क्या सभी धर्मों की सीख एक ही होती है? शांति और अमन की !
कुछ युवा खड़े हुए और आपत्ति जताई । सीधा पूछा, क्या आप ने कुरआन पढ़ी है जो ऐसी बात बोल रहे हैं ? इस्लाम का रवैया साफ है इस मामले में । इस्लाम की सत्ता में ही शांतता की संभावना होने की बात है । अन्य धर्मों को वे समान नहीं मानते और हम जैसे मूर्तिपूजकों को तो बिलकुल ही समान नहीं मानते ।
हाल ही में हमारे एक दिल्लीवासी मित्र से यह किस्सा सुना । द्वारका में रहते हैं ।
वहाँ किसी मंदिर में प्रवचन हो रहा था, प्रवचनकार ने प्रवचन के बीच बोल दिया कि सभी धर्मों की सीख एक ही होती है, शांति और अमन की । सब धर्म समान हैं । कुछ युवा खड़े हुए और आपत्ति जताई । सीधा पूछा, क्या आप ने कुरआन पढ़ी है जो ऐसी बात बोल रहे हैं ? इस्लाम का रवैया साफ है इस मामले में । इस्लाम की सत्ता में ही शांतता की संभावना होने की बात है । अन्य धर्मों को वे समान नहीं मानते और हम जैसे मूर्तिपूजकों को तो बिलकुल ही समान नहीं मानते ।
प्रवचनकार बौखला गए, श्रोतागण भी, लेकिन युवा अपनी बात पर अडिग रहे । जय हो इंटरनेट और गूगल बाबा की, तुरंत अपनी बात को साबित कर ही दिखाया । प्रवचन करनेवाले महाराज जी को भी अपनी भूल का एहसास हुआ और श्रोतागण भी इस नई डेवलपमेंट से काफी लाभान्वित हुए ।
कभी सूरह 9 आयत 120 देखिये, सीधा समझ जाएँगे कि बिलावजह मंदिर क्यों तोड़े जाते हैं, अजान के भोंपुओं की आवाज न्यायालय की मर्यादा को खुलेआम तोड़कर ज्यादा से ज्यादा क्यूँ बढाई जाती है । कभी सूरह 9 आयत 229 देखिये कि जज़िया क्या होता है । एक बाहरी लुटेरा अपना शासन थोप रहा है और उसका मजहब उसके जुल्म का पूर्ण समर्थन कर के उस जुल्म को सब से बड़ा पुण्य बता रहा है ।
मजहब यही सिखाता । काफिर से बैर रखना ।
दोस्ती यारी और संबंध बिगाड़ने की कोई जरूरत नहीं । बस एक बात सोचिए । वे आप को अपने घर नहीं बुलाते । समझ जाइए, नहीं तो रिश्तेदारी बनेगी, संबंध टूटेंगे ।
वैसे यह संस्कृत सुभाषित है विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् । अमित्रादपि सद्वृत्तं अमेध्यादपि कांचनम् ॥ अर्थ है - विष में भी अमृत मिले तो ग्राह्य है, अच्छी बात अगर बच्चा भी कहे तो ग्राह्य है । अच्छी खबर अमित्र से भी मिले तो ग्राह्य है और सोना गंदगी में पड़ा मिले तो भी ग्राह्य है । आप ने भी पढ़ा ही होगा । इसका एक पाठभेद मैंने पढ़ा है - विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् । अमित्रादपि सद्वृत्तं स्त्रीरत्नम दुष्कुलादपि॥ अर्थ है अच्छे कुल से न हो फिर भी स्त्रीरत्न ग्राह्य है ।
यहाँ मुझे हमेशा यही सूझता है – स्त्रीरत्नम मुस्लिमादपि ।। होता है यह भी, अल्लाह बहुत दयालु है, सनातन की गंगा सब को पावन कराती है । सुपात्र हो तो अवश्य हो । लोटाभर गंगाजल सागर में गिरे तो खारा हो जाय, पीने लायक न रहे लेकिन लोटाभर सागर का जल गंगा में समा जाता है, गंगा सनातन है, पापनाशिनी है ।
जय हिंद !