किसी नौकरी की सेवा शर्तें और तेज़ बहादुर यादव सरीखे केस
अगर हम तेजबहादुर की केस लें तो जो उस सेवा में जो तकलीफ़ें आती हैं उन्हें hardship कहा जाता है, occupational hazard कहा जाता है याने उस नौकरी में यह सब हो सकता है । यह शोषण किसी भी हाल में नहीं है । सच देखें तो यह ‘शोषण’ शब्द भी वामी देन है मुद्दा यह भी है कि इन बातों पर सार्वजनिक चर्चा प्
मैं यह मानकर चलता हूँ कि हम में से ज़्यादातर लोग कहीं न कहीं सर्विस कर रहे हैं । कोई अगर खुद employer हैं उनके यहाँ अन्य लोग सर्विस कर रहे हैं ।
तो यह बताइये, जब आप नौकरी की ऑफर स्वीकार करते हैं, उस कागज पर कुछ शर्ते लिखी होती हैं, और उन्हें स्वीकार करनेपर ही आप को वह नौकरी मिलती है । कृपया मुझे कोई ऐसा कांट्रैक्ट बताइये जो employee के प्रति fair होता हो । हर कांट्रैक्ट employer को ही एडवांटेज देता है ।
अगर हम तेजबहादुर की केस लें तो जो उस सेवा में जो तकलीफ़ें आती हैं उन्हें hardship कहा जाता है, occupational hazard कहा जाता है याने उस नौकरी में यह सब हो सकता है । यह शोषण किसी भी हाल में नहीं है । सच देखें तो यह ‘शोषण’ शब्द भी वामी देन है मुद्दा यह भी है कि इन बातों पर सार्वजनिक चर्चा प्रतिबंधित है । अपने आप में यह सर्विस शर्तों का उल्लंघन भी है ।
अब मैं सभी फड़फड़ाती आत्माओं को अपने आने सर्विस कोन्त्रक्ट्स / appointment letter सार्वजनिक करने का आवाहन करता हूँ, जरा दिखायेँ आप कि वे आप के लिए कितने fair हैं अगर आप employee हैं । और अगर आप employer हैं तो दिखायें कि आप अपने नौकरों के प्रति कितने fair हैं । पर उपदेश कुशल बहुतेरे, और क्या ?
कई कंपनियों के सर्विस शर्तों में यह भी लिखा होता है कि अगर आप नौकरी छोड़ते हैं तो आप दो – तीन सालों तक किसी कोम्पेटिटर के यहाँ नौकरी नहीं कर सकते । अगर आप कोई स्पेशल प्रोडक्टस बनानेवाली कंपनी में हैं तो आप का विकास कोम्पेटिटर के पास ही संभव होगा, दूसरे फील्ड के कंपनी को आप के हुनर की कदर कम होगी । जहां तक पता है ज़्यादातर कंपनियाँ इस मुद्दे पर सख्ती से अमल नहीं करती क्योंकि उनके स्टाफ भी ऐसे ही कोम्पेटिटरसे उठाए होते हैं, लेकिन लेटर से यह शर्त हटाता कोई नहीं है । वैसे सर्विस में पायी गई जानकारी पर भी मुंह बंद रखने की शर्तें होती हैं और वे पाली और लागू भी की जाती हैं ।
क्या कोई वामियोने इस मुद्दे पर मुंह भी खोला है कभी ? ये भी कहीं नौकरी ही करते हैं, खुदके अपोइंटमेंट लेटर दिखाएँ तो जानें । सैलरी पर फोटोशोप कर दो कोई बात नहीं, शर्तें तो दिखाने का दम या ईमानदारी है इन में ?
और एक बात जिसके कारण मैं इसे शर्तिया एक वामी षडयंत्र ही कहता हूँ । लोग कहें जा रहे हैं कि यह सेना पर हमला नहीं है, यह जवान वि अधिकारी का मामला है । जरा ये बताएं आप, सेना होती ही क्या है ? क्या बंदूकें सेना है, क्या टँक सेना है या क्या तोपें सेना हैं? सेना तो अनुशासन से चलनेवाले प्रशिक्षित लोगों का समूह है जिनके कुछ नियोजित कर्तव्य होते हैं । और ये लोग हैं जवान और अधिकारी । अब अगर ये जवान वि अधिकारी का मामला बनाने लगे तो किसके विरोध में बात कर रहे हैं, सेना के ही तो ! और यह वामी षडयंत्र क्यूँ तो वर्ग संघर्ष करवाना वामियों की signature style है । जहां x वि y संघर्ष होगा वहाँ उसके मूल में कोई न कोई मंथरा का वंशज वामपंथी जरूर पाया जाएगा । यह भी कह सकते हैं कि वामी जहां भी होगा, x और y शांति से रहते हों तो उन्हें x वि y कर के ही दम लेगा।
सैनिक के जीवन में अधिकारी का स्थान बहुत बड़ा होता है । उसपर अटूट और अदंम्य विश्वास के कारण ही सैनिक जान की बाजी लगा देता है, जान भी न्योछावर कर देता है । लोग हैं वहाँ शिकायतें होती ही हैं लेकिन अधिकतर कारोबार fair ही होता है, सभी सैनिकों मे सहमती होती है कि अगर किसी को सजा दी जा रही है तो उसका कारण है और वो सजा योग्य भी है । अधिकारी के ऑर्डर पर कूदनेवाला जवान जानता है कि यह ऑर्डर योग्य है और अगर वो जान से गया तो अधिकारी के लिए वह केवल एक नंबर नहीं है । और अगर सभी अधिकारी बुरे ही हों तो सेना चल ही नहीं सकती, कब की बिखर जाती ।
जो ये मंथरा के वंशज कुछ सैनिकों को कैकेई बनाने पर तुले हैं, इनका केवल कोर्ट मार्शल ही आवश्यक है । इन सैनिकों की MI / IB तथा RAW से भी पूछताछ हो, उनको उकसाने वाले मंथराओ को खोजा जाये और उनके साथ बड़ी सख्ती से सेना का न्याय हो ।