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डाक्टर की लापरवाही की सजा भोग रहा युवक जिंदगी से जंग लड़ रहा है। दाहिना पैर दो बार काटने के बावजूद इन्फेक्शन उसकी जान का दुश्मन बन गया है। मामला बस्ती जनपद के मुण्डेरवां थाना क्षेत्र के भैसा पांडे गांव का है। यहां के अरविन्द पाण्डेय के ऊपर मानों मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा हो। उन्हे समझ में नही आ रहा है आगे क्या करें। वे बेटे को बचाने के लिये सबकुछ त्यागने को तैयार है किन्तु नियति को जो मंजूर होगा वही मिलेगा। फिलहाल दिल्ली के एक अस्पताल में वे बेटे को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं।

अरविन्द के तीन बेटे हैं। बड़ा बेटा आशीष ग्वालियर में बीएसएफ की ट्रेनिंग ले रहा है। बीच वाला बेटा दिल्ली में रहकर तैयारी कर रहा है। हिमांशु सबसे छोटा है। घर रहकर बाप की जिम्मेदारियों में हिस्सा बंटाने में हिमांशु का कोई सानी नही। वह 15 जून को खेत में सिंचाई कर रहा था, इसी बीच पम्पिंग सेट इधर उधर करते समय उसके पैर पर गिर गया। हिमांशु को गंभीर चोट आयी। अरविन्द के आनन फानन में उसे जिला अस्पताल लाया गया। यहां उस वक्त आर्थो सर्जन डा. डीके गुप्ता डियूटी पर थे। उन्होने हिमांशु को देखा। जिला अस्पताल में सुविधाओं का टोटा बताकर स्टेशन रोड स्थित अपने निजी अस्पताल ओम सेण्टर में भर्ती करने को कहा।

मजबूर बाप ने बेटे को सरकारी अस्पताल से निकालकर निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। हिमांशु में पैर में गहरा जख़्म था। डाक्टर ने उसकी अनदेखी कर पैर के ऊपर प्लास्टर कर दिया। डाक्टर का असिस्टेण्ट मना करता रहा, कि जख़्म में संक्रमण का खतरा बना रहेगा। फिलहाल उन्होने उसकी बात को दरकिनार कर दिया। दवाइयों का पर्चा थमाकर तीन दिन बाद दिखाने को कहा।

17 जून को पुनः डाक्टर के पास ले आये। प्लास्टर खोलते ही डाक्टर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। कहा हमसे गलती हो गयी। उन्हे समझने में वक्त नही लगा कि उनकी लापरवाही युवक की जान पर बन आयी है। स्थिति देखकर डा. डीके गुप्ता ने जिला अस्पताल से कागज मंगवाकर लखनऊ रिफर कर दिया। आप समझ सकते हैं कि सरकारी अस्पताल को किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। मरीजों को डरा धमकाकर किसी तरह निजी अस्पताल में भर्ती कराना ही उनका एकमात्र उद्देश्य बन गया है।


परिजन हिमांशु को लेकर लखनऊ पहुंचे, यहां लालबाग स्थित एक नर्सिंग होम के डाक्टरों ने युवक की जान बचाने के लियेपैर काटना ही एक मात्र विकल्प बताया। यहां से उसे दिल्ली रिफर कर दिया गया। 19 जून को दिल्ली में डाक्टरों ने बिना वक्त गंवाये पैर काटने की सलाह दी। हिमांशु का दाहिना पैर घुटने से नीचे काट दिया गया। संक्रमण इसके बावजूद भी नही रूका। डाक्टर ने दोबारा पैर काटने को कहा। मरता क्या नही करता। जान बचाने के लिये करना ही था। हिमांशु का पैर घुटने के ऊपर से दोबारा काट दिया गया। ताजी रिपोर्ट ये है कि संक्रमण काफी अंदर तक है। अब पैर काटना पड़ा तो उसे बंचाना मुश्किल हो जायेगा। फिलहाल डाक्टर अपने स्तर से प्रयास कर रहे हैं। युवक की लाचारी साफ उसके चेहरे पर देखी जा सकती हैं।  


अब सवाल उठता है कि शैतान की शक्ल में डाक्टर मरीजों की जान से कब तक खेलते रहेंगे। सरकारी सेवा में रहते हुये एक डाक्टर निजी अस्पताल में सेवायें कैसे देता है? क्या सीएमओ को इसकी जानकारी नही है? अगर है तो कार्यवाही क्यों नही की गयी? क्या योगी सरकार का सरकारी डाक्टरों की निजी प्रेक्टिस पर रोक लगाने का फरमान महज दिखावा है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब अफसरों की संवेदनहीनता की भेंट चढ़ रहे हैं। ऐसे न जाने कितने हिमांशु डाक्टर की लापरवाही के कारण जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।

अभी एक मासूम बच्ची की मौत का प्रकरण सामने आया था। बच्ची के इलाज में लापरवाही साफ जाहिर थी। मामला नवयुग नर्सिंग होम का था। फरियाद मुख्यमंत्री तक पहुंची है लेकिन नतीजा सिफर है। ताजा मामला भी मुख्यमंत्री तक पुहंच चुका है, जांच के लिये सीएमओ ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है। सवाल उठता है कि सीएमओ रहते हुये जो डाक्टर की तमाम ज्यादतियों पर परदा डाल रहा है वह निष्पक्ष जांच करवा पायेगा? ऐसे लोगों की काली कमाई में बॉस का भी हिस्सा होता है कौन नही जानता।

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