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आक्रमण के हथियार बदल गए हैं - 6

'' सांप कभी घर नही बनाते।चूहे बिल बनाते हैं उनमें सांप रहते है।सांप तो उन पर कब्जा करता है,बेचारे चूहे।,,
''अरबी कहावत,
पूरा देश कूड़ा निस्तारण की समस्याओं से गुजर रहा है।हरेक घर में बड़ी मात्रा में कूड़ा निकलता है।छोटे-छोटे सामान, सब्जियो के छिलके,पॉलिथीन,ढेर सारे पेकिंग मेटेरियल,बहुत सारे ऐसे मैटर,जिन्हें हमें ले जाकर फेक ही देना होता है।वह घर के डेली यूज से निकलते हैं और उन्हें कहीं ना कहीं हमें डालना होता है।विदेशो में धीरे-धीरे उन्हें उठाकर दरवाजे के बाहर पड़े कूड़ेदान में डाला जाता है,वहां कोई न कोई सरकारी एजेंसी किसी दूरदराज जगह पर फेकती है।हमारे यहां तो नदी-नालों में डाल देती है। या जो भी करती हो। सरकार की व्यवस्थाएं होती हैं।वह इसके लिए हमसे टैक्स लेती हैं। कई जगह नगर निगम ने व्यवस्थाएं कर रखी होती हैं। नगर निगम,मेट्रोपोलिटन सिटी में भी इंतजाम किये जाते हैं। कई कंपनियों को ठेके दिए जाते है।छोटे शहरों में कूड़ा निस्तारण एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर के आया है।कम्पनियां सभी घरों से कुछ लोगो के माध्यम से वह कचरा उठवाती है।
आपने कभी गौर किया है कि आपके घर कूड़ा उठाने कौन आ रहा है??
आपने देखा होगा कि आपके घर जो लोग कूड़ा उठा रहे हैं वह कौन हैं?

मैंने कई शहरों में देखा है कि यह हिंदी-भाषी लोग नहीं होते हैं जो कूड़ा उठा रहे होते हैं। यह बांग्लाभाषी होते हैं।और तब मैंने बड़ी गहराई से जाकर पता किया कि यह असम के रास्ते घुसकर के आए हुए बांग्लादेशी हैं।दिल्ली हो,भोपाल हो, लखनऊ हो, मुंबई हो, बेंगलुरु हो, कोलकाता हो, चेन्नई तक के दूरदराज के,भारत के हरेक शहर में,हर जगह,यह काम बांग्लादेशी घुसपैठिये कर रहे हैं।स्थानीय लोग इस काम से बाहर हो चुके है... छोटे-छोटे बच्चे,महिलाएं,पुरुष जो बांग्लाभाषी हैं, उनका उपयोग इस काम के लिए किया जा रहा है। उन्होंने पूरे देश के लगभग सभी शहरों में,परती पड़ी जमीनों,खाली जगहों, सार्वजनिक स्थानों पर बस्तियां बना ली हैं।उन बस्तियों में वह बड़ी संख्या में रह रहे हैं।उन्हें कौन,कैसे लाता है,वे कैसे बसते जा रहे??
कौन संरक्षण दे रहा है?किस रास्ते आते हैं?
यह अंडरस्टुड है।
देशभर में तकरीबन 3 करोड़ से भी अधिक बांग्लादेशी हरेक शहर में घुस आए है।वे बड़ी तेजी से बच्चे भी पैदा करते जा रहे है... उससे भी अधिक तनाव वाली बात छोटे-छोटे काम पकड़ चुके हैं।आप इसे कुछ नहीं समझते हैं न?आप पर कोई फर्क नही पड़ता है?
तो इतिहास पढ़िए.

उन्होंने धीरे-धीरे इस देश के छोटे-छोटे काम पकड़ रखे हैं।सफाई,जूता,मोची,मजदूरी,ढुलाई,कूड़ा बीनना, उसमें कूड़ा निस्तारण भी एक है। रिक्शा चलाना।अन्य छोटे छोटे जो लघु पारम्परिक कामो में भी घुस रहे हैं।आप खुद लिस्टिंग करिए कि कौन-कौन से छोटे-मोटे रोज्गार वे छीनते जा रहे!
थोड़ा और ध्यान देंगे तो लोकल नेटवर्कर,ऑर्गनाइजर भी पहचान में आ जायेगा..फ़िलहाल भारतीय समाज जिन्हें बहुत छोटे काम समझता है, उनको उन्होंने बड़ी चतुराई से पकड़ लिया गया है या फिर उन्हें कुछ चतुर लोगो ने पकड़ा दिया है।कमोबेश देश भर में यही स्थिति है।

आपको डा.नारंग की घटना याद है ?
या भूल गए आप अगर भूल गए तो यह बहुत खतरनाक सिस्टम का शिकार हो रहे है.! दिल्ली में डॉक्टर नारंग को कुछ बांग्लादेशियों ने उनके बच्चों के सामने मार दिया था वह एक छोटी घटना नहीं थी सेकुलरिज्म की भेंट चढ़ गई अलग बात है पर बड़ी खतरनाक घटना थी कम था की ऐसी घटनाएं संभव है नागरिकों का समुदाय आपके देश की राजधानी के बीचोबीच एक प्रसिद्ध डॉक्टर को मार देता है और आप इसे छोटी घटना समझते हैं।यह सुषुप्तावस्था बहुत ही खतरनाक लक्षण है।अगर आप नहीं समझते है तो आप खतरे में है।

मैं मूल समस्या की तरफ इशारा कर रहा हूं।
असम के अधिकांश जिलों की संख्यात्मक असन्तुलन घुसपैठियों की वजह से हो गया। बंगाल के सभी जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने लगभग एकाधिकार सा कर लिया है।ममता सरकार के वोटवादी नजरिये ने विचित्र-बंगाल का नजारा खड़ा कर दिया है।
पिछले दिनों हमने देखा बांग्लादेशी घुसपैठियों से परेशान असम के लोगो को,(स्थानीय नागरिकों को) आगे आना पड़ा।अब उनकी नजर में बिहार है।पूर्वी भारत के अधिकांश प्रदेशों में यही समस्या खड़ी होती चली जा रही है।यह कोई संयोग नहीं है और ना ही यह सहज-प्राकृतिक तरीके से हो रहा है।इसके पीछे एक सुनियोजित साजिशी रणनीति काम कर रही है।हम को दुनियाँ के तमाम देशों के इतिहास के सहारे इस बात को समझना होगा कि हमारे राष्ट्र के लिए बहुत खौफनाख साबित होने वाला है।यह एक मजहबी हमले जैसा ही है।इस तरह के आक्रमण को भारतवर्ष कई सदियों से जेल रहा है। धीरे धीरे धीरे धीरे हिंदू घटता है और देश बटता चला जाता है।
1981 में आई अलबर्ट स्पीर की लिखी किताब 'इंफिलिट्रेशन,ने इस विषय पर सभी का ध्यान खींचा था जो जर्मन पर लिखी गई थी।मुस्लिम घुसपैठियों पर भारत में 1989 में आई किताब "घुसपैठ:निःशब्द आक्रमण,,स्व.श्रीकांत जोशी जी ने लिखा था जो असम में 20 साल लगातार काम करते रहे थे।वह संघ के क्षेत्र-प्रचारक थे,फिर सह-सरकार्यवाह रहे और अभी कुछ दिन पहले उनका देहांत हो गया।
'मुस्लिम घुसपैठ,के जासूसी तरीको पर सर्वाधिक काम किया है स्पेरी ने।
इंफिल्टरेशन:हाउ मुस्लिम स्पाई सब्वरजाइव्स पेनिट्रेटेड वाशिंगटन ,पाल.ई.स्पेरी,
इंफिल्टरेशन पर ही ब्रीन फ्रेजियर,ने भी लिखी है पठनीय है।2014 में जैनी क्राउच ने भी इंफिल्टरेशन पर एक किताब लिखी है।जो कम्युनिज्म पर है।इंफिल्टरेशन: द ट्रू स्टोरी ऑफ़ द मैन हु क्रेकेड द् माँफिया, कोलिन मैकलारेन, एए - 1025 : मेमोइर्स ऑफ़ द कम्युनिस्ट इंफिल्टरेशन इनटू द् चर्च,मेरी कैरी,
प एम्पायर्स : इंफिल्टरेशन, गाविन देवास और गाविन स्मिथ ने मिलकर लिखी थी।
कॉग्निटिव इंफिल्टरेशन: एन ओबामा अप्पोइंटी'स प्लान उंडर्मिने द् 9/11 कांस्पीरेसी थ्योरी,डेविड रे ग्रिफ्फिन....
उपरोक्त पुस्तको को पढ़ने का सुझाव इसलिए दे रहा हूं क्योंकी इनसे आपको यह समझने में सहायता मिलेगी की घुसपैठ कितना बड़ा और खतरनाक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होता है।वामियो-सामियो और कामियों की शातिर-माहिर चालें उनसे स्पष्ट हो सकती हैं।

अपनी संख्या बढ़ाना एक राजनीति का हिस्सा होता है। युद्ध की रणनीति का हिस्सा।जब कट्टर समुदाय एक बड़ी संख्या में होता हैं।लिबरल कम कम संख्या में होता है तो बहुलता लिबर्टी,सहिष्णुता,उदारता,लचीलापन,अनेकता में एकता अदि-आदि जिसपर आप इतराते फिरते है वह कमजोरी सिध्द होती है।आप में वापस घुसेड़ दी जाती है।धीरे से,या एकदम से दूसरा समाज विलुप्त कर हो जाता हैं इस्तेमाल होता रहा है।बहुत सारे समुदाय दुनिया भर में इसी रणनीति के सहारे समाप्त हुए हैं।दुनियां के किसी भी एक देश में देख लीजिए जहां इसाई या इस्लाम बड़ी संख्या में है दूसरा किस स्थिति में है।इसाई तो
लिबरल हो सकता है।कोई भी इस्लामिक देश देख लो 'इस्लाम, दूसरे उपासना-पद्धति के लिए कोई रास्ता नही देता।वह जहां गया दूसरा जड़-मूल सहित नष्ट हो जाता है।

जमीन चली जाती है आक्रांता की जनसंख्या बढ़ते ही।जमीर छिनती चली जाती है...या तो पुरखो की विरासत छोड़ते हो या फिर जमीन।यह युद्द की रणनीति का हिस्सा है।यह हजार साल से हो रहा है।आप घटते हैं जमीन छीन ली जाती है।पूर्वजों की जमीन,पुरखों की जमीन, पुरखों की संस्कृति, पुरखों की विरासत सिमटती-छिनती चली जाती है और यह सिमटना,बटोरना आप को थोड़ा सा और कमजोर कर देता है।समापन की तरफ।
आक्रामक समाज संख्या-बल की मजबूत स्थिति का लाभ उठाकर दूसरी पूजा-पद्धति को भगा देता है,खत्म कर देता है।
आप को पता भी नही है कि इन निरीह-गरीब से दिख रहे लोगो के पास देश के लगभग सभी घरों का पूरा ब्यौरा मजबूत मौजूद होता है। आपके छोटे घरों की छोटी-छोटी चीजें इनके इनके डेटाबेस में मौजूद होती जा रही हैं।क्योंकि सूचना के लिए कूड़ा लेने वाला आपके घर की हर चीज देखता-जानता-समझता है।जनसंख्या, आर्थिक स्थिति, कार्य व्यवहार, मजबूत पुरुषों की स्थिति,घरेलू हथियारो की स्थिति। यह सब कुछ उस वर्ग के पास मौजूद है जिसे आप बिल्कुल बहुत छोटी सी चींटी समझते हो।समझते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।पर दुनियां के किसी देश में ऐसा सम्भव नही होता की दुश्मनो की घुसपैठ का आंकड़ा और नेटवर्क इतना बड़ा बन जाए की उस देश की घरेलू व्यवस्था में हस्तक्षेप की स्थिति प्राप्त कर ले।असल में हमारा समाज बंटा-कटा समाज है।जातियों में बाँट दिया गया है.एक दूसरे से कटा हुआ विभाजित हुआ समाज है।इसका लाभ उन्हें जबकि आपके सामने निरीह दिख रहा टोटल आर्गनाइज्ड गिरोह की तरह का शत्रु-समाज है।

किसी समाज का छोटा काम, छोटी चीजे, सबसे कमजोर पक्ष माना जाता है।आक्रमण के लिए उनसे मिली जानकारी सबसे मजबूत हथकंडा माना जाता है। जब आक्रमणकारी छोटे-छोटे रास्ते से आता है, कमजोर करता है। इसलिए छोटे काम सबसे कमजोर कड़ी होते हैं। जिन्हें आप छोटे काम समझते हैं!वह आपके समाज के हर घर,हर आंकड़े, हर परिवार,हर बच्चे, हर महिलाएं,हर मकान, की संपूर्ण सूचनाएं इकट्ठे करते हैं।इकट्ठी रखते हैं।
शत्रु का डाटा बेस बनते है।नित्य सम्पर्क के कारण उनकी सूचनाये सटीक होती है।
यह यह आंकड़े 'अटैक, के समय आप को कमजोर बना डालते हैं।नागरिक सैनिक तो होता नही लेकिन 'व्यक्तिगत परिवार, सेना की कमजोरी जरूर बन जाती है। इसलिए सजग रहे यह घुसपैठ एक 'निश:ब्द आक्रमण,है।आपके समाज पर किये गए इस हथियार के बारे में आपको पता नहीं।उनकी केवल जनसंख्याएं ही नहीं बढ़ रही हैं।इस प्रकार के घुसपैठ से देश के शत्रु बढ़ रहे हैं।देश के अंदर बढ़ रहे हैं। और सबसे बड़ी बात आपके संसाधनों पर पलते हुए ठीक आपकी नाक के नीचे बढ़ रहे हैं।यह सबसे खतरनाक कंडीशंड है।गजवा ए हिन्द और अल-तकिया से सदा होशियार रहने की जरुरत है....पहचानिए इस नि:शब्द आक्रमण और इसके शस्त्र को क्योंकि हथियार बदल गए है.|

बांग्लादेश की जनसंख्या कभी हिंदू बहुल थी।
(पढिये खत्म होता बंगाल का जादू इसी वाल पर है)खत्म है,पाकिस्तान की जनसंख्या 80 साल पहले हिंदू बाहुल्य थी खत्म है, अफगानिस्तान की जनसंख्या 140 साल पहले हिंदू बहुल थी खत्म है, ईरान की जनसंख्या 1000 साल पहले अग्निपूजक-सूर्य पूजक हिंदुओं की थी खत्म है,इराक की जनसंख्या 1400 साल पहले हिन्दुओ से भरी हुई थी खत्म है। बिल्कुल इसी तरह कभी मंगोलिया,इंडोनेशिया,किर्गिस्तान,अरब तक जितने भी देश याद आ जाए बौध्द-हिंदू बहुल जनसंख्या थी।हजारो पूजा-पद्धतियों की स्वतंत्रता का उपयोग करने वाला हिन्दू।जैसे ही "वे, विजेता स्थिति में आये मार दिया गया या अन्य उपासना पद्दति के लोग खुद ही भाग खड़े हुए।हिंदुस्तान छोड़कर अब कहाँ भागोगे??

इसमें सबसे खतरनाक बात यह है कि आपका समाज बहुत सरल,सहज और ईमानदारी से बिना सांस्कृतिक राष्ट्र के बचाव का इंतजाम किये बड़ी गैरजिम्मेदारी से केवल मजे के लिए जी रहा है।गुजर-बसर कर रहा है अपने समाज का सैनिक-करण नहीं कर रहा है वह समाज हमेशा खतरे में होता है।..जान लीजिए आपके पिछले डेढ़ हजार साल का इतिहास इसी तरह का रहा है।अगर आप अब भी अपने इतिहास से नहीं सीखते तो फिर आप अपने आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित भारत नहीं दे पायेंगे।इस बात को आप बहुत साफ-साफ समझ लें।आक्रान्त विचारो वाला समाज यदि अपनी जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ा रहा है और उसी भूमि पर दूसरा समाज नियंत्रित,संयमित, व्यवस्थित,आलसी जीवन जीने का प्रयत्न कर रहा हो,"हम दो-हमारे दो,, के सिद्धांत के तहत् जनसँख्या नियंत्रण की कोशिश कर रहा हो तो अंत में अनियंत्रित जनसंख्या बढ़ाने वाला समाज 'टिड्डी-दल,, की तरह दूसरी प्रजातियों को खत्म कर देता है।बड़ी संख्या के सामने 'सुनहले पारम्परिक कीट-पतंगे, खत्म हो जाते हैं..क्योकि वे शत्रुओं और उनके हथियार पहचानने में नाकामयाब होते हैं।

(आगे पढ़िए-हथियार बदल गए हैं-व्यूरोक्रेसी)

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