द्वादश ज्योतिर्लिंग मे से एक मनोकामना लिंग - बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड
परंपरा और पौराणिक कथाओं से देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है। हर साल लाखों श्रद्धालु सावन के माह में सुलतानगंज से गंगाजल लाकर यहां चढ़ाते हैं।.. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग राक्षस राज रावण द्वारा स्थापित है। माना जाता है कि लंका के राजा रावण ने यहाँ शिवोपासना की थी। ...
द्वादश ज्योतिर्लिंग मे से एक मनोकामना लिंग :- बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥
हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।
चिताभूमि देवी सती के बावन शक्तिपीठों में से एक है। संथाल
परगना जनपद के गिरीडीह रेलवे स्टेशन के समीप देवघर पर स्थित स्थान को
'चिताभूमि' कहा गया है।
जिस समय भगवान शंकर सती के शव
को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस
स्थान पर सती का 'हृत्पिण्ड' अर्थात हृदय भाग गलकर गिर गया था।
भगवान शंकर ने सती के उस हृत्पिण्ड का दाह संस्कार इसी स्थान पर किया था, जिसके कारण इसका नाम 'चिताभूमि' पड़ गया।
शिवपुराण में एक निम्नलिखित श्लोक भी आता है,
जिससे वैद्यनाथ का 'चिताभूमि' में स्थान माना जाता है-
वैद्यनाथावतारो हि नवमस्तत्र कीर्तित:।
आविर्भूतो रावणार्थं बहुलीलाकर: प्रभु:।।
तदानयनरूपं हि व्याजं कृत्वा महेश्वर:।
ज्योतिर्लिंगस्वरूपेण चिताभूमौ प्रतिष्ठित:।।
वैद्यनाथेश्वरो नाम्ना प्रसिद्धोऽभूज्जगत्त्रये।
दर्शनात्पूजनाद्भभक्या भुक्तिमुक्तिप्रद: स हि।।
(श्री शिव पुराण शत रुद्र सं. 42/38-40)
प्रत्यक्षं तं तदा दृष्टवा प्रतिष्ठाप्य च ते सुरा:।
वैद्यनाथेति सम्प्रोच्य नत्वा नत्वा दिवं ययु:।।
अर्थात 'देवताओं ने भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उसके बाद उनके लिंग की प्रतिष्ठा की। देवगण उस लिंग को 'वैद्यनाथ' नाम देकर, उसे नमस्कार करते हुए स्वर्गलोक को चले गये।'
परंपरा और पौराणिक कथाओं से देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है। हर साल लाखों श्रद्धालु सावन के माह में सुलतानगंज से गंगाजल लाकर यहां चढ़ाते हैं।
श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग राक्षस राज रावण
द्वारा स्थापित है। माना जाता है कि लंका के राजा रावण ने यहाँ शिवोपासना
की थी। माता सती का हृदय गिरा था। इसी कारण इसे मनोकामना ज्योतिर्लिंग भी
कहते हैं।
पौराणिक
कथाओं के अनुसार विश्व विजयी बनने के लिए रावण शिव का स्वरूप ज्योतिर्लिंग
लंका लेकर आ रहा था, तब दैवी इच्छा के अनुसार शिवलिंग रास्ते में ही रख
दिया गया और तभी से यह देव स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र है।