आक्रमण के हथियार बदल गये हैं-10
अब जरा अमेरिका को देखिये।उन्होंने पालिसी बनाई,जाति-नस्ल का भेद् मिटा दिया।गोरे-काले का भेद,स्थानीयता का भेद, सब बहुत तेजी से उन्होंने खत्म कर लिया। उन्होंने एक राष्ट्रभाव खड़ा किया। अमरीका का भाव,संविधान का भाव,और अंत: अमेरिका के भाव में,पूर्ण स्वतंत्रतावाद के भाव ने आज अमेरिका को अमेरिका बना दिया।
आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-10
'मनुष्य अपनी उच्चतम शक्तियों का विकास और प्रदर्शन अपने लोगो के साथ रहकर उनकी सेवा से ही प्राप्त कर सकता है।,
गिल और वेलेंटाइन।
बचपन मे बहुत सारी कहानी पढ़ी होगी न।हमे क्यो संगठित रहना चाहिए।विघटन
कमजोरी है,संगठन मे शक्ति है।प्राथमिक किताबो मे पढ़ाई जाने वाली कोई भी
कहानी याद कर लें....तब मैं बात शुरू करता हूँ।
यूरोप-अफ्रीका के
कई देश छोटे-छोटे टुकड़ों में रहते हैं।वे एक राष्ट्र बनने की कोशिश करते
हैं।उनमें भी विभिन्न जातियां हैं वे आपस में लड़ते हैं।वह देश विकसित नहीं
हो सके।यूरोप के वह देश भी विकसित नहीं हो सके जहां हजार जातियां बनाई
गई।इस्लाम मे भयानक-खूनी जातीय संघर्ष है।एक किताब वाले 83 देशो मे रहते
है।अब जरा अमेरिका को देखिये।उन्होंने पालिसी बनाई,जाति-नस्ल का भेद् मिटा
दिया।गोरे-काले का भेद,स्थानीयता का भेद, सब बहुत तेजी से उन्होंने खत्म कर
लिया। उन्होंने एक राष्ट्रभाव खड़ा किया। अमरीका का भाव,संविधान का भाव,और
अंत: अमेरिका के भाव में,पूर्ण स्वतंत्रतावाद के भाव ने आज अमेरिका को
अमेरिका बना दिया।क्योंकि उन्होंने जातीयता खत्म कर दी, अंग्रेजों की बनाई
हुई ....कम्युनिष्टों ने,नव-कन्फ्यूज्ड लिबरलो ने उनके यहां भी विषवमन कर
रखा था...तरह-तरह के लेखन-तरह का प्रचार।रेड इंडियंस विरोधी थे रेड इंडियंस
को भी अमेरिकन में बदल दिया।जब गोरे-काले की बात आई,अमेरिका के बंटने की
बात आई,वहां इस पर बड़ा गृह युद्ध हुआ,रक्तपात हुआ,...लिकन ने कहा ''कोई
भिन्न राष्ट्र किसी भी तरह नही देंगे,अमेरिका किसी भी तरह नही
बटेगा......''हम जनता का,जनता के लिए जनता के द्वारा की शासन व्यवस्था के
लिए लड़ेंगे।,, उन्होंने जंग लड़ी।लोग मारे गए।पर उन्होंने
जातीयता,नस्ल,गोरी-काले का भाव समाप्त कर दिया।अमेरिका का भाव खड़ा करने
में सफलता पाई।अमेरिका दुनिया के 'सिरमौर, के रूप में खड़ा है। इसलिए
क्योंकि उन्होंने त्याग किया,रक्त दिया और जातीयता का भाव जन्मने ही नहीं
दिया।वह जानते थे एक संविधान,नियम में एक राष्ट्र हैं, एक विचार है,और
उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता भी।यही किंग आर्थर ने ब्रिटेन मे किया,यही रोमन
जूलियस सीजर ने,फिर आगस्टस ने किया था।जबकी हम उनसे भी पुरानी सभ्यता है।
आप टीवी पर देखते होंगे, चैनलों में देखते होंगे, बहुत सारी किताबों
में, बहुत सारे पत्रकार,बहुत सारे इतिहासकार आपके जातियों पर बार-बार जोर
देते हैं।एक चैनल पर आप एक बड़े पत्रकार 'रवीश कुमार(एक नाम पर न जाइए
हजारो है) को देखते होंगे कि ,वह हमेशा जाति को लेकर जोर मारते हैं।खुद
डूबे हुए है उसी इजम में,वाद में कम्युनिज्म में।जब वह बात करेंगे तो
छोटे-छोटे जाति की वोटों के दृष्टिकोण से,उसके पीछे एक बड़ी भारी कुत्सित
वामी वर्ग-संघर्ष कराने वाली मानसिकता काम कर रही होती है।बड़े समाज में
विभाजन की। उसके पीछे सबसे बड़ी मंशा काम कर रही होती है इस राष्ट्र के बेस
पर वार करने की..धुरी डगमगाने की,..तभी न क्रांति और पार्टी का कब्जा करवा
पाएंगे!
पर इन मूर्खों को नहीं मालूम है कि इस्लाम,और मिशनरियों दोनों
का ही सुनियोजित नेटवर्क इनसे बड़ा है,कंडीशंड भी काफी है,...पाचन
प्रक्रिया भी बड़ी है .....और ये उनके टूल्स बन चुके हैं।किसी भी इस्लामिक
देश में अपना संगठन तक नहीं जमा पाए।क्रांति तो दूर की बात।जब उनकी
इच्छा-पूर्ति पूरी कर देंगे,अपने लेखन और कैडर से तो वह खुद ही इन को काट
कर फेंक देंगे।ज्यादा ददूर नही बंगाल में ही देख लो।मुस्लिम देशों में तो
कम्युनिष्ट....हे हे हे हे।पर फ़िलहाल तो जाति-कास्ट को बढ़ावा दे ही रहे है।
यह जतिय-वर्णन आपको किसी पुराण शास्त्र अथवा हिंदू धार्मिक किताबों में
नहीं मिलेगा।वहां पर वर्ण के रूप में आपको वर्णन प्राप्त होगा। लेकिन अब
आपको जातीय जातीय कहकर के संबोधन किया जाता है।जाति पर जोर दिया है।इसको
आपपर उनके इतिहासकारों ने थोपा है और बार-बार जोर दिया है।
किसी
स्मृति में ,पुराण में, वेद में ,शास्त्र में, या धार्मिक पुस्तकों
में,आपको यह जातीय आधार नहीं मिलता है।लेकिन वह इसे प्रूफ करने में लगे
रहते हैं।एक जबरदस्त कॉन्सपिरेसी के तौर पर आप पर प्रयोग किया गया है।जिसे
समाज ने स्वीकार भी कर लिया है।वे इसे बहुत बाद के एक मनु-स्मृति ग्रंथ मे
से निकालने/प्रमाणित/प्रक्षपित करना चाहते हैं।उन्होंने न्याय सूत्र, और
"न्याय सिद्धांत मुक्तावली,नामक एक प्राचीन किताब को आधारित बना करके जातीय
परिभाषाएं निर्धारित करने की कोशिश की है।इस तरह से लाजिक लिया है की वह
तथ्यात्मक्क लगे।आप इसे समझ नहीं पाते और आपकी सबकॉन्शस इसे एक्सेप्ट करती
चली जाती है।आप कट्टर-पूर्वाग्रही होते जाते हैं।एक-एक जातियों को शोध करके
इसे समझना पड़ेगा। बहुत गहराई में उतर करके बेस समझना पड़ेगा।मौलिक काम की
जरूरत है।वह कहाँ से बनाये गए,कौन थे,किसने बनाया।सरकारे, युनिवर्सिटियों
ने इस पर पीएचडी तक नही करने दी।वह उस तरफ सोचने-देखने-आंकलन तक नही करने
दिया।एक मैक्स-वेबर थे,मैकाले के दूर के रिश्तेदार।पहली बार उन्होने ही इस
शब्द कास्ट को पैदा किया था...बेसिकली यह अङ्ग्रेज़ी और इस्लामी शासन के
गर्भ से प्रजनन-प्रक्रिया द्वारा पैदा किया गया था...आईवीफ-परख-नली विधि
से!
वेबेरियन,ग्रेट-ब्रिटिश-क्लास सर्वे,और मार्क्सवादियों ने इसका
पालन-पोलन किया था।क्म्युनिष्टों ने शुरू-शुरू मे तो सर्वहारा वाली थ्योरी
चलाने की कोशिश की परंतु जातीय रचना उनको मनोनूकूल लगी।आज भारत में उनकी
संख्या 2378 है।कम्युनिष्ट चिंतक डॉ॰ जी.एस. घुरिए का मत है कि ""प्रत्येक
भाषाक्षेत्र में लगभग दो सौ जातियाँ होती हैं, जिन्हें यदि अंतर्विवाही
समूहों में विभक्त किया जाए तो यह संख्या लगभग 3,000 हो जाती
है,,।हेहैहेही।ध्यान दे यह तरीके होते है की प्रस्थापना के।अब जरा इस
सिद्धांत को भी देख ले "एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे
जाते हैं।यह उपजातियाँ भी अपने में स्वतंत्र तथा पृथक् अंतविवाही इकाइयाँ
होती हैं और कभी कभी तो बृहत्तर जाति से उनका संबंध नाम मात्र का होता
है,,.. विवाह में ऊँची पंक्तिवाले नीची पंक्तिवालों की लड़की ले सकते हैं
किंतु अपनी लड़की उन्हें नहीं देते।,,
अरु देखिये क्या तर्क---क्या अवधारणाये है॥!
स्वायत्त ईकाई..,जातियों में ऊँच नीच का भेद,जातीय समूहों द्वारा समाज का
खंडों में विभाजन,जातीय समूहों के बीच ऊँच नीच का प्राय: निश्चित
तारतम्य,खानपान और सामाजिक व्यवहार संबंधी प्रतिबंध,नागरिक जीवन तथा धर्म
के विषय में विभिन्न समूहों की अनर्हताएँ तथा विशेषाधिकार,पेशे के चुनाव
में पूर्ण स्वतंत्रता का अभाव और,विवाह अपनी जाति के अंदर करने का नियम।
बड़ी चतुराई से गोत्र मे उसे जोड़ दिया गया है जिससे कृत्रिमता दिखने न पाये
अरु सजीशे प्राकृतिक लगने लगे।1896 मे से ही क्म्युनिष्टों ने यह शुरू कर
दिया था।उन डीनो वह अंग्रेज़ो के लिए काम करते थे। देखिये कुछ किताबों के
नाम....जे.एम.भट्टाचार्य-हिंदू कास्ट्स ऐंड सेक्ट्स,श्रीधर केतकर,द
हिस्ट्री ऑव कास्ट इन इंडिया,कास्ट इन माडर्न इंडिया ऐंड अदर
एजेज,जे.एच.हटन-कास्ट इन इंडिया, इटस नेचर, फंकशंस ऐंड ओरिजिंस,जी.एस.धुरिए
कास्ट,क्लास ऐंड ऑकुपेशन,ई.ए.एच.ब्लंट-द कास्ट सिस्टम ऑव नार्दर्न
इंडिया,एम.एन.श्रीनिवास आदि-आदि को लेकर बाद मे सिद्धांतिक भूमिका ग्रहण कर
ली।आज तक वही आधारभूत बना चला आ रहा रहा है।किसी ने उसमे मौलिक समझ घुसाने
की जरूरत समझी तो भूखा मर गया।बाद मे एक कांग्रेस का 'दुबे,घराना हुआ उसने
तो सारी सीमाए पार कर ली(कभी बाद मे)
कभी सोचा है मार्शल जातियों का धर्मांतरण क्यों नही होता...वे उन्हें क्यों अवाइड करते हैं....चाहे जिस तरह की घटनाएं हों।
....हिन्दुओ के मार्शल जातियों से क्यों फटती है...।कभी जाटों से नही उलझते...कभी सिखो या विशुद्ध गोरखों से उलझते..देखा है..!
खटीक-पासी जैसी मार्शल जातियों से उलझते देखा है कभी?? ऐसी हजार मार्शल
जातियां है लड़ना जिनका पेशा रहा है।कुरमी और यादव भी उन्ही में से एक
था...यादव एक साथ टूटेंगे...इसलिये.!!हमेशा 'वे,अलग करके बात करते हैं...
यह पुराना तरीका है।..........जिसने मार्शल-जातियां बनाया--तैयार की....व्यवस्था और स्वभाव बनाया...... काबिले तारीफ़ है।
पहले हिन्दू आपस में बैठकर साथ-साथ खापी नहीं पाते थे.....इससे उन्हें हरा
लेते थे।इतिहास में 'दुश्मनो से, हारने की यह बहुत बड़ी वजह थी।इस बीच
साथ-साथ,उठने-बैठने-खाने-पीने-बोलने-बतियाने वाली समस्या हल हो चुकी
है...अब एक समाज-एक पूर्वज-एक भूमि और गोत्र वाला सांगठनिक भाव तेजी से बढ़
रहा।.....अब साथ खाते भी हैं,साथ चलते भी हैं और सुरक्षया का विचार भी करते
हैं जरूरत पर साथ मिलकर लड़ते भी है।
विखण्डन के सहारे अब तक राज
करने वालों को धीरे-धीरे हिन्दुओ में स्थापित हो रहा यह एकता बहुत अखरती
है....वे हमेशा इसे ही तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं।नये उभर रहे जातीय
नेता भी स्वार्थ-वश इस जातीय लाभ को बनाने के लिए आपसी वैमनस्य और संघर्ष
को बढ़ावा देते हैं......अब हमें आपस में लडाने वाला गिरोह सक्रिय है।उसके
लिए इन सत्तर सालों में बार-बार जाती का उल्लेख करने वाली एजुकेशन और
आरक्षण सिस्टम के साथ...मीडिया-सिनेमा और इतिहास के पाठ्यक्रम,साहित्य
साथ-साथ ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम व् वामपंथी संगठन हैं....विदेशों से भी
इस तरह के विचारों का बढावा देने के लिए अच्छी खासी-फंडिंग आती
है.....जिनकी कोशिश हर पल यही रहती है यह जातीय व्यवस्था बनी रहे।इसे वे
उघाड़-उघाड़ कर स्थापित करके ताकत पाते है।हिन्दू एकत्व उनकी
अर्थव्यवस्था,मजहबी-राजनीति-साम्राज्यिक विस्तार के आड़े आता है।इसी लिए
'वे, हिन्दुओ में जातीय संघर्ष की कहानियों को खूब बढावा देते हैं।
इन एक हजार सालो में प्रशासकीय नीतियों के द्वारा जातियों का उभार पूरे
देश में किया गया। मुसलमान शासक लगातार कोशिश करते थे कि सनातन भारत में
विभाजन होता चला जाए। वह किसी तरह एकत्व फ्लो को तोड़ने के लिए प्रयासरत
रहे।छोटे-छोटे राजो को हराना आसान था पर पूर्ण धर्मांतरण न हो पाने के पीछे
हिन्दुओ का आंतरिक अध्यात्मिक विभाजन उनके आड़े आता था।यहां हिन्दू
सांस्कृतिक-आद्यात्मिक रूप से इतना सबल था कि अपने धर्म,संस्कृति,सिद्धांत
से,पितरो से पुरखों की नीतियों से, संस्कारों से इतना ताकतवर था कि वह
इस्लाम को पचा लेता।उन्होंने देखा की वह हिंदू समाज को धर्मांतरित नहीं कर
सकते जब तक की वह छोटे-छोटे टुकड़ों में ना हो जाए।छोटे-छोटे जातीय टुकड़ों
में बंटा हिंदू उन्हें आसान शिकार के रूप मे मिलता।वह हर चीज को लेकर
दीर्घ-कालिक हो उठे।
उनके पास सरकार थी,और 'सैन्य तर्ज पर
संगठित-विस्तारवादी-मजहब, था।हिन्दुओ को हजार से अधिक जातियों क्यों बदला
गया?? दरअसल इसे थोड़ा इस तरह समझना होगा।कम संख्या वाला 'मालिक, जिसकी
जनसंख्या 1% से भी कम हो,33 करोड़ से ऊपर आबादी का शासक हो।एक समाज जो उनसे
बहुत गहरा युद्ध कर रहा था, उन से लगातार लड़ रहा था।और उसमें उन्होंने
केवल सत्ता ही नही छीनी थी उसे धर्मान्तरित भी करना था।ऊपर से समाज में
क्रोध-आक्रोश भी भरा हुआ बैठा हुआ था। कुल 12 से 15 सौ लोग मूल शासक थे।सब
बाहरी।बोली,भाषा-पहनावा-जीवन जीने का तरीका और सोच ऊपर से धर्म शत्रुता से
भरा।सैनिको की कुल संख्या को मिला लिया जाए तो अधिकतम 4-5 लाख होंगे वह भी
बाहर से आए हुए।बहुत कोशिश करके धर्मांतरित किए हुओ की संख्या 8 से 10 लाख
ही हो पाई थी।जनसँख्या का अंतर इतना ज्यादा था की जनता को छोटे-छोटे टुकड़ों
में न बांटते तो शायद कभी न टिक पाते।यूरोप में भी जीत कर गए थे।वहां नही
बाँट पाये तो जीनो-साईट हो गया।जनता एक दिन गुस्साई तो सब को मार दिया।कोई
नही बचा।हर दम एक डर घुसा रहता है दिमाग में।चाहे जितनी बड़ी सेना हो।अगर
खुदा-न-खास्ता सभी एक साथ टूट पड़े तो क्या होगा?
अब उनके पास एक ही
तरीका बच रहा था कि वह सामने वाले धर्म मे 'विभाजन-विघटित करें।उन्होंने
हथकंडे अपनाये,पालिसियां बनाई और उनसे हिन्दुओ में मतभेद उत्पन्न करने शुरू
किये।गहरे मतभेद,गहरे विभाजन।
प्राण के लाले पड़े थे,जीने की चाह में हिंदू वह करता जो वह करवाते।
उदाहरण देखिये वह एक जाति पर दूज़रे जाती के सैनिकों से हमला करवाते।एक
दूसरे से लड़ाई,एक दूसरे के प्रति नफरत बढ़ाते।लगातार शासकीय नीतियों से
उन्होंने जातियां पैदा की।
शासकीय नीतियों द्वारा मानसिक दुराव पैदा किया।एक कुत्सित मंशा के तहत उच्च-नीच का बर्ताव अपनी शासन नीति में करने लगे।मतभेद और गहरे मनभेद पैदा किये।लगातार नीति बनाकर ऊंच-नीच जैसा बर्ताव करना शुरू कर दिया।शुरुआत में जजिया सब के लिए अनिवार्य था, लेकिन कुछ ही सालों बाद इस्लामिक शासकों ने ब्राह्मणों की एक वर्ग को 'जजिया, से मुक्त कर दिया।उनको 'नौकरियों, में लेना शुरु किया।सभी इलाको,ग्रुपो से कुछ को मिलाना सुरू कर दिया।यह मैं नही फिरदौजी,मिनहाजूद्दीन और अलबरूनी सभी मुस्लिम इतिहासकर घुमा-फिकराकर हिन्ट दे रहे है।हर वर्ग-इलाके से कुछ कुछ तनखइए मिल गए।देश भर मे क्षेत्र-वार देखिये...कही कोई जाती-जमीनदार है तो कही कोई अन्य ताकतवर है।मतभेद-मनभेद पैदा किये।लगातार नीति बनाकर ऊंच-नीच जैसा बर्ताव करना शुरू कर दिया।सल्तनत के इस सरकारी व्यवहार ने समाज में गहरा असर छोड़ा।एक जाति को प्रोत्साहन,एक को हतोत्साहन की लगातार एक हजार साल की शासकीय नीति ने न केवल समाज को टुकड़ो-टुकड़ो में बाँट दिया बल्कि एक दूसरे को नफरत से भर दिया।
जबकि सैद्धांतिक आधार पर बुतपूजक होने
के नाते 'ब्राम्हण, ही उनका मुख्य 'काफिर, था...सबसे ज्यादा दमन उन्होने
ब्राम्हणो का ही किया पर कुछ को महत्त्व देना शुरू कर दिया।दोगली नीति
अपनाई गई।प्रसिद्ध करना शुरु किया।अल-तकिया। राजवंशो,क्षत्रियो,ठाकुरों की
कुछ जातियों को उन्होंने पूरे देश में दमित करना शुरु किया वह धीरे-धीरे
दलित जातियो मे बदल गए।उनही मे से कुछ को पश्रय देना सुरू किया।सनातनियो
में जो भी उन्हें दुश्मन लगता।दमित करते-करते धीरे-धीरे उनको निचली जातियों
में बदल दिया गया।महज सौ-सालों में ही एक बड़ा समाज निचली जातियो में बदल
गया।शत्रु जैसा ही बर्ताव करते थे यह 80 से 100 जातियों का विभाजन उन्होंने
शुरू के सौ-दो-सौ सालों में किया।बाद में धीरे-धीरे उन्होंने तरह-तरह से
छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटो और शासन करो की नीति के तहत 'नीच, जैसा बर्ताव
करना शुरू किया।बाद मे यह जड़े जमाती चली गई।हिन्दू-समाज को बांटने का यह
तरीका जलालुद्दीन अकबर के काल में सबसे खतरनाक तरीके से अपनाया गया।अकबर ने
तो पूरे देश में विभिन्न-जातियों को जमीन देकर स्थायी आधार दिलवाया।जमीन
का बटवारा किया गया।जिसे हम 'स्थाई बन्दोबस्त, के नाम से जानते है मूलतया
वह राजा टोडरमल के माध्यम से पूरे समाज को भिन्न-भिन्न करने की साजिश थी।उस
समय तक पुराने राजवंश किसी तरह छुप-छुपाकर खेती करके खा-पी-जी लेते थे।पर
इस बन्दोबस्त से उनका आर्थिक-स्वरुप दरिद्र में बदल गया।अब समाज ने भी
आर्थिक लिहाज से बर्ताव करना शुरु कर दिया।यही समाज के विघटन का आधार
बना।....... और उसी में से जन्मी घनघोर जातीयता, अस्पृश्यता,छुआछूत एक
दूसरे के प्रति नफरत,एक दूसरे के प्रति दूरी का भाव,।इसे बढावा दिया गया।
इस पर शोधार्थियों को आगे आने की जरूरत है।तत्तकालीन साक्षय बहुत
है।'औरंगजेब की 'फतवा-ए-आलमगीर, इसकी सबसे बड़ी गवाह है।उसमे दीर्घ-कालीन
नीतियो को अपना कर हिन्दुओ को अलग-अलग करके, इस्लाम में धर्मांतरण कराने की
बात कही गई गई है।बाद के मुगल शासक कमजोर हो गए।मराठे ताड़ गये और उन्होंने
सबको संगठित किया और साथ मिलकर लड़े।पर यह अस्थाई था।मार्शल-जातियो को
समझिए तो बात जल्द समझ मे आ जाएगी।
अब आप इसे वर्तमान में ही देख लीजिए जो भी शासन में होता है जनता उसके साथ कैसा बर्ताव करती है।अब आप इसको ऐसे समझ सकते हैं कि शासकीय नीतियां जातियों को आज भी उसी उसी तरीके से लगातार बढ़ावा देने का काम कर रही हैं।थोड़ा भी दिमाग लगाएंगे तो साफ़ दिखेगा जातिया शासकीय नीतियो से उपजाई गई।इन एक हजार सालो में प्रशासकीय नीतियों के द्वारा जातियों का उभार पूरे देश में किया गया।मुसलमान-ईसाई शासक लगातार कोशिश करते कि सनातन भारत में विभाजन होता चला जाए।वह किसी तरह एकत्व फ्लो को तोड़ने के लिए प्रयासरत रहे।छोटे-छोटे राजो को हराना आसान था पर पूर्ण धर्मांतरण न हो पाने के पीछे हिन्दुओ का 'वैज्ञानिक आंतरिक-अध्यात्मिक वर्ण-व्यवस्था, उनके आड़े आता था।
यह अलग बात है हिंदू समाज बदलाव का माहिर है।राष्ट्र देह है,धर्म उसकी आत्मा है,जीवन-पद्धति उसका प्राण है।यही उसकी पहचान है।
मुस्लिम शासको द्वारा हुए इस बदलाव में उसने "जातीयता, को अपनी सुरक्षा
पर्यावरण मे बदल डाला।वे सहज ही अपने अस्तित्व से जुड़े लोग थे।उनकी इस नीति
से वह लाख कोशीश के बाद भी धर्मान्तरण में सफल न हो पाए।छोटे-छोटे इस
नए-जातीय संगठन ने उनका बचाव-संरक्षण ही किया।लड़ाई का दायरा और बढ़
गया।मुस्लिम इस बात से भौचक थे।गजब समाज।(इस-पर फिर कभी)
बाद मे धीरे-धीरे इन मुस्लिम विभाजनकारी नीतियो को अंग्रेजों ने भी समझ/अपना लिया।हाँ-थोड़ा देर से 1835 के बाद समझा।उसने इसे ओफिसियली अपनाया।इस बार उसने सुगठित और क्रमबद्द व्यवहार करना शुरू किया।रजीमेंटो का निर्माण,स्कूल प्रणाली,इसी नीति के तहत शुरू हुआ।आप तो जानते ही हैं अंग्रेज हमेशा 200 सौ-साल आगे सोच कर चलता है।जातीय विभाजन के आंकड़े कागज पर और पुस्तकीय रूप दी।उसने इसे गजट में इसे विस्तृत रूप से डाला।सबसे बड़ी रणनीति तैयार की।जर्मनी-ब्रिटेन-यूरोप के कई लेखको को मोटे-वेतन के साथ इस पर लगाया गया।कास्ट पर आई शुरुआती पुस्तके देखिये एच. रिजले ई 1891- ट्राइब्स ऐंड कास्ट्स ऑव बंगाल - इथनोग्राफिक ग्लासरी, ई1896 मे विलियम क्रुक : द ट्राइब्स ऐंड कास्ट्स ऑव नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज ऐंड अवध, ई 1916आर.बी. रसेल : ट्राइब्स ऐंड कास्ट्स ऑव सेंट्रल प्राविंसेज ऑव इंडिया,1920 -ई. ए. एच. एंथोविन : द ट्राइब्स ऐंड कास्ट्स ऑव् बांबे,।इस तरह से उन्होने अपनी सोच को लाद दिया। इसको आप बहुत गहराई से समझने की कोशिश करिए।जातियां वर्तमान दशा में आ गई बाद में अंग्रेजों ने इस कदर लाजियल रूप मे जातीय व्यवस्था में बदल दिया कि सनातन समाज छोटे-छोटे टुकड़ों में मे ही मानने भी लगा।
अंग्रेजों की यह नीतियां ही कथित-आजादी के बाद के कांग्रेसी
शासकों ने और ज्यादा चतुराई से अपनाई। उन्होंने समाज में आरक्षण-प्रणाली,
समाज की विभाजन प्रणाली,वोटिंग प्रणाली, समाज के जातीय वर्गो से इस तरह के
नेतृत्व को बढ़ावा दिया, इस ढंग से बढ़ावा दिया कि वह अपने स्वार्थ पर अड़
करके समाज को तोड़ने का ही काम करने का काम कर रही है।परवर्ती कांग्रेसी
शासको की मंशा इस बात से समझनी चाहिए की बजाए उनका आर्थिक-सामाजिक-विकास
नीति अपनाने के उन्होंने विभाजनकारी आरक्षण नीति अपनाई,।मेरे अनुसार आजादी
के तत्काल बाद सभी कम्पीटीशन प्रणाली अपनाने की जगह सभी कामगार पदों पर
पिछड़ गई वंचित जातियों को भरना चाहिये था तथा उनके विकास के लिए आर्थिक
उन्नयन नीति अपनाना था।बड़े तरीके से समाज को एक दूसरे से आपस में बहुत दूर
कर दिया गया है।सामाजिक संगठन को,सामाजिक समरसता इन नीतियो ने खत्म कर
दिया।सबसे महत्वपूर्ण बात लम्बे-गुलामी काल,दरिद्रता,अभाव,असुरक्ष में इसके
घातक पहलू को समझने की मति ही उत्पन्न नहीं हुई।परिणाम गम्भीर है आज
हिन्दू समाज,दुनियां का सबसे पुराना आद्यात्मिक समाज,अमरता-बोध से भरा
समाज,हजारो टुकड़ो में बंटा हुआ है।
बाकायदा उपजाया गया 'घोर-जातिवाद,
केवल जहर ही नही बना हुआ युग-युगीन सनातन समाज के लिए खतरनाक वैपन की तरह
इस्तेमाल हो रहा है।सारी दुनियाँ के इतिहास मे 'सरकारी प्रयोग, का यह अपने
मे सबसे अनूठा उदाहरण है।
जब आप किसी मुसलमान दोस्त से
धार्मिक मुद्दे पर बात करिए तो वह बड़ी खूबसूरती से जाति पर लाने की कोशिश
करता है,।उनकी बांछे खिल जाती है।
उसे बड़ी चिंता होने लगती
है,छुआछूत,और दलितो की....बस आँसू निकलने ही वाला होता है।वह कोशिश करता है
कि कह सके कि ब्राह्मण एक वर्ग है,वह बड़ा शोषण कर रहा है।उनके यहां तो
बड़ा भाईचारा है,बड़ी समानता है।आपस में खूनीजंग,82 फिरको में आपस में
प्राण-हरण कर रहा समाज उसे जब "भाईचारे वाला, बताता है तो तेज हंसी आती
है।,पर वह वह किसी के मन में इसे चतुराई से डाल रहा होता है।आपके अंदर
बँटवारे का बढावा दे रहा होता है।आपने भी इसको बार-बार अनुभव किया होगा कि
जब आप बाहरियों से बात करते हैं तो वह बातचीत 'कास्ट।, पर आ जाती है।हमेशा
वह एक जातीयता वाली बात 'एक हथकंडे,(औज़ार) के तौर पर करता है। इसके पीछे
उनकी वह हजार साल पुरानी 'मंशा,काम कर रही होती है।इस हथियार को उन्होने ही
बना कर इंपोज किया है।वह गहरे उतर गया है।न निकलने वाली स्थिति मे।वह एक
'कमजोर (मर्मस्थल) के तौर पर इसको उपयोग करते हैं।वे जातीय कमजोरियों का
इस्तेमाल गजवा-ए-हिन्द के लिए कर रहे हैं।राष्ट्रीय-सुरक्षा के मुद्दों पर
इक्कठा न होने देने के लिए कर रहे है।समय के साथ इसमें मजबूती आती जा रही
है।
आपको पता है पाकिस्तान और बांग्लादेश,अफगानिस्तान में कौन सी
जातियां बच रही हैं??यह पिछड़ी जातियां हैं,यह sc-st जातियां हैं,।वे वहाँ
से भाग कर आ नही पाई।सोचा शायद.!अन्य सो-काल्ड अगड़ी जातियां वहां से किसी
तरह निकल आई,सुरक्षित इलाके में,अपने हिंदू राष्ट्र में पर अति-पिछड़े वही
रुक गए।उनके पास आने का कोई तरीका नही था।अब जो वहां पर हैं और उनकी
परिस्थितियों का पता करिए जरा!
मुसलमान भारत में दलित के साथ गठजोड़ का
पैतरा चलता है,उनसे राजनीतिक हित की बात करता है दलित-मुसलिम एकता की बात
करता है,अगड़े-पिछड़े की बात करता है, लेकिन जब वहां देखेंगे,पाक में या
बांग्लादेश में,तो वहां इस कदर उन्हें परेशान किया जाता है, इस कदर उन्हें
कम किया गया है कि मानवता शर्मसार हो जाये।बांग्लादेश में 68 वर्ष में 52
प्रतिशत से घटते-घटते प्रतिशत 8 बचे है...सब दलित थे।किसी तरह जी रहे
हैं।समझने के लिए यही काफी है।हमारे अंदर का वंचित-समाज उनका 'चारा, हैं।सो
काल्ड 'भाई का चारा,।
आज आजादी के बाद वह आवरण जहरीले मतभेदों में बदल चुका है।सरकार की नीतियां तो घातक है ही अब टीवी,समाज के अन्य कार्यक्रम,लोगो के व्यवहार,चुनावी गणित,आंतरिक कुटिलता,व्यवसायिक चालें,स्थानीय विषमताएं,सब उसे बढ़ा ही रही है।भारत में विभाजनकारी नीति के तौर पर अपनाया जा रहा है।वह हमारी कमजोरी बन चुका है।एक ऐसी कमजोरी जिसका नियंत्रण विदेशियों के हाथों में है।दुश्मनों के हाथों में है।बहुत सारे ऐसे स्वार्थी नेता भी खड़े हुए हैं जिन्होंने समाज में विभाजन को मजबूती प्रदान किया है।वह देखते हैं कि उनका उसमें ही लाभ है।भले ही समाज को विनाशकारी घाटा है।उनका वह निहित स्वार्थ-लाभ जाति के अन्य लोगो के लिए नहीं है बल्कि व्यक्तिगत है।इससे कभी जातियों के अन्य आंतरिक लोगों का विकास नहीं हुआ करता। जो गरीब था वह गरीब ही रह गया है। उनका विकास नहीं हुआ।हां!नेताओं का विकास हुआ है।कुछ लोगों का विकास हुआ है। कुछ कारपोरेट का विकास हुआ है।क्रीमीलेयर बना है।वह खुद अपने जातीय-समाज का उच्च-वर्ग बन चुका है।उस छोटे समुदाय और जाति को तो नुकसान ही पहुंचा रहा है साथ ही सनातन युग-युगीन धर्म के लिए लिए बहुत ज्यादा घातक सिध्द हो रहा है।इसके कारण हिंदू बहुत तेजी से घटता जा रहा है।यह घटते-घटते जगह-जगह संख्यात्मक अनुपात इस तरह से नजदीक हो गई है, इस तरह से कम हो गई है कि कोई लड़ने वाला ही नहीं बचा।पाक ले लिया,बांग्लादेश ले लिया अब कुछ जमीन और तैयार है। वे एस-सी,एसटी जातियों को निशाने पर रखते हैं।कही सेवा,कहीं लालच,कही अभाव,कही दूरी दिखाकर धर्मांतरण करते है।कई जगह उन्हें इसमें सफलता मिलती है।देश बंट रहा...कहीं इसाई तो कहीं कसाई।
हम आगे नहीं आते,हम अपने अंदर की जातीयता को खत्म नहीं करते,हम युग-युगीन सनातन को नहीं बचाना चाहते,हम तो दुश्मनो की बनाई छोटी-छोटी जातियों को पकड़ कर बैठे हुए हैं...हमारे नेता भी निहित स्वार्थ में उसे बढावा देते हैं।यह सब हमे कमजोर कर रहीं, हमें हरा रहीं,नष्ट कर रही हैं,हमारी शक्ति को समाप्त कर रही हैं, वह छोटे टुकडे कर देती है,हमारी राष्ट्र-शक्ति समाप्त होने लगती है।हमें इस जातीयता को खत्म करना पड़ेगा,हमें उस हथियार को नष्ट/खत्म करना पड़ेगा,सभी जातियों से कुछ समझदार लोगो को आगे आना पड़ेगा।तब हम जीत सकेंगे।हम अपने लोगो को सुख के उच्चतम-शिखर पर पहुचा सकेंगे।तब हम परम्-वैभव के स्थान पर पहुंच सकेंगे।विश्वगुरु के स्थान पर पहुंच सकेंगे।
अगर नहीं समझेंगे तो
आपका मूलाधार खतरे में हैं।आप मार्क्सिस्ट इतिहासकार ,कम्युनिस्ट
इतिहासकार, कांग्रेसी इतिहासकार ,मुसलमान इतिहासकार, और ईसाई इतिहासकारों
,की साजिशों को ठीक से समझ लीजिए। उनके पत्रकारों ,उनके लेखकों,मीडिया
मुगलो,नैनो मीडिया-पर्सनालिटीज के एजेंडे को समझिए।वे क्यों बार-बार
कास्ट-सिस्टम पर जोर देते हैं-बढावा देते हैं।
भारत में राजनीतिक दशा
और लोकतंत्र का लाभ उठाया जाता है।अगर प्रेम है तो वहां दलित-मुस्लिम
करो।थोडी धर्मनिरपेक्षता की बात करो।आप वहां खड़े किये जाते हैं जहां आपके
लोग नही हैं उनकी सेवा की जगह उनसे विघटन के साथ यानी आप शक्ति के सर्वोच्च
पर पहुंचने से आपको रोकने के तत्व आप में डाले गए हैं।भारत में यह
विभाजन,यह कमजोरी उनके लिए लाभप्रद होती है।वह हिंदुओं को एक नहीं होने
देना चाहते हैं।जैसे ही कोई राष्ट्रीय मुद्दा उठता है,बड़ा सांस्कृतिक या
एजुकेशन सुधार,धारा 370, कॉमन सिविल कोड, आर्थिक या बचाव की
रणनीतियां,आतंकवाद,दुश्मन देशो पर,यहां तक कि बांग्लादेशियो को बाहर करने
के मुद्दे पर भी वे तुरंत कोशिश करते हैं कि चीजें जातिवाद की तरफ मुड़
जाएँ।बुनियादी तौर पर देश के छोटे-छोटे टुकड़ों में हर तरफ तरह-तरह के'जाति
के नेता, खड़े हो गए हैं।वोट की राजनीति के लिये,वोट प्राप्ति करने के
उद्देश्य से उनका साथ देने लगते हैं। उनके एजेंडे पर एक एजेंट के तौर पर
उपस्थित हो जाते हैं।यह हमारे समाज को कमजोर करता है और दूरगामी परिणाम को
प्रभावित करता है,विकास तो लगभग रुक ही जाता है।समाज का सांगठनिक ढांचा
खत्म ही हो जाता है।
यह भारतीय समाज के लिए,आर्यो के समाज के लिए
खतरनाक वैपन की तरह इस्तेमाल हो रहा है हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका
है।हमे,और हमारे हिन्दू समाज को इस हथियार का तोड़ खुद निकालना होगा नही तो
सैम्युअल टी हन्तिगंटन की बात सही साबित होगी।वे आपको राजनीतिक तरीके से
अलग करेंगे फिर धीरे से पचा लेंगे।इस सबसे 'खौफनाख पुराने हथियार, को पहचान
कर बचाव ढूंढ लेंगे तो बच सकते हैं।
(आगे पढ़िए-आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-11)