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क्या बचाना चाहते हैं आप ?
धर्म, बहन बेटियाँ, खुद का हिन्दू अस्तित्व या दो पैसे ?
सस्ता कितना महंगा पड़ेगा, सोच लीजिएगा !

कभी जानने की कोशिश की है, क्यूँ सस्ता देते हैं, कैसे सस्ता दे सकते हैं ?

दिल्ली में हमारे एक मित्र हैं, उनके ऑफिस आए एक अन्य मित्र ने यह बात सुनाई । उसे कुछ लोहे की ग्रिल बनवानी थी, हिन्दू का यूनिट रेट 4 रुपये ज्यादा था । कुल फर्क कुछ साढ़े तीनसौ रुपयों का था । इन साहब ने रेट कम कराने की कोशिश की, नहीं हुआ, लेकिन फिर भी हिन्दू को काम दिया। लेकिन उसे कोसा डांटा बहुत कि रेट ज्यादा थी, वो कैसे कम दे रहा था ।

हमारे मित्र ने ऊसे कुछ सवाल पूछे और जवाबों से समझाया कि उसने कैसे सही किया । जैसे कि हिन्दू का यूनिट रजिस्टर्ड था, सभी टैक्स आदि भरता था, जिस जगह में यूनिट चला रहा था वहां के भी बिजली पानी इत्यादि कुछ खर्चे थे ही । उसके बनिस्बत सस्ते वाले पार्टी की जगह कब्जाई थी, कोई रजिस्ट्रेशन नहीं, कोई टैक्स नहीं, बिजली खंभे पर कांटे से ।

याने अगर देश का नुकसान आदि शब्द आप के लिए मायने रखते हैं तो सोचने लायक बात थी ही ।

और अगर उनके मेसेज वायरल होते हैं कि अपनेवालों के साथ ही धंधा करना है किसी भी कीमत पर, तो सोचना हमें भी है । कुछ और बातें भी बताई जैसे अपनों को हमें ही संभालना है तो वे भी हमें संभाल लेंगे, परस्पर अवलम्बिता आर्थिक व्यवहारों में लाकर सामाजिक एकता और ताकत भी बढ़ानी आवश्यक है ।

मित्र सहमत हुए, अच्छा लगा । यह फर्क है रेट का, आप अगर सस्ते के पीछे न दौड़े तो हिन्दू धंधे में टिका रहेगा, धंधा उसके हाथ रहेगा।

अकोला के एक खटीक बंधु से बात हो रही थी। निराश थे हिंदुओं के रवैये से । कह रहे थे कि हलालिए कभी चोरी का बकरा भी बेचते हैं, बकरे की चोरी की कोई फरियाद नहीं लेता और अगर किसी बकरदाढी पर शक जाहिर करें तो पुलिस सुनने को भी तैयार नहीं होती । मुफ्त में उड़ाए बकरे का मांस थोड़ा सस्ते में बेचते हैं और हिन्दू सस्ते में बिक जाता है ।

धंधे से उठा हर हिन्दू समाज के लिए काम का नहीं रहता । सस्ते के लिए हम अगर बिक जाएँ तो धंधा हिंदुओं से चला जाएगा, समाज के सबल बनाने के लिए सक्षम हिंदुओं की कमी होगी । स्थानान्तर होगा, लोग चले जाएँगे, उनकी जगह भरी जाएगी और आप को पता चले उसके पहले ही आप खुद को घिरा हुआ पाएंगे । वेलकम टु कैराना, मालदा, मेलविशारम..... कश्मीर याद है ना जहां औरतों को छोड़कर जाने को कहा गया था ?

सरकार, राजनेताओं की होती है और उनसे इस मामले में उम्मीद लगाना बेकार है यह हम देख चुके हैं । यह समझ लें कि वे विरोधियों के काम करते हैं तो क्यूँ करते हैं । इसका उत्तर भी आप जानते हैं । विरोधी एकमुश्त हैं । इसलिए हैं क्योंकि अपना पैसा अपने में ही रखते हैं । सस्ते की लालच में सबाब खराब नहीं करते । और हाँ, हिन्दू को धंधे से उठाने के लिए नुकसान बर्दाश्त भी किया जाता है क्योंकि अकेले आदमी को यह नुकसान नहीं उठाना पड़ता ।

शायद आप ने यह नहीं सोचा होगा कि सस्ता इतना महंगा होगा ।

अच्छा, आप ने वह कहानी तो सुनी ही होगी जहां राजा, प्रजा से शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक करने कहता है और पाता है कि जलाभिषेक ही हुआ था । हर कोई सोचता है कि बाकी तो दूध बहाएँगे, मैं मेरा दूध बचाऊंगा ।

कुछ कहना है तो स्वागत है वरना शेयर करने का अनुरोध तो है ही ।

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