ऊँटों की महफिल यह जिसमें, गीत गधों ने ही गाया है, कैसा लोकराज्य आया है ..
आजकल भाजपा छोड़कर प्रायः सभी पार्टियां समाजवाद की कसमें खाती दृष्टिगत हो रही हैं । प्रदेश में सत्तारूढ़ दल सपा का तो सारा राजनितिक कारोबार ही समाजवाद के नाम से संचालित हो रहा है ।इसके साथ ही मुलायमसिंह अखिलेश यादव तो अपने को लोहिया का असली वारिस घोषित करते रहते हैं । ....
" ऊँटों  की  महफिल  यह  जिसमें  , गीत  गधों  ने  ही  गाया  है ।
                      कैसा  लोकराज्य आया  है ।।''
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        आजकल  भाजपा छोड़कर  प्रायः सभी पार्टियां समाजवाद की कसमें  खाती दृष्टिगत हो रही  हैं । प्रदेश में सत्तारूढ़ दल सपा का  तो सारा राजनितिक कारोबार  ही  समाजवाद के नाम से संचालित हो रहा है 
।इसके साथ ही मुलायमसिंह अखिलेश यादव तो अपने को लोहिया का असली वारिस 
घोषित करते रहते हैं । कोई भी " वाद ' अर्थात् विचार धारा का ज्ञान उसके  अनुयायियों के  आचरण से प्रतिविम्बित होता  है । लोहिया जी के समाजवाद का जो प्रमुख सूत्र था वह  यह कि समाज के  अन्तिम सोपान पर खड़े  व्यक्ति अर्थात् दैनिक मजदूर की आय और शीर्ष पर स्थापित व्यक्ति की 'आय में 1 और 
10  अधिकतम 1 और 15 का अनुपात' होना चाहिये । इस समयगाँव के मजदूर की 
मजदूरी का मासिक औसत 4 हजार के लगभग पड़ता है। इसका समाजवाद सम्मत अर्थ 
निकला कि शीर्ष पर स्थापित व्यक्ति की आय 40 से 60 हजार ही हो सकती है ।  अब आप अपने गली मोहल्ले के समाजवादी कार्यकर्ता का घर और रख रखाव को देखें तो 'आपको समाजवाद से पूरा परिचय 'हो जायेगा ।  
सर्वोत्तम नमूना प्रदेश सरकार के बहुचर्चित प्रतिष्ठित मंत्री "श्रीमान् गायत्री प्रजापति" हैं ।जो "2002 में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार बी पी एल कार्ड धारक " अर्थात् ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले अति साधरण नागरिक थे । आज उनकी सम्पत्ति एक हजार करोड़ से भी अधिक हैऔर उनके 'उज्ज्वल समाजवादी चरित्र की चर्चा भारत के सर्वोच्च कोर्ट 'तक पहुँच चुकी है । इनके शाही रख रखाव पर हुये व्यय को सम्मिलित करते हुये आजकल इनकीमासिक आय लगभग 75 लाख आयेगी । अतः यदि हम मजदूर की मजदूरी 5 हजार भी मान लें जोकि मध्य और पूर्वी यू पी में प्रायः सम्भव नहीं है तो यह "अनुपात 1 और 1500 " का आता है । यह एक सामान्य मंत्री का नमूना है ,जो लोग दशाब्दियों से सरकार के प्रमुख पदों पर रहे हैं । उनके समाजवादी स्वरूप का साधारण व्यक्ति भी अनुमान लगा सकता है ।
डॉ राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण (जे पी) दिव्यलोक से उनके नाम पर विकसित और  प्रचारित इस  'नव्य समाजवाद 'को देख कितने प्रसन्न अथवा दुःखी हो रहे होंगे । यह तो अनुमान का बिषय ही हो सकता है ।
  इधर चुनावी अवधि में   फेसबुक पर   बहुत ही जोर शोर से प्रचारित समाजवाद के हमले का मैं भी जाने अनजाने शिकार हो गया हूँ । अतः समाजवाद ने जो छाप मेरे कवि चित्त पर छोड़ी है ।  मैनें त्वरित प्रतिक्रिया को छन्द बद्ध करने का प्रयास किया है "समाजवाद की लीला बहुत ही गूढ़ और सीमातीत "है ।तथापि "समाजवाद अर्थात् लोकराज्य "की
    हल्की सी झांकी प्रस्तुत है  .....
''लोहिया ''जे पी' विफल हुये सब ,सफल लुटेरों की माया है ।
                       कैसा लोकराज्य  आया  है  ।।''
       "एक जनाब  रहे  मंत्री जो ,मंत्री  बन करके  पिछड़े हैं।
       हृष्ट पुष्ट हैं दौड़ दौड़ कर , कहते  फिरते  हम लंगड़े हैं।।
       इनके साथी  भासमान जी , गृह   नक्षत्रो  को    बांटेंगे ।
       इन्हें बोलना जो सिखलाये , उनकी  ही जबान  काटेंगे।।
      ऊंटों की महफ़िल यह जिसमेँ ,गीत गधों ने ही गाया है।"
                       कैसा  लोकराज्य आया  है !!
       "भारत माँ को डायन' कहने वाले,  यहाँ  मंत्रिपद   पाते  ।
       राष्ट्रद्रोह  के अपराधी  भी  ,संसद्  में  प्रवेश पा  जाते ।।
       गद्दारों  को  खुश करने में ,जो सरकार रही   है झुकती।
       उसके द्वारा न्यायमूर्ति की ,'दंडस्वरूप' पदोन्नति रुकती।।
       न्यायमूर्ति को सजा मिल रही ,मुजरिम ने इनाम पाया है!"
                      कैसा  लोकराज्य आया है !!
      'बौद्धिक कुतिया' कहे सिया का 'लक्ष्मण सेअवैध था रिश्ता।
      'भारत   तेरे   टुकड़े   होंगे ' , के   उद्घोषक लगें  फरिश्ता।।
     ' तारिक फतह 'और  'तसलीमा ', इन्हें  दुष्ट  शैतान  दीखते ।
      उनपर   हमला  करने वाले , वन्दनीय   भगवान्  दीखते ।।   
      तर्कशक्तिअभिव्यक्ति बुद्धि का, पकड़े गला  प्रेतछाया  है ।
                    कैसा   लोकराज्य  आया  है !!
      जोकि ज़िहादी कठमुल्लों के ,पैरों  पर  हैं  नाक   रगड़ते ।
      कभी नहीं गलती करने  की , कसमे  खाते  कान पकड़ते।।
      वही विनम्र  देशभक्तों  को , गाली  देते    आँख  दिखाते ।
      बात  बात में खा जाने को , गला  फाड़  चिंघाड़  लगाते ।।
      सिंहों  की  खालें   ओढ़े, आतंक      सियारों का  छाया है !
                     कैसा  लोकराज्य  आया  है !!
      'वासमती 'कलमुहां  ' नगीना ', सभी धान बाईस  पसेरी  ।
      किलो  पाव से भी घटकरके, आज  तुल रही है   पंसेरी।।
      शाकाहार  प्रचार  कार्य का ,गिद्धों  नें  ठेका  ले   डाला।
      मीनों के कुलसंवर्धन  का , वगुलों  ने  है  भार संभाला ।।
      कागों नें  कोकिल को द्रोही, ऋतु वसन्त का ठहराया है ।
                   कैसा    लोकराज्य  आया   है !!
