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खग - जग 


उड़ो रे पंछी - उड़ो रे पंछी
ये आकाश तुम्हारा है,
सैर करो तुम जग में जितना
ये संसार तुम्हारा है। 
सागर जितना फैलो तुम 
ये धरा घर तुम्हारी है,
जितना मन हो ऊँचा उड़ लो
कोई न दुविधा भारी है।
जीवन का आनन्द तुम्हीं लो 
वन, वाग, तड़ाग तुम्हारा है,
उड़ो रे पंछी - उड़ो रे पंछी
ये आकाश तुम्हारा है।
कोई न बाधा विघ्न नहीं
कोई न रोकने वाला है,
जितना चाहो जग में जाओ
वो ईश्वर ही रखवाला है।
डाली-डाली, पेंड़-पेंड़ पर
जितना चाहो बैठो तुम,
मीठे फल का स्वाद चखो
क्षुधा बुझा लो अपनी तुम।
शान्त करो मन, तृप्त करो तन
शीतलता मन में ले आओ,
खग हो तुम जग में छा जाओ
अपनी इच्छा और बढ़ाओ।
दाना चुग लो, भोजन कर लो
ये जीवन क्षण भर वाला है,
मौज-करो, मस्ती में डूबो
ये जीवन बड़ा निराला है।
जग-संसार तुम्हें निहारे
उड़ो गगन को छू लो तुम
चाहे जितना सैर करो
पर घर संसार न भूलो तुम।
उड़-उड़ कर संदेश ये दे दो
फैलाओ भाई-चारा जी,
तुम्हें देख सीखें सब प्राणी
ये पंछी बड़ा निराला जी।
ऐ पंछी सीख तुम्हीं तो देते
कर्म विधान तुम्हारा है,
उड़ो रे पंछी - उड़ो रे पंछी
ये आकाश तुम्हारा है।

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