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आरटीओ दफ्तर में हुई छापेमारी के दूसरे दिन सन्नाटा छाया रहा। प्रशासन की दहशत के कारण ऑफिस के अंदर और बाहर काम कर रहे बिचैलिये नज़र नही आये। महत्वपूर्ण पटल पर कुर्सियां खाली थीं। उधर छबिलहां गांव के दबंगों ने भी कहा कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को यहां काम नही करने देंगे। उनका कहना है कि ऑफिस के अंदर भी विभिन्न पटलों पर काम कर रहे प्राइवेट लोगों को यहां से हटाया जाये। सूत्र बताते हैं कि बायोमेट्रिक से लेकर कैश काउण्टर तक बाहरी व्यक्तियों के ऊपर ही कार्यालय के अधिकांश कार्य निर्भर हैं। सरकारी कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त नही है। ऐसा केवल बस्ती में नही बल्कि प्रदेश के करीब करीब सभी दफ्तरों में है जहां बाहरी व्यक्तियों के भरोसे दफ्तर चल रहा है। आपको बता दें आरटीओ दफ्तर जबसे यहां आया है यहां गांव के ही लोगों का सिक्का चलता है। बिचैलिये हों या फिर अफसर कोई उनके खिलाफ जाने का साहस नही जुटा पाता। 

दूसरी ओर प्रशासन की ओर से की गयी कार्यवाही को एकतरफा करार देते हुये लोग इसे आधा अधूरा ऑपरेशन बता रहे हैं। एक बात बिलकुल तय है कि पटल सहायकों और अफसरों की मिलीभगत के बगैर यहां बिचैलिये अपना पांव न पसार पाते। ऐसे में केवल बिचैलियों के खिलाफ कार्यवाही उचित नही है। प्रशासन को चाहिये कि खुफिया तंत्र को सक्रिय कर इसका पता लगायें कि पूरे मामले में कौन पटल सहायक और अफसर संलिप्त हैं। जब तक ऐसा नही होगा प्रशासन पर दोहरे मापदण्ड के आरोप लगने स्वाभाविक हैं।

प्रबुद्धजनों का कहना है कि दोहरा मापदण्ड कभी सुशासन का हिस्सा नही रहा है और न ही रहेगा। ऐसे में आरटीओ दफ्तर के बाहर बैठकर अपनी जीविका चला रहे बिचैलियों को डराकर प्रशासन आम जनमानस को भला क्या संदेश देना चाहता है। क्या इससे यहां का भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। क्या आम जनमानस को घूसखोर अफसरों का दंश नही झेलना पड़ेगा। इन समस्याओं के समाधान के लिये प्रशासन को पूरा ऑपरेशन करना होगा। वरना ऐसी बहुत सी कार्यवाहियां हुई हैं, नतीजा सिफर है। कुछ दिन बाद फिर हर कोई पुरानी राह अख्तियार कर लेगा।

कुल मिलाकर प्रशासन द्वारा आरटीओ दफ्तर पर की गयी छापेमारी की हर कोई सराहना कर रहा है लेकिन घूसखोर और कामचोर पटल सहायकों और अफसरों को कार्यवाही की जद में लेने की जबरदस्त आलोचना हो रही है। 50 हजार तनख्वाह मिलने के बाद भी बिना रिश्वत लिये जिनका पेट नही भरता उन्हे बंचाने के पीछे प्रशासन की मंशा क्या है। जबकि 100-200 रूपया रोज कमाई करके अपनी गृहस्थी चलाने वालों पर 419, 420 के तहत कार्यवाही की गयी है। भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था कौन नही चाहता, लेकिन जनता इमानदार हो जाये और अफसर बेइमान बना रहे तो सरकारें किस सुशासन की बात करती हैं। फिलहाल देखना होगा कि छापेमारी से आरटीओ महकमे के घूसखोर अफसरों की आदत में कोई बदलाव होगा या फिर सबकुछ बदस्तूर जारी रहेगा।

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