इसे स्वायत्तता का गलत इस्तेमाल कहें या पागलपन
चुनाव आयोग के फैसलों पर अब मौन रहना उचित नही होगा। किसी भी संस्था की स्वयत्तता का अर्थ यह नही होता कि उसके फैसलों की समीक्षा नही की जा सकती है।
चुनाव आयोग के फैसलों पर अब मौन रहना उचित नही होगा। किसी भी संस्था की स्वयत्तता का अर्थ यह नही होता कि उसके फैसलों की समीक्षा नही की जा सकती है। आयोग के कई फैसलों ने सोचने को विवश कर दिया है। दिल्ली में हो रहे एमसीडी चुनावों में चुनाव आयोग के हालिया फैसले में दिल्ली सरकार द्वारा संचालित ‘आम आदमी क्लीनिक‘ से आम शब्द को हटाने के निर्देश दिये गये हैं। निर्देश मिलते ही जिम्मेदारों क्लीनिक की दीवारों पर लिखा आम भी हटा दिया और आदमी भी। इतना ही नही दीवारों पर लगी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की फोटो में उनका चेहरा भी पेन्ट कर दिया गया।
आपको बता दें आम आदमी क्लीनिक दिल्ली सरकार की लोकप्रिय योजनाओं में एक है, जहां से जरूरतमंदों को प्राथमिक उपचार की सुविधायें मिल जाती है उन्हे दूर नहीं जाना पड़ता। यह सुविधा मोहल्ले के स्तर पर उपलब्ध है। हमारा उद्देश्य दिल्ली सरकार की योजनाओं का बखान करना है, लेकिन बहंस का हिस्सा बनान जरूरी है और अच्छे को अच्छा कहने का धर्म भी तो निभाना है। हाल में पांच राज्यों में सम्पन्न हुये विधानसभा चुनावों में ऐसे कई फैसले आये थे। जिसके अनुपालन में लखनऊ में अखिलेश सरकार द्वारा बनवाये गये साइकिल ट्रैक पर यात्रियों को गाइड करने के लिये खम्भों के ऊपर बने साइकिल के सिम्बल को पेन्ट कर दिया गया था।
जिस तरह दिल्ली में पेन्ट करने के बावजूद लोग आसानी से आम आदमी क्लीनिक पूरा पढ़ लेते थे उसी तरह मिटाने के बावजूद साइकिल भी आसानी से समझ में आ जाती थी। हम इसे चुनाव आयोग का पागलपन कहें या फिर स्वायत्तता का गलत इस्तेमाल। हजारों साइकिलें सड़कों पर रोज दौड़ती हुईं देखी जा सकती हैं ऐसे में खम्भों पर लगे गिने चुने सिम्बल मिटाने का क्या मतलब है। लखनऊ में हाथी के तमाम बुत चादर से ढक दिये गये। एक पार्टी का चुनाव निशान ‘कलम‘ है तो चुनाव आचार संहिता लागू होने पर हर आदमी की जेब से कलम निकाल लेने का निर्देश चुनाव आयोग देगा। एक पार्टी का चुनाव निशान ‘कमल का फूल‘ है। क्या चुनाव आयोग चुनाव आचार संहिता के दौरान कमल को न खिलने का निर्देश देगा।
यदि किसी को चुनाव निशान प्रेशर कुकर मिला है तो दुकानों पर बिक रहे प्रेशर कुकर को जब्त कर लिया जायेगा। चुनाव चल रहा हो, या फिर मतदान चल रहा हो और मतदान केन्द्र से हाथी गुजर रहा हो तो क्या करेंगे। कांग्रेस का चुनाव निशान पंजा है, इसे क्या करेंगे। यें तो जहां आप जायेंगे वहीं जायेंगा। यदि आप आचार संहिता के दौरान पंजा नही छिपा सकते तो हाथी छिपाने का क्या मतलब। इसी तरह झाड़ू, कप प्लेट, पंखा, हंसिया, गैस सिलेण्डर का आप क्या करेंगे, इन्हे कैसे छिपायेंगे कि ये मतदाताओं को नज़र न आये। दरअसल इन दकियानूसी ख़यालो से निकलने की जरूरत है। साथ ही स्वायत्तता की सीमा रेखा का भी ध्यान रखना होगा। फैसलों से पूर्व उसकी व्यवहारिकता का भी ध्यान देनां होगा। वरना इसे पागलपन का नाम दिया जायेगा या फिर स्वायत्तता का गलत इस्तेमाल कहा जायेगा। ये लेखक के अपने विचार हैं।