दोहरा रवैया छोडो अब भारत जाग रहा है
कर्णी सेना के इस कदम को ये कथित धर्मनिरपेक्ष लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने वाला कदम बता रहे हैं । उनमें से कईयों का तर्क तो यह भी है कि भंसाली को अपनी पसंद से फिल्म बनाने और अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की आजादी है और उस पर लगाई गई रोक व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है ।
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर संजय लीला भंसाली और रानी पद्मावती के मुद्दे छाए हुए हैं लेकिन आज मैं आप सभी लोगों के सामने इस मुद्दे से इतर एक दूसरा ही मुद्दा सामने लाने वाला हूं ।
सोशल मीडिया के पर पिछले कुछ दिन से खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले लोग #भंसाली के मुंह पर पड़े थप्पड़ का विरोध कर रहे हैं । कर्णी सेना के इस कदम को ये कथित धर्मनिरपेक्ष लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने वाला कदम बता रहे हैं । उनमें से कईयों का तर्क तो यह भी है कि भंसाली को अपनी पसंद से फिल्म बनाने और अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की आजादी है और उस पर लगाई गई रोक व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है ।
मेरा उन सभी कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों से केवल एक प्रश्न है क्या इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिलेगा जो हिंदू और हिंदुत्व के खिलाफ काम करेंगे । हिन्दू समाज में प्रतीकों के साथ खिलवाड़, हमारी आस्था का मज़ाक और हमारे साझे गर्व के विषय ऐतिहासिक चरित्रों के साथ छेड़छाड़ क्या यही इनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ?
अगर इन्ही कामो को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते हैं तो मै इस स्वतंत्रता के खिलाफ हूँ ।
कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर एक युवा कवियत्री ने बंगाल में हो रहे सिलसिलेवार दंगो पर अपनी राय जाहिर करते हुए एक कविता पोस्ट की और उसके बाद से ही उसको जान से मारने की धमकी और कई प्रदेशों में उसके खिलाफ FIR दर्ज करवाई गयी । उसके खिलाफ ऐसा माहौल बना दिया गया जिससे उसे माफ़ी मांगनी पड़ी ।
जब सोशल मीडिया पर उस युवा कवियत्री के खिलाफ फतवे जारी किए जा रहे थे तब यह कथित धर्मनिरपेक्ष लोग और उनकी प्रगतिशीलता किस बिल में छुप गई थी ? क्यों यह डरपोक लोग उस लड़की के समर्थन में सामने नहीं आये ? क्या आशु परिहार के अधिकार और स्वतंत्रता किसी मायने में भंसाली से कम हैं ?
मैं किसी भी प्रकार की कट्टरता का समर्थक नहीं हूं लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी विचारधारा को जबरदस्ती दूसरे के ऊपर थोपने का प्रयास करता है तो इसका कड़े शब्दों में विरोध होना ही चाहिए । हम अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने के लिए स्वतंत्र हैं और हमें यह स्वतंत्रता हमारे संविधान ने दी है जब तक हमें स्वतंत्रता की कीमत नहीं समझेंगे जाने अनजाने कई लोग हमारे इस छोड़ो जाने दो वाले रवैया का फायदा उठाते रहेंगे ।
सोशल मीडिया पर भी #आशु_परिहार को वह समर्थन नहीं प्राप्त हुआ जिसकी वह हकदार थी आखिर में दबाव में आकर एक उभरती हुई आवाज को चुप होना पड़ा ।
कई बेकार के विषयों पर लगातार पोस्ट करते रहना, हंसी मजाक करते रहना और आंखों के सामने आ जाने पर भी मुद्दों पर अपनी राय न रखना मानसिक गुलामी का ही एक चरण है । अपनी आवाज उठाइए #आशु_परिहार के पक्ष में अपनी वॉल पर कम से कम एक लाइन तो लिखिए । बताइए भारत की उन बेटियों को कि किसी भी परिस्थिति में हम कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ हैं ऐसी कोई भी आवाज जो हमारे हक के लिए उठेगी हम उसका समर्थन करते हैं ।