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आज के करीब चार साल पहिले हमारे लल्लन भैया शहर चले गए थे आठवीँ के आगे की पढ़ाई करने, दरअसल उन्होंने अपने पिता रामखेलावन शुक्ला से जिद किया था शहर में पढ़ने के लिए । इसी जिद में कई दिन तक खाना तक नहीं खाया था आखिर में  पिता जी ने बात मान ली, और शहर में एक रूम किराए पर ढूंढ़ कर इनका एडमिसन करा दिया सिटीमोन्टेसरी स्कूल में, इनके रूम में एक भैया और रहते थे "जॉर्जी भैया" जिनका पूरा नाम जोगेश्वर प्रसाद वर्मा था। उनके पास कलम के लिए पैसे हो य न हों पर स्कूल में इंटरवल के वक्त साहू चाट भण्डार पर चाट जरूर खाते थे ।

हम जब भी उनसे मिलते तो एक इअरफोन उनके गले में लटका हुआ जरूर मिलता हाँ ये बात अलग है कि उन्होंने काफी समय तक "नोकिया 1100" मोबाइल फ़ोन  का इस्तेमाल किया । जॉर्जी भैया एक काले शीशे वाला चश्मा भी रखते थे जो रोज़ स्कूल जाते और आते वक्त लगाये रहते थे । उनके टीशर्ट के कॉलर हमेशा उठे होते थे, इसके लिए कई बार उन्होंने स्कूल में डाँट भी खायी थी । जॉर्जी भैया अंग्रेजी बोलना अधिक पसंद करते थे । कुल मिलामिला कर वो एक कूलत्व को प्राप्त बालक थे ।

शुरुआत में तो लल्लन भैया को कुछ परेशानी हुई जॉर्जी भैया के कूलत्व को लेकर पर धीरे धीरे कुछ दिन में लल्लन भैया ने खुद को एडजस्ट कर लिया । हमारे लल्लन भैया स्कूल जाते तो टिफिन ले कर जाते थे, स्कूल का ड्रेस रोज पहन के जाते वहीँ जॉर्जी भैया इसके बिलकुल विपरीत काम करते , उनके लिए स्कुल का ड्रेस न पहन के जाना गर्व की बात होती थी, कभी कभी मास्टर साहेब कूट भी देते थे जॉर्जी भाई को ड्रेस न पहनने के लिए, तो कुछ दिन ड्रेस पहन के आते और कुछ दिन बाद ड्रेस पहन के आना फिर से बंद । ऐसे ही दोनों की जिंदगी चल रही थी । नौंवीं दसवीं की परीक्षा हो गयी, दसवीं में दोनों का परिणाम काफी अच्छा आया था, तो जॉर्जी भैया के पिता जी ने उन्हें एक बढ़िया एंड्राइड मोबाइल लेके दिया । मोबाइल आते ही जॉर्जी भैया के कूलत्व में चार चाँद लग गए, अब जॉर्जी भैया किताब कम मोबाइल ज्यादा देखने लगे थे, कुछ ही दिनों में वो फेसबुक भी चलाने लगे, वहाँ पर खूब बढ़िया बढ़िया स्टेटस और फोटू डालते, खूब लाइक भी मिलता इनको ।

हमारे लल्लन भैया कभी कभी नाराज़ हो जाते जॉर्जी भाई पर तो एक मस्त फोटू निकाल के लल्लन भैया का जॉर्जी भाई फसबूक पर ड़ाल देते । लल्लन भैया फिर से खुश हो जाते  । दिन बीतता गया, जॉर्जी भाई के जलवे देखकर लल्लन भैया भी कूलत्व की और अग्रसर होने लगे, अब वो भी ज़ीन्स थोडा सरका के पहनते थे, कान में ईयरफ़ोन लगाने लगे थे, स्कूल का ड्रेस इन्हें भी बुरा लगने लगा था, साहू चाट भंडार पर जॉर्जी भैया के साथ में जाना शुरु कर दिया था । और अबकी दीवाली की छुट्टी में जब गांव गए तो पिता जी से जिद करके एक एंड्रॉइड फोन इन्होंने भी ले लिया था । कुछ दिन जॉर्जी भैया से फ़ेसबुक का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ये भी लग गए फेसबुक में ।

खूब जम के फ़ेसबुक पर फोटू फाटू अपलोड करना शुरु कर दिया, फोटू के साथ एक दबंग स्टेटस ड़ालते और साथ में लिखते 👉Add Comment Like Fast 👉 फिर क्या था ! उनके पोस्ट पर लाइक्स की संख्या पढ़ने लगी । अब जॉर्जी भाई और लल्लन भाई की कॉम्पिटिसन होने लगी, दोनों रोज़ सुबह एक  साथ अपना अपना फोटू डालते और फिर शाम को स्कूल से वापस आने के बाद चेक करते, किसी दिन जॉर्जी भाई की लाइक्स ज्यादा होती तो किसी दिन लल्लन भैया की ।

ऐसे ही ग्यारहवी बीत गया और बारहवी कक्षा में दोनों ने प्रवेश किया, इस साल भी कुछ महीनों तक यही फोटू अपलोडिंग का क्रियाकलाप उनकी मुख्यता रही, धीरे धीरे बारहवीं का बोर्डपेपर नज़दीक आने लगा, दोनों ने मोबाइल को दिए कुछ वक्त में से कटौती की और पढ़ना लिखना चालू कर दिया । एग्जाम देकर दोनों लोग अपने अपने गाँव को जा रहे थे, इसके बाद दोनोँ साथ में नहीं रहने वाले थे क्योंकि जॉर्जी भाई आगे की पढाई कानपुर में करने वाले थे और लल्लन भैया इलाहबाद से , जाते वक्त दोनों खूब फूट फूट कर रोये,एक दूसरे को गले लगाकर । आखिरकार दोनों अपने अपने गाँव् चले गये । गाँव में इस वक्त कोई काम तो था नहीं, (वेसे होता तो भी लल्लन भैया कुछ करने वाले तो थे नहीं)

इसलिए लल्लन भैया सुबह साढ़े दस बजे सोकर उठते और फिर नित्य क्रिया करते करते घर में खाना भी तैयार हो जाता लल्लन भैया खाना खा कर थोड़ा आराम करते और फिर निकल जाते पास के ही एक सहर में वहां पर करीब पाँच बजे तक रहतेे (सहर में कभी पुल पर मोबइल चलाते हुए तो कभी होटल पर गाँव के दोस्तों के साथ दिख जाते थे )और फिर घर आते, घर आकर रात को खाना खाते और सो जाते ।

यही इनका दैनिक क्रियाकलाप था ।बोर्ड पेपर का रिजल्ट आ चुका था, जॉर्जी भाई 79% से पास हुए और लल्लन भैया 80% से । परिक्षा परिणाम संतोसजनक थे माँ बाप बड़े खुस हुए गाँव में मिठाइयाँ बाटी गयी । लल्लन भैया ने जॉर्जी भाई को फ़ोन किया उनको बधाई दी, उन्होंने भी इन्हें बधाई दी । कुछ ही देर में लल्लन भैया के 80% लाने की बात गाँव भर में आग की तरह फ़ैल गयी ।

एक दिन लल्लन भैया के पिता जी के मोबाइल पर किसी का फ़ोन आया उन्होंने फ़ोन पर कुछ देर तक बात की और फिर लल्लन से बोलेे कल थोड़ा नीक से तैयार हो जाना, ये टपोरी जैसा बाल वाल सब कटा दो आज शाम को और ई जो नेकर (हाफ पेंट) पहिने घूम रहे हो न कल ई दिखना नहीं चाहिए नहीं तो मार मार के टांग तोड़ देंगे, आज ही बताये दे रहे हैं । और ई जो कान में घुसेडे रहते हो लल्लन भैया ने पूँछा "डैडी कल कुछ है का?" पिता जी घूरते हुए बोले "चुपचाप जो बोला गया है उ करो, जादा जानकारी न प्राप्त करो,

और हाँ ये भी कल सुबह आठ बजे तक नहा धो के तैयार हो जाना , एक बात और कल डैडी नहीं पिता जी कहना हमको" लल्लन भैया बेचारे कुछ भी न बोले और चले गए बाल कटवाने पर रास्ते भर एक चिंता उनके मन में चल रही थी कि कल ऐसा क्या होने वाले है ?

उधर लल्लन भैया बाल कटवाने गए और इधर उनके पिता जी उनके अम्मा से जाके कहने लगे " कल रामकुमार पांडे आने वाले हैं लल्लन को देखने बियाह के खातिर , तो तनी अच्छे से पेश आना सबके सामने और कल घर का कोई भी आदमी लल्लन को लल्लन नहीं कहेगा,सब उसे उसके असली नाम लालकेश्वर प्रसाद से बुलाएंगे ।"

अम्मा जी कहने लगीं "कवन रामकुमार पांडे आने वाले हैं ?"

"अरे अपने गांव के कामताप्रसाद के साढ़ू हैं,

उ जो पिंकिया आती है न कामताप्रसाद  के यहाँ

सबको मौसी मौसी कहती है उसी के बियाह के चक्कर में आ रहे हैं ।" लल्लन के पिता जी ने कहा ।

"अरे उ त बड़ी सभ्य बिटिया है, चलो अच्छा है,

हम घर के सब तैयारी करित है आप बाहेर का सँभाल लेना ।" लल्लन की अम्मा ने कहा ।

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(2)

शाम के करीब पांच बज रहे थे लल्लन भैया अपने बाल छोटे करवा कर आ गए थे, लेकिन उनके दिमाग में अभी तक वही सवाल चल रहा था कि कल क्या होने वाला है ? रात को खाना खाने के बाद लल्लन भैया ने अपनी अम्मा को बुलाया और कहने लगे " अम्मा डैडी ने तुम्हे कुछ बताया है का ?" अम्मा बोली "न बेटा हमका त कछू नाही बताये हैं, काहे कुछु हुआ का ?"

लल्लन भैया गुस्से में आके बोले " अम्मा तुम्हे हमारी कसम है साँच बात बता देव " वेसे होता तो अम्मा जी नहीं भी बताती लेकिन बेटे ने कसम दे दिया तो बताना पड़ा "काल कोई तुम्हार बियाह देखने आने वाले हैं " इतना सुनते ही लल्लन भैया झल्ला के बोले "हमें नहीं करना बियाह , जाओ डैडी से कह देव कि हम बियाह नहीं करेंगे,और अगर कल कोई आएगा तो हम गारी देके भगा देंगे ।" अम्मा ने इनको शांति से समझाया कि जो आ रहे हैं उनको आने दो और तुम्हे देखने ही तो आ रहे हैं, कल ही शादी थोड़ी न कर देंगे, और अब जाओ सो जाओ, सवेरे थोडा जल्दी उठना है " अम्मा की बात सुनकर लल्लन भैया भुभुनाते हुए सोने चले गए । बिस्तर पर लेटे तो आँख से आँसू गिरने लगे, सुसुक सुसक के रोने लगे ।

लल्लन भैया बचपन से ही एक लड़की को बहुते पसंद करते थे पर खुल के कभी कुछ भी न कह पाये थे, और उसी से शादी करना चाहते थे, पर अब क्या अब तो उनकी शादी कहीँ और तय होने जा रही थी, उन्हें पता था कि जितना जिद्दी वो खुद हैं उससे कहीं ज्यादा उनके पिता जी हैं,अब तक पिताजी ने इनकी सब बातेँ मानी थी तो इनको तो उनकी बात मानना ही था । उस लड़की का चेहरा इनके दिमाग में घूम रहा था, और इनके आँख से आँसू टपक रहे थे । लल्लन भैया भगवान से यह प्रार्थना कर के सो गए कि हे भगवान कल जो लोग आएँ वो उसी के घर वाले होँ । भगवान ने इनकी पहले से ही सुन ली थी सायद क्यूँकि जिस लड़की को ये पसंद करते थे उ पिंकिया ही थी ।

आखिरकार सुबह हुई, लल्लन भैया अपने पिता जी के कहे अनुसार नहा धोकर तैयार हो गए थे, दुआर पर कुर्सी लगाए बैठे थे, तभी "मैं" उनके घर किसी काम से पहुँच गया, लल्लन भैया को देखते ही बोला "लल्लन ब्रो व्हाट्स गोइंग ऑन " (दरअसल लल्लन भैया कि और हमारी दोस्ती काफी अच्छी थी, पर आठवी के बाद हम भी पढ़ने बम्बई चले आये इसलिए मुलाकात काम होती थी ,फ़ेसबुक पर एकाउंट तो हमारा भी बना हुआ था पर हमने एक प्रोफाइल पिक ड़ाल के छोड़ दी थी) मेरे पूंछने पर पर उन्होंने कहा "नथिंग यार, थोड़ी प्रॉब्लम है" "क्या हुआ ब्रो" मैने फिर से पूँछा तो वो अपने घर की सारी बातेँ बताने लगे। सब सुनने के बाद मैने कहा "कुछ नहीं होगा, टेंशन मत लो ब्रो, वो लोग जब आएंगे तो मैं भी आऊंगा तुम्हारे घर पर, ओके अब चलता हूँ ।" मैं वहाँ से चला आया ।

लल्लन को देखने वाले लोग करीब तीन बजे शाम को पहुँचे, पहुँचते ही पिताजी ने लल्लन को पाँव छूने को बोला सबका , लल्लन ने सबका पाँव छुआ, सबने चाय पानी पिया और फिर बात चीत होने लगा, इसी बीच मैं फिर से वहाँ पहुँच गया, एक कोने में खड़ा होकर सबको सुनने लगा वधूपक्ष की तरफ से एक से एक सवाल के गोले दागे जाने लगे , पहले लल्लन भैया से इनके पढाई लिखाई का डिटेल लिया और फिर इनके पिता जी से संपत्ति की पूँछताक्ष होने लगी । कुछ देर बाद वो लोग सन्तुष्टी के भाव से लल्लन के पिता जी से बोले " हाँ तो शुकुल महराज भैया की परवरिस तो बहुत अच्छे से की है आपने , अब हमरी बिटिया के भी दर्शन कर लें फोटू लाया हूँ साथ में, वेसे आप लोग तो उसे पहचानते ही हैं अपने मौसी के घर आया करती है वो" ऐसा कहकर वो फोटू निकाल के लाये और लल्लन के पिता जी को दिया उन्होंने फोटू देखा और फिर लल्लन की अम्मा को दे दिया, लल्लन की अम्मा ने भी फोटू देखकर लल्लन भैया को दे दिया , लल्लन भैया फोटू देखते ही आवाक रह गए, अरे ई का ई तो अपनी पिंकिया की फोटू है, मारे ख़ुशी के लल्लन भैया उछलना कूदना चाहते थे पर किसी तरह कंट्रोल कर ले गए ।

लल्लन भैया ने खुद देखने के बाद अपने पिता जी को फोटू दे दिया उनके पिता जी ने हमें खड़े देखा तो कहा बेटा तुम भी देख लो, मैने हाथ में फोटू लिया और जेसे ही देखा मेरे तो हालात ख़राब हो गए और मैं तुरंत वहाँ से चल दिया,मुझे पिंकिया के चेहरे से बहुत ड़र लगता था, बात तब की है जब मैं पाँचवी में था , एक बार पिंकिया अपने मौसी के घर आई हुई थी, सुबह सुबह हम स्कूल जा रहे थे और ई सड़क पर खड़ी थी, हम भी अपने मौज में थे एक गाना हमारे मुँह से निकल गया "अंग्रेज़ी फैशन में बड़ी झक्कास लागेलू, चौथी कलास फ़ैल, बीए पास लागेलू" पिंकिया को लगा कि मैं उसे बोल रहा हूँ,क्योंकि वो जीन्स पहने हुए थी, और वो रोते हुए चली गयी अपने मौसी को बुला लायी, मैं कुछ दूर तक गया ही था कि पिंकिया की मौसी दौड़ते हुए आईं और हमें खींच के एक थप्पड जड़ दिया और कहने लगीं इतना छोट हउ और इतना बदतमीज़ी भरा पड़ा है, चलो तुम्हारे अम्मा के पास लेके चलती हूँ तुम्हें । मैं बेचारा स्कूल का बैग टाँगे रोते हुए पिंकिया की मौसी के साथ चला आया, घर पर पहुंचा, इन्होंने हमारी अम्मा को बताया और वहाँ भी हमारी धुलाई चालू हो गयी पहले अम्मा ने मारा फिर पिताजी ने, मेरी तबियत काफ़ी बिगड़ गयी हफ़्ते भर तो स्कूल नही गया मैं । इस घटना के बाद जब भी मैं पिंकिया को देखता तो मेरी तबियत बिगड़ जाती वह एक कदम आगे बढ़ाती तो मैँ सौ कदम दूर भागता था उससे ।

हालाँकि जब से मैं उसकी वजह से कूटा गया था तब से जब भी वो मुझे देखती तो उसकी आँखों में बड़ी मासूमियत होती थी, ऐसा लगता था कि वह मुझ पर दया दिखा रही हो, पर कुछ भी हो जाए मैं उससे कोसों दूर भागता था । और आज फिर उसका चेहरा देख के न जाने क्यों मैं ड़र गया था और इसीलिए जल्दी से फोटू देकर मैं अपने घर चला आया था रात को खाना खाने के बाद जब मैं सोने गया तो न जाने क्यूँ मुझे पिंकिया की आँखे याद आ रही थी न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि पिंकिया मुझसे माफ़ी माँगना चाहती है , न जाने क्यूँ उसकी आँखों की मासूमियत मैं हम खुद को उलझते हुए पा रहे थे । और उसकी आँखों की मासूमियत में डूबते हुए हम कब नींद में डूबे गए पता ही नहीं चला ।

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आगे पढ़ें - लल्लन भैया - "द सुपरकूल GUY" भाग -2

©राघव_शंकर

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