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मजबूर होकर मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ, प्लीज ज्यादा से ज्यादा शेयर करें । वैसे यह जानकारी सार्वजनिक करने का मेरा इरादा नहीं था, लेकिन चूँकि लोगों में जाती नुकसान का गुस्सा देशहित पर भारी होते दिखाई दे रहा है इसलिए कुछ hints शेयर कर रहा हूँ ।

गजवा ए हिन्द के बारे में अब तक काफी अवेयरनेस फ़ेल चुका है, लेकिन फिर भी, यह जानकारी आप को हिलाकर रख देगी यह लगभग शर्तिया कह सकता हूँ अगर आप संवेदनशील सरकारी विभागों में नहीं है ।

गजवा ए हिन्द के बारे में पहले कहा जाता था कि होगा जब अल्लाह की मर्जी । क्या होगा उसके बारे में लिखा गया है पर यह कब होगा इसकी कोई बात नहीं होती थी । लेकिन यहाँ हमें पता भी नहीं है कि इस विषय पर विस्तृत काम हो चुका है । एक narrative चलाई जाती है कि इस्लाम का समय लगभग 1500 सालों का है जब हूरों के लिए कन्फर्म्ड बुकिंग का मौका उपलब्ध होगा । और उस मौके में गजवा ए हिन्द का बहुत बड़ा महत्व है । न्यूमरोलोजी का सहारा लेकर काफी हिसाब लगाए गए हैं, कोई 2020 की बात कर रहे हैं, कोई 2022 की तो कोई 2025 की ।

लेकिन उनसे भी अधिक डीटेल में बात हो रही है वो है 2016 – 2017 -2018 की । लिंक दे रहा हूँ । यहाँ कुछ ऐसी घटनाओं का हवाला दिया जा रहा है कि ये बातें दिखाई दी तो समझ लीजिये । इशारा होगा, होते ही खड़े होकर टूट पड़ना है ।

www.EndTimesBook.com

बड़े डीटेल में काम है, फिलहाल फ्रंट पेज पर जो है उस से काम लीजिये । बाकी यहाँ छह बड़े वॉल्यूम भी मिलेंगे ।
वैसे क्या आप को पता है, ISIS / IS का झण्डा काला ही क्यूँ है और अगर उसे जलाता है कोई तो मुसलमानों को आग क्यूँ लगती है ? स्पष्टीकरण दिये जाते हैं वे निहायत झूठे ही होते हैं, जैसे वे उनके यहूदियों पर गुस्से के बारे में देते हैं । यह झण्डा IS का नहीं, इस्लाम का war flag है । बगदादी ने खुद को सय्यद (ह मुहम्मद का वंशज) घोषित करना भी इसी भविष्यवाणियों की शृंखला से संबन्धित है ।

उसने खुरासान में अपना केंद्र खोलने की घोषणा की उसका भी संबंध इन भविष्यवाणियों से है । When you see black flags rising in Khorasan... इस वाक्य को सर्च करें तो समझ में आयेगा इसका महत्व, क्यूँ यहाँ से लौंडे वहाँ जा रहे हैं, जब कि यह भी हमारे लिए प्रचारित किया जा रहा है कि IS तो इस्राइल की चलाई जानेवाली संघटना है, उसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं । बगदादी समय समय से मारा जाता है, लेकिन उसका मुर्दा नहीं पाया जाता । उसके बारे में भी कहा जाता है कि वो यहूदी है लेकिन मुसलमानों में उसको लेकर गालियां दो, देखिये कैसी प्रतिक्रियाएँ आती हैं। अल तकिया – शब्द सुना ही होगा आप ने ?

ISIS के मैगज़ीन का नाम Dabiq क्यूँ होता था इसका भी इन भविष्यवाणियों से संबंध है । इसके जितने भी इशू आए, सभी की कॉपी मेरे पास है, यूं ही बात नहीं कर रहा हूँ । और यह सब “अब ही क्यूँ” उसका उत्तर एक ही है, कि मुसलमान इन भविष्यवाणियों में जी जान से मानता है, आप के सामने कुछ भी कहें । और वो उन्हें पूरी होने की राह नहीं देखता और पूरी न हों तो अल्लाह या रसूल को नहीं कोसता बल्कि उन्हें सच्चाई में बदलने के लिए खुद प्रयास करता है ताकि उसका 72 का कन्फ़र्म बुकिंग हो जाये । आप को यह भी पता होना चाहिए कि अगर आप जो कर सकते हैं वह आप ने नहीं किया तो अल्लाह तो सब कुछ जानता है, बराबर हिसाब लेगा (कुरान 9:35 से 9:40 पढ़िये, आँखें खुलेंगी) - इस्लाम incentive का भी मजहब है यह समझ लीजिये ।

ऐसा नहीं है कि ये मूवमेंट चलानेवाले मास्टरमाइंड यह नहीं जानते होंगे कि यह सब उतने आसानी से नहीं होगा और न पूरा होगा । लेकिन इस्लाम हमेशा जीत में मानता है, कोई जीत छोटी नहीं, कोई हार आखिरी नहीं, यह ध्यान रखिएगा । इसका उद्देश जमीन खसोटने का होता, पाकिस्तान से बांगलादेश मिलकर मुघलिस्तान का होता । बांगला देश में ही मुघलिस्तान रिसर्च इंस्टीट्यूट कार्यरत है, क्या आप जानते हैं ? Ban भी नहीं है । और अगर गजवा ए हिन्द पूरा नहीं हुआ तो भी क्या हुआ, इस्लाम ने जमीन तो हथिया ही ली होती, मारे जानेवाले भी खुश, शहीद होने पर, 72 की बुकिंग फिर भी लागू होती ।

बात भटकती लगती है तो मुद्दे पर आते हैं, आप ने उस वेब साइट पर देख ही लिया होगा कि बात 2016 की है और 2016 तो बीत चुका । अब कुछ कड़ियाँ खुद ही जोड़िए । किस तरह से ताकत का टेस्टिंग हो रहा था ? किस तरह से मीडिया साथ दे रही थी ? किस तरह से प्रशासन में वामपंथी पैठ का दुरुपयोग हो रहा था ? किस तरह से पूरे बहुमती को असहायता का अनुभव कराया जा रहा था, खुद ही याद कीजिये । क्या हमें जगह जगह यह नहीं धमकाया जा रहा था कि आप हमे और एक बँटवारे के लिए मजबूर कर रहे हैं – किस आधार पर हो रहा था यह सब ?

किसी भी मूवमेंट की ताकत पैसा होती है और नकली नोट तथा कोंग्रेसी डुप्लीकेट और काला धन – कुल मिलाकर जो ताकत जमा हो गई थी, धक्का देने के लिए शायद पर्याप्त थी । बहुमती जनता असहाय फील कर रही थी और लालहरों का नंगानाच चल रहा था । क्या फर्क पड़ता है जैसे वाक्य पूरे बेशर्मी के साथ ब्राह्मणकुल में पूर्वजन्म के पाप के रूप पैदा हुए रविश कुमार उच्चारण कर रहे थे । लोग बाग गंभीरता से ऑप्शन तलाशने लगे थे – और उसमें आप भी थे । गाड़ी का इंजन रेज़ किया जा रहा था सब किंकर्तव्यविमूढ़ से देख रहे थे और अचानक नोटबंदी के साथ इस गाड़ी के टायरों की हवा निकाली गयी ।

लेकिन इंजन और गाड़ी अभीतक साबुत है ।

हिंदुस्तान से भी अधिक, हिंदुओं को ही यह शाप है कि व्यक्तिगत लाभ नुकसान को देशहित से ऊपर रखा जाता है । इसका कारण वही शिवलिंग पर दूध के अभिषेकवाली कहानी है । हर कोई सोचता है कि मैं पानी से अभिषेक करूंगा तो कुछ नहीं होगा, बाकी लोग तो दूध से ही करेंगे, मेरा जलाभिषेक कोई नहीं समझेगा । हर कोई यही सोचता है, एक बूंद भी दूध का नहीं चढ़ता । यहाँ भी यही, मेरा नुकसान हुआ, मुझे तो कुछ सबक सिखाने का मौका मिले, बाकी इतना बड़ा देश मेरे अकेले से थोड़े ही डूबेगा ?

समझ ही गए होंगे आप मैं क्या कहना चाह रहा हूँ ? गिले शिकवों का समय आयेगा, और अगर मौका गवा दिये तो रोने का ही समय आयेगा । कितने धंधों में से उखाड़े जा रहे हैं, दिख तो रहा ही होगा ? कितने धंधों पर बोर्ड तो पुराने हिन्दू मालिकों का है लेकिन बैठनेवाला हिन्दू नहीं यह भी पता ही होगा । क्यूँ नहीं इसपर सोचिए । और हाँ, उम्मीद है कि आप को नाती हिन्दू ही चाहिए होंगे, या फिर आप को भी क्या फर्क पड़ता है ऐसा तो नहीं ?

वैसे, पाकिस्तान में एक सूफी ख़ानक़ाह (मठ, आश्रम, स्थान कह सकते हैं) है, जो एक साइट चलाती है, http://www.ghazwatulhind.com देखिये क्या है यहाँ । और हाँ, जो इस साइट को चलाती है उस संस्था का नाम है Naqshbandiya OWAISIA ।
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इस से अधिक कह नहीं पाऊँगा, बस यह आशा है कि आप को हिन्दू ही रहना है और आप की अगली पीढ़ियों को भी हिन्दू ही रखना है । इसे शेयर करने की करबद्ध प्रार्थना है, और सभी core voter ग्रुप्स में खास कर ।

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