राजनीतिक दलों में निःशुल्क वस्तुयें बांटने की लगी होड़
पहले आरक्षण और अब मतदाताओं को लुभाने की खातिर फ्री वस्तुयें और सेवायें बांटने की राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति देश को धीरे धीरे गर्त में धकेल रही है। लोगों से उनकी सोचने समझने की क्षमता, अपने खुद के प्रयासों से अपनी जरूरतें पूरी करने की खुद्दारी छीनी जा रही है।
पहले आरक्षण और अब मतदाताओं को लुभाने की खातिर फ्री वस्तुयें और सेवायें बांटने की राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति देश को धीरे धीरे गर्त में धकेल रही है। लोगों से उनकी सोचने समझने की क्षमता, अपने खुद के प्रयासों से अपनी जरूरतें पूरी करने की खुद्दारी छीनी जा रही है। अब आप सोचिये बच्चों के पैदा होने से लेकर बुजुर्ग होने तक सरकार के पास सारी सुविधायें हैं। महिलायें गर्भवती होती हैं तभी से सरकार उनकी देखभाल शुरू करती है, उसके बाद उन्हे मातृत्व लाभ दिया जाता है। बाल विकास की तमाम योजनायें हैं जो बच्चे को पोषण प्रदान करती हैं।
बड़ा होने पर फ्री का स्कूल, फ्री का खाना, स्कूल बैग, स्टेशनरी आदि सब कुछ दिया जाता है। यह प्रक्रिया पढ़ाई पूरी होने तक चलती रहती है। इसी पीरियड में उसे बता दिया जाता है कि वह बैकवर्ड है, फारवर्ड है या फिर जनरल या एससीएसटी। फिर शुरू होता है नौकरी में आरक्षण का खेल। इण्टरव्यू में सबसे कम नम्बर पाने वाला कैंडीडेट इसलिये नौकरी में आ जाता है क्योंकि वह एससीएसटी है। उसके लिये विशेष आरक्षण कोटा है। दससे ज्यादा नम्बर पाने वाले मन मसोस कर रह जाते हैं। दरअसल देश के आजाद होने के बाद कुछ दबे कुचले, पिछड़े लोगों का स्तर उठाने के लिये आरक्षण की जरूरत थी, और इसे लागू किया, हालांकि उस वक्त भी इसका तरीका दूसरा हो सकता था, लेकिन नीति निर्धारकों के मन में स्वार्थपरक गंदी राजनीति की पुष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी, इसलिये लोग वहां तक नही सोच पाये जहां तक सोचना चाहिये था।
अब तो अरक्षण राजनीतिक दलों का हथियार बन गया है। इसको लेकर किसी की बयानबाजी भी उसे हाशिये पर ला सकती हे। इसीलिये कोई इस विषय पर बात करने को तैयार नही है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के मोहन भागवत ने हिम्मत जुटाकर आरक्षण के समीक्षा की बात कही थी, बीजेपी को इसका परिणाम भोगना पड़ा था। देश को आजाद हुये 70 साल हो गये हमने परमाणु बम तक बना लिये, लेकिन कोई आरक्षण की समीक्षा करने का साहस नही जुटा पाया। शुरू से जाति आधारित फैसले लेकर देश की सवा सौ करोड़ आबादी को बांटकर रख दिया गया। माहौल इतना विषाक्त हो चुका है कि हम बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर किसी बात पर सोच नही सकते।
अब चुनाव जीतने के लिये राजनीतिक दलों द्वारा जो हथकंडे अपनाये जा रहे हैं प्रबुद्ध मतदाताओं को चिंतित करते हैं। आप खुद सोचिये किसी को आरक्षण का लाभ मिला उसे बढिया नौकरी मिल गयी, तो वह पूरी तरह अपना परिवार चलाने को सक्षम हो गया, लाजिमी है वह बच्चों को ठीक ढंग से पढा लिखा सकेगा। अब उसके बेटे को भी आरक्षण, फिर वही सुविधा चक्र उसके साथ चलने लगा। कहां तक जायज है। आइये हम जानते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक पार्टियां अपने मैनिफेस्टो में किस तरह लगातार फ्री चीजें देने का वादा कर रही हैं जो देश के प्रबुद्ध मतदाताओं की चिंता बढ़ा रही हैं। इनमें देसी घी, स्मार्टफोन, लैपटॉप, साइकिल, और किसानों के कर्ज माफी तक की बातें कही गई हैं। यूपी में मुख्य पॉलिटिकल पार्टियों के मैनिफेस्टो में क्या खास है और क्या-क्या चीजें फ्री देने के वादे किए जा रहे हैं आप भी जानिये।
समाजवादी पार्टी ने इस बार अपने मैनिफेस्टो में 10वीं और 12वीं पास करने वाले युवाओं को फ्री लैपटॉप के अलावा फ्री स्मार्टफोन देने का भी वादा किया है। सपा ने यूथ के अलावा प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों को हर महीने दो किलो देसी घी, साथ ही बच्चों के लिए फ्री स्कूल किट (बैग, कॉपी, बुक्स, कम्प्लीट स्टैंसिल वर्क) देने की बात कही है। किसानों के कर्ज माफी का वादा भी अखिलेश ने किया है। वहीं, कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टों में 9वीं से 12वीं तक की लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल देने का वादा किया है। साथ ही किसानों के कर्ज माफी के अलावा उनका बिजली बिल माफ करते हुए बाकियों को बिजली बिल हाफ करने का वादा किया है।
सपा-कांग्रेस अलायंस के बाद लखनऊ में हुई राहुल-अखिलेश की ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों ने अपने 10 वादों को गिनाया था, जिसमें किसानों का कर्जा माफ, फ्री साइकिल, फ्री लैपटॉप, फ्री वाई-फाई, फ्री स्मार्टफोन, फ्री स्कूल किट, फ्री देसी घी की बात कही। इसमें युवाओं को नौकरी देने का वादा भी किया गया। हालांकि, 2012 में अखिलेश यादव ने सरकार बनने के साथ ही अपने पिछले वादों के मुताबिक 10वीं 12वीं क्लास की लड़कियों को साइकिल के साथ 20 हजार रुपए और 12वीं पास युवाओं को लैपटॉप दिए थे।
बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए फ्री लैपटॉप के साथ एक जीबी डाटा देने का भी वादा किया है। बीजेपी ने भी किसानों का कर्जा माफ करने के साथ उन्हें कम ब्याज दर पर लोन देने की बात कही है। इसके अलावा अपने वादों के तहत युवाओं को रोजगार देने की भी बात कही है। मायावती भी किसी से पीछे नही हैं उन्होने ने अब तक किसी चुनाव में मैनिफेस्टो जारी नहीं किया है। वह हमेशा से कहती रही हैं कि हम वादे नहीं, काम करने में भरोसा रखते हैं। हालांकि, मायावती अपने भाषणों में कहती रही हैं कि हम लैपटॉप और स्मार्टफोन नहीं देंगे, बल्कि उतना ही पैसा गरीबों के अकाउंट में भेजेंगे, ताकि उनके जरूरी काम हो सकें।
राजनीति में बिलकुल नया चेहरा आया सर्व सम्भाव पार्टी। वह भी इसी रंग में रंग गया। बॉलीवुड एक्टर राजपाल यादव ने भी कई फ्री घोषणाएं की हैं। चुनाव में लोकदल (सुनील सिंह का लोकदल) के साथ अलायंस के बाद सर्व सम्भाव पार्टी ने किसानों की फसल का मूल्य किसानों की समिति की सहमति से देने का वादा किया है। साथ ही किसानों को फ्री बिजली, फिल्म सिटी निर्माण और युवाओं को फ्री ट्रेनिंग देने दिए जाने की भी बात कही है। वहीं, राष्ट्रीय लोकदल के अजीत सिंह ने यूपी के सभी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में फ्री वाईफाई देने की घोषणा की है।
हमें गंभीर होकर चिंतन करना होगा, आरक्षण आखिर बक तक? कब तक हम लोगों को वैशाखी देकर विकलांग बनाते रहेंगे, उनके हाथ पैरों को हम मजबूत करने का प्रयास क्यों नही करते जिससे वे दूसरों पर निर्भर न होकर, आत्मनिर्भर बनें और हमारे भीतर खुद्दारी आये, हराम में मिलने वाली चीजों का बहिष्कार कर खुद अपनी ताकत से उसे जुटायें। लोगों को फ्री वस्तुयें बांटने की बजाय उन्हे सक्षम बनाने में क्या हर्ज है। देश का आजाद हुये 70 साल हो गये हम आज तक ये सोचने का साहस नही जुटा पाये कि कम से कम हर घर में एक सरकारी नौकरी की गारण्टी ले सकें या फिर परिवार के एक सदस्य को बैंक से लोन दिलाकर उसे इतना सक्षम बना दें कि वह अपने परिवार के सदस्यों को रोजगार देने के साथ ही दूसरों को भी अवसर दे सके। इन सुविधाओं की शुरूआत आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को चिन्हित करके किया जाये तो क्या हर्ज है। मेरा मानना है सरकारें और राजनीतिक दल इसका साहस कभी नही जुटा पायेंगे। प्रबुद्ध जनता को ही आगे आना होगा। आइये इसकी शुरूआत करें फ्री वस्तुयें, सेवाएं या किसी से अहसान लेना बंद करें। हम बदलेंगे तभी देश बदलेगा, आइये देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास शुरू करें। ये लेखक के अपने विचार हैं।
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