाला हैं,
सरकार ने उसी समय रघुराजन से 500 और 1000 नोट बदलने की व्यवस्था करने को कहा लेकिन वो तैयार नही थे रघुराजन व्यवस्था पर जो दे रहे थे ,, बहुत से लोग रघुराजन को योग्य मानते हैं लेकिन जिस मौद्रिक नीति के उनको जाना जाता उसके बनाने वाले वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल थे , सरकार ने रघुराजन को हटा दिया और नोटबन्दी की व्यवस्था के लिये कहा , इस पुरे अभियान की सफलता गोपिनीयता पर निर्भर थी ,
2- विरोध क्यों हैं , एक तो विरोध वो हैं जिन्होंने ने कसम खाई हैं ,
लेकिन नेताओं का विरोध क्यों हैं , यही इस अभियान की सफलता हैं ,
नही तो नोटे तो पहले भी बदली गई हैं, जनसमर्थन के बाद भी नेता आत्महत्या पर क्यों तुले हैं ?
उसकी वजह हैं ब्यूरोक्रेसी ?
नेताओं के पास सारा पैसा ब्यूरोक्रेसी के रास्ते आता है , जितने कालाधन के
धंधे होते हैं उसमे ब्यूरोक्रेसी संलिप्त हैं , इसमें बैंक अधिकारी ,
प्रशासनिक अधिकारी , इनकम टैक्स अधिकारी , ये बड़े- बड़े व्यापरियो , उधोगपति
से सेटलमेंट करते हैं कुछ नेताओं के पास जाता हैं और कुछ उनके पास हैं ,
यदि कालाधन रोका गया तो पैसे का ट्रांसफर पारदर्शी होने लगेगा व्यरोक्रेसी
के पास पैसा नही जायेगा और जो पैसा पहले से कालेधन के रूप मे हैं खत्म हो
जायेगा,(इसको भी मै समझा सकता हूँ , लेकिन पोस्ट लम्बी हो जायेगी)
व्युरोक्रेसी नेताओं को समझा दिया हैं 10 रुपये भी मिलना मुश्किल होगा ,
आगे उत्तर प्रदेश का चुनाव हैं जँहा 20 हजार करोड़ खर्च होने वाले हैं ,
यहाँ दो बड़े नेताओं के ऊपर आय से अधिक सम्पति का मुकदमा हैं उनके पास जो भी
हैं कालाधन ही हैं , यदि ये दोनों हारे तो इसमें से एक तो खत्म ही समझिये ,
इनकम टैक्स वालो को सब जानकारी हैं इनका नगदी कहा हैं , कार्यवाही करंगे
तो राजनीति होगी , अभियान की सफलता कमजोर होगी , 30 दिसम्बर के बाद कागज हो
जायेगा सब।
और बंगाल तो काले धन पर ही चल रहा हैं , वहाँ ममता के कैडर पैसे पर ही काम करते हैं ,
अब एक गलत निर्णय जो बताया जा रहा हैं , वह हैं 2000 की नोट , इसके पीछे एक योजना काम कर रही हैं जो आगे काले धन को रोकने काम आयेगी , क्योकि यही पैसा कालाधन के रूप रख्खा जायेगा , ध्यान रखिये 2000 नोट के सिरियल नम्बर बैंक के पास फीड हो रहे हैं , आगे क्या होगा 2000 का ?? ( देश हित मे योजना नही बताऊंगा)
3- अब बात कर लेते हैं लाभ की
प्रधानमंत्री को यह देश सैदव याद रखेगा उन्होंने , RBI गवर्नर , व्युरोक्रेसी , नेताओं (bjp) की बतो को दरकिनार करते हुये यह निर्णय लिया , शरू मे हो सकता हैं व्यापार कम होने से GDP मे गिरावट आये लेकिन , 55% युवा आबादी यदि 50% कालेधन पर चलेगी तो क्या होगा ,तो आगे 10 सालो मे पूरा कलयुग आ जायेगा , जो दिखेंगे वो ये हैं ,
सभी वस्तुओं के दाम कम हो जायेंगे ।
सम्भव हैं भारत से आंतकवाद का समुलनाश हो जाय !!
नक्सलवाद , गौकसि , रुक जायेगी !!
चुनाव व्यवस्था पारदर्शी होगे ,
भारत को अगले 10 सालो मे 100 लाख करोड़ चाहिये , इसके लिये आवश्यक हैं भरष्टाचार खत्म हो?
प्रधानमंत्री को अब सबसे अधिक व्यवस्था गत सुधार देना चाहिये , तभी यह कदम
सार्थक होगा , लेकिन उनके सामने समस्या न्यायपालिका हैं , और केजरीवाल
कांग्रेस का आंतरिक गठबंधन , इन सभी ने मिलकर उनकी बहुत सारी कोशिश को रोक दिया, न्यायपालिका , राष्ट्रपति , मुख्यन्याधिश , पत्रकारिता , बुद्धजीवी ,
बयानों , देखिये कांग्रेस का साम्रज्य कितना विस्तृत हैं , किसी भी
प्रधानमंत्री के लिये काम करना बहुत मुश्किल हैं ,
कोई चीज पूरी तरह कभी खत्म नही होती लेकिन उसकी सीमा भी निश्चित होनी चाहिये ,,
इतनी मेहनत का उद्देश्य यही हैं , संशय छोड़ कर प्रधानमंत्री के साथ कड़े होइये ।।
( मेरे जिन मित्रो को टीम के सदस्य का नाम मालूम हो कृपया सार्वजनिक ना करे वो पदों पर कार्यरत )
धन्यवाद ।।
नोट - इस पोस्ट को 17 नवंबर 2016 को लिखा गया है और अब तक कई लोग नए नोटों के साथ पकडे जा चुके हैं।