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मुलायम आज न कल नहीं रहेंगे। पर अखिलेश के पास एक लंबी पारी है। शिवपाल यादव सपा में कितने ही बड़े हों पर जनता के सामने उनकी क्या हैसियत है? मुलायम जी की उम्र ढल चुकी है। आज सपा के पास कुछ बचा था तो वह अखिलेश यादव। अगर अब सुलह नहीं हुई तो सपा खतम समझो। पर यह सिर्फ सपा का अंत होगा, अखिलेश का नहीं। अखिलेश अगर इस फैसले से अगर हटे नहीं तो उनका कद भारतीय राजनीति में बहुत उपर हो जायेगा।

एक स्थापित पार्टी को छोड़ कर निकलना बहादुरी का काम है। चाहते तो आज तक जिस तरह दबे हुये मुख्यमंत्री बने हुये थे आगे भी बने रह सकते थे। लेकिन मौजूदा हार को चुन उन्होंने एक मजबूत भविष्य चुन लिया है। सपा का नाम छोड़कर आज सपा का सबकुछ अखिलेश के साथ है। जहाँ शिवपाल महज सीट बाँटकर होने वाली कमाई के लिये पार्टी के साथ हैं वहीं अखिलेश इन सब से काफी उठकर यहाँ से निकले हैं। अखिलेश के इस फैसले की सराहना की जानी चाहीये। वहीं मुलायम सिंह यादव जी ने जीवन में बहुत सफलताएँ देख ली है। अब और क्या तमन्ना रह गयी होगी? वह हर तरह से विजेता हैं। भाई परिवार को पार्टी दे दी, और बेटे को आजादी।

इसका राजनीतिक असर यह होने जा रहा है कि भाजपा और बसपा को जबरदस्त फायदा मिलेगा।सपा जब दो हिस्सों में बंटेगी तो वोट भी बटेंगे, सपाइयों का युवा वोट पुरी तरह अखिलेश के साथ होगा। भारतीय वोटरों की आदत है कि उन्हें जिसे हराना है उसके विपक्ष में जो पार्टी ज्यादा मजबूत दिखती है उसे वोट डाला जाता है। तो जो महज बसपा, काँग्रेस को हराना चाहते थे और अब तक सपा को वोट डालने की सोच रहे थे वह भाजपा को वोट देंगे, भाजपा वाले तो भाजपा के साथ हैं ही, और जो चुनाव के दिन अपना मत बनाते हैं वह भी भाजपा की ओर जायेंगे।

जो घोर सपाई हैं उनका अधिकतम वोट अखिलेश को जायेगा। भाजपा का फायदा है तो साथ ही नुकसान भी है। कारण पहले जहाँ मुसलमान वोट सपा बसपा में बट रहा था वह एकमुश्त बसपा को जायेगा ही। एक समीकरण यह भी हो सकता है कि मुसलमान वोट अब सपा के दो भागों, बसपा, काँग्रेस, ओवैसी अन्य में बट जाये। पर इसके अनुमान कम ही है। मुकाबला अब पुरी तरह भाजपा बनाम बसपा होने जा रहा है। खैर चुनाव में समय है। कहीं यह कुनबे की लड़ाई फिर से अपनी विफलताओं को भुलाने के लिये की गई नौटंकी ना साबित हो।


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