लिपस्टिक अंडर माय बुर्का - दर्द एक क़ब्र का
प्रकाश झा ने एक फिल्म बनाई है- लिपस्टिक अंडर माय बुर्का जिसको पास करने का साहस भी पहलाज निहलानी ने नही किया क्योंकि 'नंगे से सब डरे', यदि सेंसर ने इसे पास किया तो कठमुल्लों का विरोध झेलने का साहस उच्च शिक्षित और सम्पन्न वर्ग को भी नही है। क्या मुर्दों की घर वापसी नही हो सकती अघोरी? तुम कुछ करो ....
दर्द एक क़ब्र का
साँझ के धुंधलके में एक गांव के बाहर से गुजरते अघोरी ने एक टूटा सा चबूतरा देख उस पर बैठने का विचार किया। पास के गांव में छिटफुट प्रकाश फ़ैल रहा था। आज की रात्रि इसी चबूतरे पर बिताने की सोच अघोरी ने अपने माथे पर बंधे भगवे वस्त्र को चबूतरे पर बिछाया। वो बैठा ही था कि सामने पड़े मिट्टी के ढेर से आवाज आई- आज मेरी कथा सुनाते जाओ अघोरी, मैं इस कब्र में पड़ा कयामत की प्रतीक्षा कर रहा पर आज मेरे गांव की दशा देख मैं स्वयं को इन सबका दोषी मान रहा और नर्क का अनुभव कर रहा हूँ।
अघोरी बोला- कौन हो तुम और स्वयं को किन कर्मों का दोषी मान रहे? अपना कष्ट मुझसे कहो, क्या मैं कुछ कर सकता हूँ ताकि तुम्हारा दुःख कम हो?
कब्र से आवाज आई- मैं रामनाथ पांडे हूँ।यह गांव मेरी आठवीं पीढ़ी है, पिता ने एकदिन क्रुद्ध होकर मुझे घर से निकल जाने को कहा था; एक फकीर ने मौके का लाभ लेकर मुझे बहलाया और उस क्रोध में मैं मुसलमान हो गया। पिता की जगहंसाई हुई और धीरे धीरे मैंने गांव के एक युवक को किसी मुस्लिम युवती के चक्कर में फंसा मुस्लिम बनाया। उसके बाद एक चोर को जिसे गाँव वालों ने पीटा था, एक ठग जो पुर्तगालियों की जेल से भागा था उसे भी मैंने मुसलमान बनाया और जब शक्ति बढ़ गई तो पूरे गाँव को धर्मभ्रष्ट करने मैंने कुएं में गोमांस डाल दिया।
अघोरी बोला- सदियों पूर्व के प्रतिशोघ का तुम्हे क्या लाभ मिला? पिता से द्वेष पूरा करके तो तुम्हें विजयी अनुभव हुआ होगा, फिर आज के दुःख का कारण क्या है?
प्रेत बोला- कारण है अघोरी, जिस गांव को मैंने मुस्लिम बनाया वो गांव आज अपनी आधी आबादी को जीवन का भी पूरा हक नही दे रहा। यह देखकर मेरा हृदय फट रहा।
जिस जिद और कठमुल्लेपन को मैं अपनी जीत समझ रहा था वह नर्क है। सत्य है अघोरी की स्वर्ग और नर्क सब यहीं है और मैं नर्क भोग रहा हूँ अपनी बेटियों की दुर्दशा देख कर।
एक मजदूर परिवार की सामान्य महिलाओं को ग्रामीण परिवेष में जो स्वतंत्रता है वह एक संपन्न शहरी मुस्लिम महिला को उपलब्ध नही। गरीब ग्रामीण महिला सुबह उठकर अपने बच्चों को संभालकर कहीं मजदूरी करने जाती है, दो पैसे कमाकर पति का सहयोग करती है। घर के निर्णयों में उसका दखल होता है पर संपन्न मुस्लिम समाज में भी यह अवसर नही मिल पाता। उच्च शिक्षित मुस्लिम महिलाएं घरों में बैठी हैं क्योंकि उन्हें बाहर निकलने की अनुमति नही। सबसे बुरी दशा गरीब और ग्रामीण मुस्लिम महिलाओं की है जिनको सामान्य स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध नही। समाज को बदलना नेतृत्व की जिम्मेदारी है तो क्यों कोई दल इसपर आवाज नही उठा रहा। 70 वर्षों से मुस्लिम समाज की अगुवाई करने वाले कांगेस, सपा, बसपा को यह मुद्दा क्यों नही दिख रहा।
प्रकाश झा ने एक फिल्म बनाई है- लिपस्टिक अंडर माय बुर्का जिसको पास करने का साहस भी पहलाज निहलानी ने नही किया क्योंकि 'नंगे से सब डरे', यदि सेंसर ने इसे पास किया तो कठमुल्लों का विरोध झेलने का साहस उच्च शिक्षित और सम्पन्न वर्ग को भी नही है।
क्या मुर्दों की घर वापसी नही हो सकती अघोरी? तुम कुछ करो, समय चक्र को पीछे ले चलो अघोरी, मुझे अपने पापों के प्रायश्चित का अवसर दिलाओ।
उसके क्रंदन से शिलाएं कांप उठी। अघोरी भावुक हो उठा, उसके नेत्र सजल हो उठे और अश्रुबुंद उसके गालों पर लुढ़क पड़े। विवश अघोरी उठा और वापस वन की ओर प्रस्थान कर गया।