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हिन्दू खुलापन v / s इस्लामी गुप्तता

यह विडियो आप सब ने देखा ही होगा आज तक । दो अमेरिकन बंधु हैं एरहार्ड ब्रदर्स लेकिन उच्चारण सुनें तो काशी में भी इतने शुद्ध उच्चारण कम ही मिलते हैं आजकल । स श ष और क्ष के साथ जो खिलवाड़ हो रही है वह भी संस्कृत शब्दों के उच्चारण में उसे "छिमा" करने की मेरी इच्छा नहीं, लेकिन बात ये नहीं है, मूल विषय पर आते हैं ।



इस विडियो को सब से अधिक सराहा है हिंदुओं ने ही, सब से अधिक शेयर भी हिंदुओं ने किया होगा दोस्तों और परिवार को यह बताकर कि देखो तो सही कितना परफेक्ट उच्चारण है । मज़ाक यह भी किया गया कि आइंदा इनको ही पूजा में बुलाना चाहिए, आदि । किसी भी हिन्दू को यह बात कहीं भी खटकी नहीं कि ये अपने मूल धर्म से ही जुड़े हैं । हमारा दृष्टिकोण सदा वैश्विक रहा है और हमने ज्ञान को कभी धर्म की सांकल से जकड़ा नहीं बल्कि "सा विद्या या विमुक्तये" ही हमारी श्रद्धा है ।

वो सब ठीक, लेकिन क्या किसी ने कभी ऐसे किसी फिरंगी ईसाई को तिलावत (कुरआन पठन की विशिष्ट पद्धति) करते देखा है ? क्या यह बात सोचने के काबिल नहीं लगती ? मतलब यही है कि इस्लाम में गुप्तता किस हद तक रखी जाती है । जब तक आप अपनी सोच सरेंडर कर के उनकी सोच से नहीं चलेंगे, आप को कुछ नहीं सिखाया जाएगा । ताकि आप जो भी सीखें, उसे वे कमअसल बताकर खारिज करने की कोशिश करें । वैसे, आता इन्हें भी कुछ नहीं बस उस मजहब में जन्म लेने के कारण कहते हैं कि वे जानते हैं । एक आयत सभी संदर्भ हटाकर केवल अरबी मैटर पढ़ने को कहिए, 95% के लिए काला अक्षर ऊंट बराबर होता है । कोई पढ़ भी सके तो जानता कुछ नहीं । उर्दू अनुवाद ही उनको ज्यादा से ज्यादा समझ में आता है और अगर वे अनुवाद से ही पढ़ते हैं तो आप जो पढ़ रहे वो इंग्लिश या हिन्दी अनुवाद उसके बराबरी का ही है अगर अनुवादक मुसलमान ही हो । कोई भी अनुवादक खुद के अनुवाद को परफेक्ट नहीं कहता, क्षमायाचना लिखी ही होती है कि यह बस अपनी कुव्वत के मुताबिक किया है, विद्वज्जन त्रुटियाँ माफ करें, अल्लाह ही सब जानता है, इत्यादि । कुल मिलाकर अनुवाद v/s अनुवाद चर्चा में ज्ञान अज्ञान की लेवल बराबर ।

गुप्तता की दूसरी पायदान । कुरआन पढ़ने की कोशिश करनेवाले अधिकतर गैर मुस्लिम कुछ पन्नों से अधिक पढ़ नहीं पाते, "यार कुछ समझ में नहीं आता" ये कॉमन कारण होता है । इसका कारण है, कुरआन की रचना ही ऐसी है कि कुछ समझ न आए । नहीं, ये कोई अल्लाह की ट्रिक नहीं, मुल्ला की ही ट्रिक है लेकिन पूछेंगे तो जरूर कहेंगे कि अल्लाह उसी के दिमाग के दरवाजे खोलता है जो समर्पण करता है । ऐसा कुछ नहीं है, बस यह समझ लीजिये कि बाजार में जो खरीद सकते हैं उस कुरआन की रचना chronological याने कालक्रमबद्ध नहीं है । मतलब सूरह और आयतें जिस क्रम में नाजिल हुई उस क्रम में छपी नहीं हैं । सूरह फातिहा छोड़कर बाकी सब सूरह आयतों की संख्या अनुसार छपें हैं, ज्यादा से कम तक । इनमें कौनसी सूरह - आयतें मक्का में नाजिल हुई जब ह मुहम्मद केवल प्रवचन, चर्चा से इस्लाम का प्रचार करते थे (13 सालों में केवल 150 लोग जोड़ पाये) और कौनसी सूरह- आयतें मदीना हिजरत करने के बाद नाजिल हुई यह लिखा होता है, समझनेवाले समझते हैं, ना समझे उन्हें अनाड़ी रखा जाता है । मदीना में उन्होने तलवार की दम पर प्रचार किया और वहाँ फिर उनके साथ किस तरह के लोग आ जुड़े और कैसे इस्लाम फैला फूला यह आप Hamed Abdel Samed के इस विडियो से समझ सकते हैं । इनके पिता इमाम थे और कैरो के Al Azhar यूनिवर्सिटी में शिक्षक भी थे।


खैर, हम chronological sequence की बात कर रहे थे । बिना इस सीक्वेंस के कुछ समझ में आने से रहा, लेकिन यह सीक्वेंस भी उपलब्ध है और कई अधिकृत इस्लामी वेब साइट्स पर उपलब्ध है । यह साइट उनमें से एक है http://tanzil.net/docs/revelation_order

जब कुरआन इस तरह से पढ़ी जाये और साथ साथ में ह मुहमद की जीवनी (सीरत रसूलल्लाह) और हदीस भी पढ़ी जाय तब सोच समझ में आती है । कुरआन में 6666 आयतें हैं । जाहिर है कि पढ़नेवाले के लिए खासा चैलेंज है । यही उनके उलेमा कुटिल मुस्कान देते आते हैं, अरे, अभी तो बहुत कुछ बाकी है, हदीस की तो बात ही नहीं की है अब तक; बिना हदीस के इस्लाम समझने निकले हो ? अरे अभी और बहुत है ....

बिरला ही गैर मुस्लिम व्यक्ति टिक पाता है यहाँ तक । वेस्ट में भी जो विद्वान होते हैं वे भी अक्सर अलग अलग बातों के स्पेशालीस्ट्स होते हैं ।

तो अपना मूल मुद्दा गुप्तता का था। जब कुरआन कैसी समझी जाये इतना भी आप बता नहीं रहे हैं तो यहाँ शक मंडराने लगता है । यह लामबंदी होती है और बाकी इनके तौर तरीके तथा इतिहास देखा जाये, क्राइम में हिस्सेदारी देखी जाये तथा सीधा तख़्ता पलट और गालिब होने की आकांक्षा देखी जाय तो इसे धर्म मानना मुश्किल हो जाता है । क्योंकि यही विचारधारा इन सभी के जड़ में है जिसको decode करने में ये तरह तरह की अड़चनें पैदा कराते रहते हैं ।

Hamed Abdel Samad साहब की ऊपर दिये विडियो से काफी बातें स्पष्ट हुई होंगी । न देखा हो तो अवश्य देखना चाहिए ।

वैसे आपने Geopolitics के बारे में सुना होगा । बाहरी देशों की जानकारी रखी जाती है । हर देश को लेकर स्पेशालीस्ट्स होते हैं । अपने यहाँ भी होते हैं लेकिन यह विषय JNU में पढ़ाया जाता था, अब और गिने चुने यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाने लगा है । एक छात्रा मेरी बहन से मिली थी। बहन ने एक relevant प्रश्न पूछा तो इतनी अभिभूत हुई कि बस गले पड़कर सुबक कर रोना बाकी था खुशी के मारे । कहने लगी कि आप पहली व्यक्ति मिली है जिसने कोई ढंग का सवाल पूछा है नहीं तो कितना समझाना पड़ता है और उसके बाद भी आगे क्या करूंगी इसका इस देश में ही रहूँगी या नहीं यह नहीं पता।

अमेरिका , इंग्लैंड ही नहीं, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, इटली, लगभग हर प्रगत देश में कई यूनिवर्सिटीज़ में geopolitics के विभाग हैं ।

यहाँ geopolitics की बात क्यूँ की ? क्योंकि मुसलमान इसी देश में रहकर भी अलग देश की तरह रह रहे हैं जैसे Nation Of Islam Within India हो, और हमें उसकी कोई जानकारी है तो केवल पुलिसिया और खुफिया । उसकी विचारधारा की पर्याप्त जानकारी नहीं है जो होनी अत्यावश्यक है । समाज में भी इसके जानकार उँगलियों पर गिने जाएँगे और ज़्यादातर सब शौकिया है, नौकरी संभालकर ज्ञान अर्जन कर रहे हैं । न सरकार से न समाज से इसकी कोई कदर न दखल ।

इसके बनिस्बत आपने देखा होगा, कितने ब्रदर भिड़ते हैं आप को दावत दे कर हलाल करने। कितना जानते हैं हमारे बारे में हम से भी ज्यादा ।

इस्राइल टिका है क्योंकि वहाँ हर नागरिक सैनिक है या रह चुका है । कभी भारत घूमने आए किसी यहूदी पर्यटक से बात करें । मानसिक स्तर तथा इस्लाम की जानकारी देखें । घिरा है वो देश सभी बाजुओं से इस्लामी देशों से ।

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