हिन्दू वर्ण व्यवस्था - स्वस्थ समाज की नींव
घोड़े से गधे और गधे से घोड़े का काम लेने वाला समाज कभी विकास नही कर पाता। दोनों का उपयोग उनकी अपनी अपनी योग्यता के अनुसार होना चाहिए।
ब्राह्मणों के हाथों में पुस्तक थी इसलिए जो चाहा लिख दिया। ( नकारात्मक रूप में इसे ब्राह्मण की हिंसा मान लिया जाये)
जिसकी कुछ करने की इच्छा न हो वह पका पकाया भोजन भी नही खा सकता। बाकी परिश्रम के रूप में हड़ताल कर कर के बहाने बना बना कर अपना समय निकालता रहेगा। ( इसे शूद्र की हिंसा मान लिया जाये)
अब आते हैं विषय पर।
आधी हथेली की मोटाई जितना एक ग्रन्थ आता है जिसका नाम है "चर्म शिल्प संग्रह"
चमड़े से बनी वस्तुओं का काटना, बुनना, सिलाई, design वगेरह सब होता है उसमें।
कपड़े की कटाई, सिलाई, design आदि की भी पुस्तक होती थी।
भवन निर्माण की पुस्तक हैं, आज के आर्किटेक्ट अध्ययन करें तो शर्म आ जायेगी अपने अध्ययन पर ।
अब स्पष्ट है कि वह संस्कृत में ही होगा।
तो चर्मकार उद्योगपति, कारीगर आदि सब उसका अध्ययन करते ही होंगें, तभी उच्च कोटि की वस्तुओं का उत्पादन होता था जो सम्पूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवाती थीं।
तो उन्होंने संस्कृत कहाँ से पढ़ी...
जिन चर्मकारों, दर्जियों ने, प्रजापतियों ने यह सब उत्पाद बनाये होंगे?
शिक्षा का स्तर ऊंचा था भारत में जिसमे भेदभाव नही था।
इस्लामिक काल के अत्याचारों को बात सब जानते हैं।
उससे पहले चलते हैं
ह्वेनसांग, फाह्यान और ईत्सिंग आदि चीनी यात्री सातवीं शताब्दी से पूर्व
भारत का भ्रमण करते हैं और उनकी यात्राओं में सामाजिक ढांचे के वर्णन में
शूद्र वर्ण के साथ शिक्षा के भेदभाव आदि अन्यान्य विषयों का कोई सन्दर्भ
नही पायी जाती।
McCauley जैसों की कपोल कल्पित और समाज को तोड़ने की बातों से बाहर आइये और सभ्य समाज को विकसित करने में सभी वर्णो को एक साथ एकजुट होकर आगे बढ़ने का समय है।
वैश्विक दानवो ने यूरोप के लुटेरों के माध्यम से पहले हमारे वैश्य और शूद्र वर्ग को हानि पहुंचाई गई, हम नही सचेत हुए।
फिर हमारे राजाओं को अनुबंधों में बाँध कर उनके राज्यों को लूट लिया गया।
फिर ब्राह्मणों के गुरुकुल और धर्म शिक्षा पर हानि पहुंचा कर McCauley शिक्षा स्थापित की गई, हम फिर न सचेते।
पिछले 100 वर्षों में
पहले धर्म जागरण के माध्यम से ब्राह्मण वर्ण को दिग्भ्रमित करके मूर्ख बनाया गया।
फिर हमारी क्षत्रिय परम्परा को नष्ट करके पूर्णतया समाप्त कर दिया गया। सभी रजवाड़े लूट लिए गए, धन संपत्ति हीरे जवाहरात कुछ न छोड़ा गया।
सभी महलों को होटल में बदल दिया गया।
वैश्यों को पहले कम्पनी अनुबंधों में बांधा गया, Tax के बोझ से मारा गया और फिर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के अनुबंधों ने विदेशी कम्पनियो को सर पर बिठा कर वैश्य वर्ग को सीमित कर दिया गया।
आज पूरी FMCG इंडस्ट्री पर विदेशी दानवो का कब्जा है।
विदेशी वैश्यों बड़े बड़े taxes में छूट दी जाती है।
स्वदेशी वैश्यों को नही।
आज शुद्र वर्ग को दिग्भ्र्मित कर करके, गरीब से गरीब बना कर उनका धर्मान्तरण करके उन्हें हिन्दू विरोधी बनाया जा रहा है।
शूद्र वर्ग को silent हिंसक बनाया गया।
पढ़ने की तो आज भी इच्छा नही है इनकी, यदि पढ़ने की ही योग्यता और इच्छा होती तो आरक्षण की आवश्यकता नही पड़ती किसी को।
और क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य समाज को गरियाने वाले इस समाज के अनुयायियों में से किसी में भी इतनी नैतिकता है कि वह योग्य न होने के बावजूद भी पद और नौकरी स्वीकार न करे।
किस प्रकार अयोग्य होने पर भी पद नौकरी स्वीकार करके देश के विकास और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर सकता है कोई।
घोड़े से गधे और गधे से घोड़े का काम लेने वाला समाज कभी विकास नही कर पाता। दोनों का उपयोग उनकी अपनी अपनी योग्यता के अनुसार होना चाहिए।
समन्वय हो,
सामंजस्य हो,
सम्मान मिले तो गिलहरी भी पुल निर्माण में सहायक बनेंगी और पुल बनेगा।
अज्ञात....