बोधकथा - 'संघी' एक टेम्पररी गाली है, असली गाली तो 'हिन्दू' है
.... याने असली गाली तो "हिन्दू" है, आज सभी हिंदुओं का रोष जगाना महंगा पड़ेगा इसलिए 'संघी' कहा जाता है, कल परिस्थिति बन जाएगी तो 'हिन्दू' ही गाली बन जाएगी, और इसमें किसी को कोई अपराधबोध नहीं होगा न ये politically incorrect कहलाएगा।..
बोधकथा एक यह भी ।
यह किस्सा पहले लिखा था, सर्च नहीं कर पाया इसलिए फिर से लिख देता हूँ ।
मेरे एक अभिन्न मित्र हैं उनके पुत्र से संबन्धित किस्सा है । लड़का होगा 20 का । अच्छे कॉलेज में है, बात किस्से की है, उसके पर्सनल डिटेल्स की नहीं ।
हुआ कुछ यूं कि कॉलेज की ट्रिप गई थी । लड़के और लड़कियां मिलाकर कुछ दस बारह होंगे । मुंबई से जरा दूर कई छोटे छोटे प्रपात बनते हैं बारिश के दिनों में । उनके नीचे काफी मजा आता है । ऐसे ही एक जगह गए थे ये लोग । चार पाँच लड़कियां, बाकी लड़के । एक लड़का मुस्लिम था और उसकी सब से अच्छी पटती थी ।
इन सब में दो कूल डूड्स भी थे और दो तीन कूल डूडनियां भी थी । अब युवाओं की ट्रिप में पेयपान तो होता ही है, यहाँ भी हुआ । दो ही लोग थे जो पी नहीं रहे थे, एक था वो मुस्लिम लड़का और दूसरा मेरे दोस्त का सुपुत्र । दो कूल डूड्स की जुबान जरा बहकने लगी, और जैसा इनके साथ होता है, हिन्दू परंपरा, धर्म आदि का मज़ाक उड़ाने लगे । कूल डूडनियां भी खिलखिलाकर हँसकर उनका उत्साहवर्धन करने लगी। बाकी कुछ बोल नहीं रहे थे, लेकिन लड़कियों को हँसता देखकर वे भी जरा जरा हंसने लगे । मुस्लिम लड़का शांत था, इसमें जुड़ नहीं रहा था। मोबाइल से झरने के फोटो ले रहा था।
दोस्त के पुत्र ने कुछ समय ये झेला, फिर बोल पड़ा। पूछा, क्यों मज़ाक उड़ा रहे हो, इस से क्या हासिल होगा । कूल डूड्स बोले, जो सही नहीं उसका मज़ाक उड़ाना चाहिए, उस से ही बदलाव आता है । थोड़ी सी बहस हुई, दो चार मुद्दों पर वे कुछ सही जवाब न दे पाये फिर भी अपनी ही हाँकते रहे, डूडनियाँ भी उनका साथ देती रही ।
अचानक मित्र पुत्र बोला कि सुधार तो भारत के सभी धर्मों में जरूरी है क्या नहीं ? कूल डूड्स पर शराब ज्यादा थी या विनाश काले वाली बात होगी, उन्होने हामी भरी । इसने तुरंत कहा, इस्लाम भी तो इस देश में हजार साल से अधिक समय से है, और बुराइयाँ मुसलमानों में कम नहीं । बोलोगे कुछ उसपर भी, इस हमीद के सामने ?
कूल डूड्स दायें बायें देखने लगे, हमीद शांत था, कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था। कूल डूड्स बहाने देने लगे कि हम तो उसमें कुछ जानते नहीं तो क्या बोले । डूडनियाँ भी उनकी तरफ से बोलने लगी, मूड खराब न करने की बातें करने लगी। लेकिन ये डटा रहा, बोला देखो मोबाइल में इंटरनेट तो है, यहाँ सिग्नल भी है, अभी रिफ्रेन्स निकाल देता हूँ, ज़ोर से बस पढ़ोगे हमीद की हाजिरी में ? टिप्पणी भले ही ना करो।
कूल डूड्स फिर से दायें बायें, डूडनियाँ भी चिचियाने लगी मूड खराब करने को लेकर । इसने शांति से मोबाइल जेब में रखा, और किसी को कुछ समझ आए इसके पहले दोनों कूल डूड्स को दोनों हाथों से कसकर झापड़ मारे। अगर इसके कहने के मुताबिक वे सिंगल पसली थे तो गिर पड़े होंगे, क्योंकि ये हट्टा कट्टा सांड है । फिर वो वहाँ नहीं रुका, चला आया । इस प्रसंग के बाद हमीद से दोस्ती यारी में कोई खटास नहीं, पहले जैसे ही हाय हॅलो चालू है, लेकिन कूल डूड्स इसे देखकर कट लेते हैं और कूल डूडनियों ने इसकी बुराई की है और करती रहती है कि ये कूल डूड नहीं है, संघी है । वैसे ये कभी शाखा में गया हो ऐसा मुझे तो लगता नहीं, फिर भी ।
किस्सा समाप्त । चूंकि इसे बोधकथा कहा तो बोध तो वैसे लिया ही होगा आप ने फिर भी बताना कर्तव्य हो गया । वो ये है कि अगर हिन्दू अपनी परंपरा का अपमान सहने से मना करता है तो वो कूल नहीं है और ज्यादा मुखर हुआ तो इंटोलेरंट, मूड बिगाड़नेवाला है, और अगर उससे भी आगे जाकर कहीं वो प्रखर हुआ तो उसे संघी घोषित किया जाता है । मतलब अगर हिन्दू को अपने हिन्दू होने पर शर्मिंदा होना चाहिए, नहीं तो उसे संघी कह दो । याने असली गाली तो "हिन्दू" है, आज सभी हिंदुओं का रोष जगाना महंगा पड़ेगा इसलिए 'संघी' कहा जाता है, कल परिस्थिति बन जाएगी तो 'हिन्दू' ही गाली बन जाएगी, और इसमें किसी को कोई अपराधबोध नहीं होगा न ये politically incorrect कहलाएगा।
मुद्दा क्र 2, ये मुसलमानों को कुछ नहीं कहते। इन्हें उनके दोष नहीं दिखते जब कि सब को वे दिख रहे हैं । अगर इन्हें दिखा दिये तो आप को संघी का तमगा देकर चुप करने की कोशिश की जाएगी या फिर अगर आप नहीं माने तो रफा दफा कर दिये जाओगे और रेकॉर्ड से वे दोष साफ करने की कोशिश की जाएगी।
मुद्दा क्र 3, हमें उसी पोजीशन में आना होगा जो इन्हें हमारे बारे में कुछ कहने से पहले बायें दायें देखना पड़े । अब जैसे वे कूल डूड्स मेरे मित्र के पुत्र को देखकर कन्नी काटते हैं, लगता है उसने अपने कृति से आवश्यक बोध कराया है ।
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