सनातन पर ईसाइयत के हमले-०३
कई सुधारकों ने सती प्रथा की आड़ में कई भारतीय मान्यताएँ बन्द करायीं और हिंदुओं को अपने अंकुश में लिया। ईसाई मिशनरियों ने भारत को आर्य , द्रविणं और आदिवासी ग्रुप में डिवाइड किया तथा सभी भारतीयों को आपस में लड़ाकर एक दूसरे का दुश्मन बना दिया।....
सनातन पर ईसाइयत के हमले भाग :- ०३
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सनातन पर ईसाइयत के हमले के प्रथम भाग में बताया गया कि किस तरह अँग्रेजी
शासन ने अपने क्रिश्चन मिशनरियों द्वारा भारत के ज्ञान के आधार अर्थात
वेदों पुराणों और अन्य ग्रंथों को अपने अनुसार अनुवादित किया तथा किस तरह
हिन्दू भगवानों को बाइबिल की मनगढंत कहानियों में ढूंढा तथा किस तरह
ईसाईयों ने हिन्दू भगवानो को यूनान के देवताओं के नाम से प्रमाणित किया तथा
सनातन पर ईसाइयत के प्रभाव आधारित बताया।
तथा सनातन पर ईसाइयत के प्रभाव भाग ०२ में बताया गया किस तरह ईसाइयत ने अपने मंसूबो को कामयाब बनाने के लिए कौन कौन से संस्था खोले, उनका उपयोग किस तरह भारत को तोड़ने के लिए किया, तथा कौन कौन से ईसाई मिशनरी भारत आये तथा किस तरह भारत की सभ्यता को ईसाई सभ्यता बनाने में समर्थ हुए ।
अब हम बात करेंगे किस तरह ईसाई मिशनरीयों ने भारत के कुछ लालची लोगों को मिशनरी बनाया तथा किस तरह इनका दुरपयोग क्र भारत में ईसाइयत की नींव डाली ,
1800 के बाद कई ईसाई पोषक भारतीय समाज सुधारक भारत में आये जिन्होंने भारतीय मान्यताओं को कुप्रथाओं का नाम देकर तथा उनको बहुत भयभयी बताकर ब्रिटिश शासन के आगे प्रस्तुत किया जिसके दुष्प्रभाव ये हुए की भारत की सनातन सम्बंधित सभी रीती रिवाजों तथा त्योहारों पर धीरे धीरे अंकुश लगने लगा।
कई सुधारकों ने सती प्रथा की आड़ में कई भारतीय मान्यताएँ बन्द करायीं और हिंदुओं को अपने अंकुश में लिया।
ईसाई मिशनरियों ने भारत को आर्य , द्रविणं और आदिवासी ग्रुप में डिवाइड किया तथा सभी भारतीयों को आपस में लड़ाकर एक दूसरे का दुश्मन बना दिया।
उन्होंने कहा कि आर्य यूरेशिया से आये हैं वो भारतीय नही है लेकिन सच्चाई यह थी की सभी भारतीय थे जिस तरह आज भारत में रहने वाला हर नागरिक भारतीय कहलाता है वैसे ही भारत जब आर्यावर्त था तब हर नागरिक आर्य कहलाता था,
लेकिन मैक्स मुलर ने आर्य को बाहरी बताते हुए एक थ्योरी दी जिसमें महाप्रलय के बाद जाफेथ ( जाफेथ नूह का पुत्र था, ज़्यादा जानकारी के लिए प्रथम भाग पढ़े) के कुछ वँशज दुनियाँ को जीतने के लिए भारत में आये और भारत में ही बस गये जिन्हें भारतीय आर्य बोला गया।
मैक्स मूलर (1823-1900) औपनिवेशिक शासकों और ईसाइयत के प्रचारक की तरह आधिकारिक रूप से कार्य करते थे !
उन्होंने 16 दिसम्बर 1868 को ब्रिटेन के विदेश मंत्री ओर्गोइल के ड्यूक को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि "भारत का प्राचीन धर्म(सनातन) अब पूरी तरह ध्वस्त होने के हो अगर ईसाइयत इस समय भारत में प्रवेश नही करती तो यह किसकी गलती होगी?
फिर उन्होंने लिखा की मैं वह दिन देखने के लिए जीवित नही रहूँगा फिर भी मेरा यह संस्करण वेदों का अनुवाद भारत के भविष्य और इस देश के लाखों मनुष्यों को ईसाइयत के लिए बहुत प्रभावित करेगा,
फिर उन्होंने लिखा की इन भारतियों को वेदों के मूल को अपने अनुसार दिखाया जाये और पिछले तीन हज़ार साल में जो कुछ भी इससे निकला वो सब नष्ट कर दिया जाये अर्थात भारतीय देवी देवताओं के प्राचीन वैभव को पूर्णतः भ्रस्ट क्र दिया जाये, तथा भारत की वर्ण व्यवस्था जो आज तक हिंदुओं के धर्मान्तरण की सबसे बड़ी रुकावट थी वह भविष्य में धर्मांतरण का सबसे बड़ा इंजन साबित हो सकती है बशर्तें कुछ बड़े भारतीय लोगों को लालच में रखकर अपने पक्ष में खड़ा कर लिया जाये"
इसी तरह मैकाले ( भारतीय एजुकेशन सिस्टम मैकाले एजुकेशन सिस्टम पर ही आधारित है) ने भी ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखकर जानकारी दी की "जब वो भारत भृमण पर निकले तब उन्हें कहीं भी कोई गरीब या भिखारी नही मिला भारत में एक सुसंगठित व्यवस्था है और आर्थिक रूप से बहुत ही संपन्न देश है अगर हमें इस देश को तोड़ना है तो इनकी रीढ़ की हड्डी की तरह सुद्रण व्यवथा को तोड़ना होगा तथा इनकी पुराणी मान्यताओं को तोड़ कर बाइबिल सम्बंधित मान्यताएँ देनी होगी तथा इनकी पुराणी ( वेद, पुराण ) एजुकेशन सिस्टम को बदलकर नया एजुकेशन सिस्टम बनाना होगा"
लेकिन आज भी ईसाईयों का यह धोखेबाज़ी का सिलसिला रुक नही रहा, आजकल ईसाई मिशनरी दिन प्रति दिन नया रूप धारण करते जा रहे हैं आज देश में हालेलुया ग्रुप बहुत ही ज़्यादा देश का वातावरण ख़राब कर रहे हैं,
आजकल जीसस के नाम पर जो कन्वर्शन का सिलसिला चल रहा है अगर वह अभी थमा नही तो भारत के लिए बहुत विकट स्तिथि बन जायेगा।
वहीँ दूसरी तरफ़ आज भी धर्म दीपिका और अग्नि मिनिस्ट्री नाम की बहुत सी मिशनरी शोध् पत्रिकाएँ हैं, बहुत से चेन्नल भी सुबह शाम झूँठी ईसाई मान्यताओं को प्रसारित करता है ।
इन नए बने हुए ईसाई मिशनरियों ने इन पत्रिकाओं तथा चैंनलों में दिखाया है की "ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में जो प्रजापति बताये गए हैं वो वास्तव में ईसा मसीह ही हैं"
ऐसे ही चेन्नई के लोकप्रिय ईसाई प्रचारक स्वयं को साधू कहने वाले साधू चेल्लप्पा ने भी कहा की वेदों में प्रजापति ईसा मसीह के आने का पूर्वानुमान था इसलिए बिना ईसा मसीह के वेदों की ख़ोज अपूर्ण है,
साधू चेल्लप्पा ने अपने लेख में लिखा है की
“Diwali, the festival of lights, is a Christian Festival; Animal Sacrifice is a Christian culture adopted by Hindus and Gayatri Mantra actually glorifies Jesus. The Vedas, the ancient Indian sacred writings had anticipated the coming of Christ to take away the sins of man. They call Him Purusha Prajapati the creator God who would come as a man to offer himself as a sacrifice. Jesus Christ came to fulfill the Vedic quest of the Indian people, because the Vedas are incomplete without Him, just as the Old Testament was fulfilled at the coming of the Messiah”।
ऐसे ही सन् 1961 में हिन्दू से ईसाई बने ऍम. देइवनयमम ने एक तमिल पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम था 'Was thiruvalluvar a Christian' जिसका शोध् था की संत थॉमस जो ईसा के म्रत्यु के बाद सन् 52 में भारत आये और उन्होंने सर्वाधिक प्रसिद्ध तमिल लेखक तिरूवल्लुर का धर्मान्तरण कराया जिससे "तिरुकुरल" एक ईसाई ग्रन्थ हो गया ( चूँकि तिरुकुलर तमिल का अब तक 2000 सालों में सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है, )
ऐसे ही देइवनयमम और उसको
साथियों ने एक और मान्यता दी जिसके अनुसार " संत थॉमस सन् 52 में भारत आये
और उत्तरभारत में ईसाईयत के प्रचार के लिए संस्कृत भाषा का उदय किया लेकिन
दुष्ट ब्राह्मणों और आर्यों ने उस भाषा को हथिया लिया,
और उन्होंने कहा की "वेदों की रचना ईसा मसीह के आने के काफी बाद अर्थात दूसरी शताब्दी में हुई थी।
और हिन्दू धर्म में वास्तुकला मूर्तिशिल्प और भक्ति से जुड़ाव थॉमस के ईसाईयत के प्रभाव से ही हुआ है।
और मिशनरियों ने कहा की ब्राह्मण संस्कृत और वेदांत शिक्षा बुरी शक्तियां
हैं जिन्हें समाज के पुनरशुद्धिकरण के लिए समाप्त कर देना चाहिए।
फिर इन मिशनरियों ने संत थॉमस की मृत्यु पर एक और नई कहानी गढ़ दी जिसके अनुसार " 3 जुलाई 72 को ईसा मसीह के शिष्य संत थॉमस पहाड़ी की ओर जाते समय कुछ चेन्नम्ब्रनार ब्राह्मणों से मिले जो ब्राह्मण बली चढ़ाने के लिए मंदिर जा रहे थे, उन ब्राह्मणों ने चाहा की सन्त थॉमस भी उनकी पूजा में शामिल हों, पर सन्त थॉमस ने बली चढ़ाने से जब उन ब्राह्मणों को रोका तथा सलीब के चिन्ह से उस पूजा स्थल को नष्ट कर दिया तब उन दुष्ट ब्राह्मणों ने गुस्से में ईसा मसीह के पुत्र संत थॉमस को भाले से गोद कर मार डाला"
जारी........