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सुहागरात

उषा और निशा ... ll दिल्ली के विकासपुरी के मशहूर कारोबारी सुभाष तायल की लाडली बेटियां..ll उषा.. निशा से 2 वर्ष बड़ी थी। उषा का रंगरूप जहां ठीक-ठाक था वहीं निशा बेहद खूबसूरत थी। जहां भी जाती उसकी सुंदरता का सिक्का जम जाता । सभी उसे दुलारते पुचकारते..ll

दोनों का बचपन संपन्न परिवार की छत्रछाया में सुख पूर्वक बीत रहा था। दोनों एक साथ लुका छुपी खेलती.. तो कभी गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाती..ll उषा.. निशा को अक्सर चिढाया करती कि..." जैसा तेरा गुड्डा काला कलूटा है ना.. वैसा ही तेरा दूल्हा होगा..ll".. निशा भी तमक कर जवाब देती ..." अरे तू देख लियो..मेरे लिए तो कोई राजकुमार आएगा ..ll"

वक्त बीतता रहा..ll दोनों ने यौवन की दहलीज पर कदम रखा। निशा हर मामले में उषा से बढ़कर थी.. उसके रंग रूप की चर्चा तो पूरे समाज में होती ही थी.. मगर रंग रुप के साथ साथ पढ़ाई.. पाककला ...गृहकार्य में भी वह दक्ष थी l इसी वजह से उसमे बचपन से ही एक सुपिरीयोरिटी काम्प्लेक्स का भाव था। उसके व्यक्तित्व में एक छिपा सा अहंकार था । वह बचपन से ही परिवार वालों.. . रिश्तेदारों.. पड़ोसियों के मुंह से अपनी तारीफ सुनते-सुनते बड़ी हुई थी ll

उषा भी सुंदर है....मगर निशा का तो जवाब नहीं...

खाना तो उषा भी अच्छा बनाती है मगर निशा जैसा नहीं
बना सकती ...

निशा को देखो फिर क्लास में अव्वल आई है और..उषा फिर से सिर्फ पास हुई है...

और उषा ही क्यों आस पड़ोस और क्लास की लड़कियों से भी जब भी उसकी तुलना की जाती है वह हमेशा 21 घोषित की जाती थी। इन्ही तारीफो के सदके उसके अवचेतन में खुद के नंबर वन होने की भाव भर दिया था ।। उसे सदा यही लगता था कि कोई भी दूसरी लड़की उसके मुकाबले कुछ नहीं है।

सुभाष तायल की समाज में काफी प्रतिष्ठा थी।। इधर बेटियां बड़ी हुई.. उधर उनके लिए रिश्ते आने लगे ..और एक शुभ संयोग में उषा का रिश्ता लक्ष्मी नगर निवासी अजय हो गया l

अजय एक अमीर और प्रतिष्ठित खानदान से ताल्लुक रखता था ...अपने पिता का एकलौता बेटा था और बहुत हैंडसम था ll निशा ने जब अजय को देखा तो मानो सम्मोहित हो गई ll 6 फुट से निकलता कद.. गठीला बदन... गेहुआ रंग ..तीखे नैन नक्श और बेहद सलीकेदार..ll साथ ही साथ बेहद अमीर ll..सचमुच वह किसी भी नव यौवना के सपनों का राजकुमार हो सकता था ।।

उषा और अजय की शादी खूब धूमधाम से हो गई। सुभाष तायल ने पैसा खर्च करने में कोई कमी नहीं रखी। विवाह उत्सव के दौरान निशा सज संवर कर विभिन्न आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी.. हर जगह आगे-आगे थी। उसके रंग रूप का जलवा कुछ ऐसा चढा था कि वर पक्ष के लड़कों के दिल पर मानो बिजलियाँ पड़ी थी... तो लड़कियां इर्ष्या से सुलग उठी थी। पूरे विवाहोत्सव में निशा के रंग रूप और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व की चर्चा थी। खैर विवाह संपन्न हुआ और उषा अपने पिया के घर चली गई। सपनों के एक सुंदर संसार से निकली तो कहीं अधिक सुंदर और सजीले संसार में चली गई । अजय हर लिहाज से एक अच्छा जीवन साथी साबित हुआ था.. और दोनों की गृहस्थी सुखपूर्वक चलने लगी lll

कुछ अर्से बाद निशा के लिए भी रिश्ते आने लगे। मगर सुपीरियरोरिटी काम्पलेक्स के भ॔वर में फसी निशा को कोई भी रिश्ता पसंद नहीं आता था । वह हर लड़के की तुलना मन ही मन अजय से करती थी.. कोई लड़का लुक में अजय से कमतर होता तो कोई पैसे में...ll किसी का परिवार बड़ा होता तो किसी की गाड़ी और कोठी छोटी होती ll निशा एक तरह से मृगतृष्णा में जी रही थी।। उसके अवचेतन को यह कबूल नहीं था कि उसका घर वर किसी भी लिहाज से उषा से कमतर हो..ll अपनी इसी महत्वाकांक्षा में उसने कई अच्छे रिश्ते ठुकरा दिये। उसके पापा मम्मी उसे बहुत समझाते थे कि छोटी मोटी किसी बात के लिए इतने अच्छे रिश्ते ठुकराना ठीक नहीं.. मगर निशा के दिमाग में तो नंबर वन होने का मुगालता चढा था ।।

इसी उहापोह मे 2 वर्ष बीत गए ..ll रिश्ते आने भी कम हो गए । निशा ने एम ए प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया।

कहते हैं वक़्त कभी एक सा नहीं रहता। सुभाष तायल के सुखी संपन्न जीवन को भी आखिरकार वक्त की नजर लगी ..ll एक दिन उनकी दुकान और गोदाम पर इनकम टैक्स की रेड हुई और उनके एकाउंट्स में कई अनियमितताएं पाई गई। इनकम टैक्स द्वारा उनके गोदाम को सील कर दिया गया ...और उनपर दो करोड़ का भारी भरकम जुर्माना ठोक दिया गया।। लाखों का माल जब्त कर लिया गया ...साथ ही साथ आवश्यक वस्तु अधिनियम के मुकदमा भी ठोक दिया गया.. जिसमें यदि वह दोषी साबित हो जाते तो उनको जेल भी हो सकती थी ।।

संकट की इस भीषण घडी में उनके पुराने मित्र रामनिवास गोयल ने उनका साथ दिया। रामनिवास गोयल स्थानीय पॉलिटिक्स में थोड़ी बहुत पंहुच रखते थे । उन्होंने एप्रोच लगाकर मामला खत्म करवाया..।। ढाई करोड़ की बजाए सिर्फ 25 लाख जुर्माना ही भरना पड़ा.. गोदाम भी खुल गए..जब्त माल भी छूट गया.. और साथ ही साथ की केस खत्म करवा दिया। एक तरह से सुभाष तायल बड़े सस्ते छूटे थे और यह सब सिर्फ और सिर्फ रामनिवास की मदद से संभव हो पाया था। ऐसे बुरे वक्त में उनके सगे जीजा ...जो कि भूतपूर्व सांसद थे और कुछ अन्य करीबी लोग जिनकी पहुंच ऊपर तक थी.. सभी ने मुंह मोड़ लिया था। तब रामनिवास ने उनके हद से ज्यादा मदद की थी ..रात दिन भाग दौड़ की थी ...और कईयो का एहसान अपने सिर पर लिया था। सुभाष तायल दिल से रामनिवास के बडे शुक्रगुजार थे। उनकी कृतज्ञता का ये आलम था कि यदि रामनिवास उनकी जान भी मांगते तो वह ना नहीं कर पाते।

तीन चार महीनों बाद जब सारा मामला फारिग हुआ.... परिवार में सुकून के दिन लौटे ...तो एक दोस्ताना मुलाकात के दौरान रामनिवास ने सुभाष तायल से अपने बेटे के लिए निशा का हाथ मांग लिया।

रामनिवास और सुभाष के आर्थिक और समाजिक रुतबे में बड़ा अंतर था ।यूं तो रामनिवास भी पुराने खानदानी रईस थे.. मगर उनका अपने दो बड़े भाइयों से पुश्तैनी जायदाद के लिए बंटवारे का विवाद चल रहा था.. और मामला कोर्ट में था। उन दिनों वह दाल मिल रोड पर अपनी तीन कमरों के एक ठीक-ठाक से फ्लैट में अपनी पत्नी और इकलौते बेटे राजीव के साथ रहते थे। आय का साधन हस्ताल रोड पर एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान थी जो अच्छी चलती थी। दोनों बाप बेटे उसी दुकान पर बैठते थे ।।

राजीव ...एक मध्यमवर्गीय सोच रखने वाले लाखो लडको की तरह ही एक लड़का था ..जिसकी दुनिया दुकान...घर..और कचहरी तक सीमित थी।

देखा जाए तो ना तो समाजिक लिहाज से दोनों परिवारों में रिश्ता होने लायक मेल था...और ना ही निशा के सामने राजीव कही ठहरता था । मगर फिर भी एहसान के बोझ तले सुभाष...इनकार ना कर सके। पिछले दिनों के संकट के दिनों की गहमागहमी और इस संकट से निकालने में रामनिवास का योगदान निशा से छुपा नहीं था..।। उन दिनो वैसे भी उसके लिए रिश्ते आने कम हो गए थे। राजीव उसे जरा भी पसंद नहीं था मगर फिर भी उसने बेमन से हां कर दी ।।

दो महीने बाद एक सुरुचिपूर्ण समारोह में राजीव और निशा का विवाह हो गया। इस बार चूंकि लड़के वाले अपेक्षाकृत कम हैसियत वाले थे इसलिए विवाह का आयोजन उतना भव्य और धूमधाम वाला नहीं था जितना उषा के विवाह में था। दुल्हन के श्रृंगार में निशा पर कुछ ऐसा रूप चढ़ा था कि चारों तरफ वाह वाह हो गई थी।

राजीव अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता था ।उसने सपने में भी नहीं सोचा था किस्मत उसके लिए इतनी खुशियां लेकर अयेगी कि उसे अपना दामन छोटा लगने लगेगा ।

एक तो एक तो होने वाले ससुराल की साधारण हैसियत.. दूसरे जीवनसाथी के रुप में राजीव का साधारण व्यक्तित्व ..और ऊपर से विवाह समारोह भी साधारण...ll निशा के दिल में कोई उत्साह ..उमंग नहीं था। सारी जिंदगी हमेशा सबसे अव्वल रहने वाली निशा अपने जीवन के इतने अहम मोड पर पिछड़ गई थी..।। उनके बचपन मे उषा द्वारा भोलेपन मे कही गई बात.." तेरा दूल्हा तो काला कलूटा होगा.." मानो आज शाप बनकर सच हो रहा था । यह टीस ..यह कसक.. उसे चैन नहीं लेने देती थी । पूरे विवाह समारोह के दौरान वह खिंची खिंची रही । हर रीति रिवाज को बेमन से निभाती रही। वरमाला हो.. फेरे हो.. श्लोक सुनाई हो.. या विदाई..।। यंत्रवत सी हर रस्म निभाती रही ।विदाई से पहले वर वधू के जुआ खेलने के दौरान जब राजीव ने पानी में मुंदडी ढूंढने के दौरान उसका हाथ शरारत से पकड़ लिया था तो उसने बड़ी बेरुखी से उसका हाथ झटक दिया ।

राजीव को भी थोड़ा-थोड़ा एहसास हो रहा था कि निशा कुछ असहज है ..मगर उसने इसे एक बेटी द्वारा पिता का घर छोड़ने की वेदना ही समझा। उसने मन ही मन प्रण कर लिया कि वह निशा को इतना प्यार देगा कि वह अपना मायका भूल जाएगी ।। उसे कभी किसी बात के लिए शिकायत का मौका नहीं देगा। बार-बार वह निशा की ओर मोहब्बत भरी नजरों से निहारता और उसकी उल्फत की परवाज उरूज पर होती जाती ।

मगर...!! सुहाने सपने अक्सर बीच में ही टूट जाते हैं...!! राजीव को क्या मालूम था कि जिस मूरत को उसने मन मंदिर में इतने प्यार से बिठाया था ..उसकी पूजा करने लगा था.. उस मूरत में प्नाण नहीं थे ..जज्बात नहीं थे ..प्यार मोहब्बत का कोई वजूद नहीं था..। वह मूरत उसके लिए सिर्फ एक पत्थर का तराशा हुआ हसीन मुजस्समा था .. जिसके कदमों में अपनी उल्फत के फूल चढ़ाने के बदले उसे मिलनी थी बेरुखी.. बेदिली ..और नफरत..।।..निशा विदा होकर ससुराल आ गई।

आज उस की सुहागरात थी...।

राजीव के लिए एक एक पल सदियों के समान बीत रहा था । सारे दिन पड़ोस और रिश्तेदारी की औरते आती रही । राजीव के यार दोस्त आते रहे। सब ने चांद जैसी बहू के आने के बधाइयां दी llराजीव को मन ही मन उन सभी पर गुस्सा आ रहा था.. " ये बुड्ढिया टलती क्यों नहीं.. यह दोस्त कमीने मन ही मन तो मेरी किस्मत से जल रहे हैं..!!" उसका बस चलता तो वह अभी ही रात कर देता ।। खैर..मुंह दिखाई की रस्म और दिन में दो-तीन घंटे आराम के बाद आखिरकार मिलन की बेला भी आ ही गई ।

राजीव ने बड़े अरमानों से अपना कमरा सजवाया था। दिल में हजारों अरमान लिए उसने सुहाग कक्ष में प्रवेश किया । उम्मीद के मुताबिक फूलों से सजी सेज पर निशा यू बैठी थी कि उसके पैर सामने की ओर आधे मुडे थे और घुटनों मुखडा टिकाये.. वह चुपचाप बैठी थी।।

राजीव ने नजर भर कर अपनी दुल्हन को देखा..।। काश.. वह एक चित्रकार होता तो इस अद्वितीय सुंदरता को कैनवास पर उतार कर अमर हो जाता ..!! काश.. वह एक शायर होता तो इस बेपनाह हुस्न की शान में कितने ही सफे भर देता...!! मगर... शायद कोई भी चित्र या कलाम उसकी पत्नी अप्रतिम सौंदर्य के समक्ष फीके ही रहते ...!!!

मीठी मीठी अनुराग भरी अनुभूतियों के साथ वह पलंग पर निशा के बगल में बैठ गया । दिल में अरमानों का सागर हिलोरे मार रहा था ..आंखों में सजीले सपने तैर रहे थे... लबों पर मीठी मुस्कान खेल रही थी।

निशा ने सिर उठाया ।। राजीव के कुछ बोल पाने से पहले ही उसने कहा .."मैं कुछ कहना चाहती हूं ..।"

"हां हां बोलो"..राजीव मीठे स्वर में बोला।। उसे नहीं मालूम था कि अरमानों के सुलगते शोलों पर बेरुखी की बारिश होने वाली है..।।

" जी देखिए ..मैंने यह शादी अपनी खुशी और मर्जी से नहीं की।आप मुझे पति के रुप में जरा भी पसंद नहीं है..। आपके पापा ने हमारे परिवार पर जो अहसान किया था इस वजह से मै शादी के लिए इंकार नहीं कर सकी। पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ शरीर का मिलन ही नहीं होता... बल्कि दिलों का मिलन होता है । और.. मेरे दिल में आपके लिए कोई स्थान नहीं है। आज की रात यदि सिर्फ मेरा शरीर ही हासिल करना है तो आप कर सकते हैं... मगर आप का यह कृत्य मेरे लिए बलात्कार ही होगा। मैं दिल से इस मिलन को कबूल नहीं कर सकती .. बाकी आपकी मर्जी..। मुझे जो कहना था कह दिया ।"..कहकर निशा ने सिर झुका लिया।

यह शब्द पिघले शीशे की तरह राजीव के कानों में पड़े..। उसे दुनिया डोलती से महसूस हुई । कई क्षण तो उसे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या कहे..। होंठ सूख गये.. गले में गोला सा अटकने लगा । बड़ी मुश्किल से उसने आंखों में उमड़ते आसुओं को रोका.. खुद पर जब्त किया और बोला.." नहीं ..निशा.. मेरे लिए भी आज की रात का मतलब सिर्फ तुम्हारा शरीर हासिल करना नहीं है। उस शरीर को हासिल करके भी क्या होगा जिसके अंदर धड़कते दिल की किसी धडकन मे मेरा नाम ही नहीं है..!! मुझे तुम्हारा फैसला कबूल है.. तुम्हारी खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं ।।..विश्वास रखना.. जो तुम चाहती हो वही होगा ..मैं कभी तुम्हारे करीब आने की कोशिश नहीं करुंगा ।।"

एक क्षण को चुप की छाई रही।.. राजीव ने पलंग के सिरहाने रखा तकिया उठाया...पलंग का घेरा काटकर दूसरी ओर पहुंचा.. और निशा की ओर पीठ करके लेटते हुए बोला..." तुम भी थक गई होगी.. सो जाओ..।।"

निशा ने भी चुपचाप उसकी ओर पीठ फेर ली और लेट गयी।

कमरे में ac चलता रहा ।.. मगर ..एक सुलगते रिश्ते की तासीर कमरे से भी अधिक ठंडी हो रही थी।

सुहाग सेज पर सजे फूल फिजा को महकाते रहे ।.. मगर उल्फत और समर्पण का महकता रिश्ता.. अपनी खुशबू खो रहा था..।।

"मिलन"की रैना बीती ..।। आफताब ने फिर से अपने नूर से दुनिया को रोशन किया मगर राजीव के वैवाहिक जीवन की काली रात तो जाने कितनी लंबी थी..।। उसकी हसरतो का सूरज तो शायद हमेशा के लिए डूब चुका था..!!

राजीव ने अपने दिल का दर्द किसी पर भी जाहिर नही किया। हर किसी के सामने यु जाहिर करता मानो उसका वैवाहिक जीवन बेहद सुखद है। दिन में सबके सामने वह एक आम पति की तरह व्यवहार करता .. और रात में दोनों एक ही पलंग पर इस तरह सो जाते ..मानो ट्रेन में आमने-सामने की बर्थ पर दो अनजान मुसाफिर..।।

जाने किस्मत ने उनके लिए क्या सोच रखा था..!!

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