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आक्रमण के हथियार बदल गए है- 0 (प्रस्तावना)

''छोटी-छोटी चीजो का ध्यान रखो बड़ी चीजे खुद होती है।,, 'फ्रांस की एक कहावत,

अपने सम्प्रदाय को बढाने,स्थापित करने के लिए पहले जेहाद,और क्रूसेड युध्दक हथियारों से होते थे।बिलकुल दो राज्यो की तरह यह युद्द होते थे।मरे,कटे,घायल सैनिक,टूटे-कटे पड़े देह।आमने-सामने की जंग के उपरान्त हारे हुये मजहब-सम्प्रदाय-संस्कृति के पूजा-जीवन शैली-आस्था स्थलों को तोड़ा जाता था।राज्य का कब्जेदार अपने मजहब में जनता को मार-मार कर धर्मांतरित करा लेता था।पिछले एक हजार साल से गुलाम हिंदूस्तान के करोड़ो लोगो को जबरदस्ती मतान्तरित करा लिया गया।पहले 800 सालो तक मुस्लिम बनाये गये बाद के 190 सालो तक शासकीय संरक्षण में ईसाई बनाये गए।आजादी के बाद जब मजहब ने हजारो साल पुराने राष्ट्र को बाँट कर अपने लिए एक अलग हिस्सा ले लिया।आजाद हिंदुस्तान में जेहाद,क्रूसेड का तरीका बदल लिया।लेकिन आक्रमण जारी है।समय के साथ अस्त्र,शस्त्र,युद्द की रणनीतियाँ और तरीके बस बदल गए है।इस बार मतांतरण के लिए तीनो ही कट्टर संगठन लग गए थे।मजहब,रिलीजन और कम्युनिज्म।उनके हथियार निहायत आधुनिक हैं हमारी युद्द की कल्पनाएं नितांत पुरानी।युग-युगीन हिन्दू हमेशा की तरह ही निशाने पर है,शत्रुओं के।

इन वर्षों में,विभिन्न काल-कालांतरों मे तलवार,तीर-धनुष,भाला,फेंकने वाले अस्त्र,बंदूक,तोप,टैंक,पनडुब्बी,मिसाइल,केमिकल,परमाण्विक बमो,हेलिकॉप्टर,बैलेस्टिक मिसाइलों से गुजरते हुये कुछ नए तरीके आ गये है।हम युग-सनातनी अभी उसी पुराने तौर-तरीके में को दिमाग में बैठाये हुये हैं कि दुश्मन उसी पुराने तरीके से आएगा,तलवार,बमों के सहारे लेकर हमारी मंदिर गिराएगा और हम उस का मुकाबला करेंगे।अब वह एसबी इतिहास की बाते हो चुकी है।इस बार जब दुश्मन आएगा तो उसके लिए हमारे पास मजबूत सेना है देश की सेना।वह रक्षा करेगी।वह हमारे साथ वैसे ही सामने-सामने का युद्ध करेगा तो मुंह की खायेगा,हम दुनिया की सबसे शौर्यवान और मजबूत सेना रखते है।बशर्ते की उसका उपयोग हमे आता हो।सेना के मामले मे हम नागरिकों को भी उतना ही सजग रहना होगा जितना कि कोई सरकार रहती है।अपने संगठित वोट के सहारे हम अपने -हितो की सरकार दे सके जो सचमुच हमारी ही जन,भूमि,संस्कृति की रक्षा करने के लिए ईमानदार हो।लोकतन्त्र मे प्राय: मूर्ख बनने की संभावना रहती है।कई बार भेड़िये भी रक्षक वेश मे होते है।पता भी नही चलता और अपने ही मत से हम खुद के दुश्मन को मजबूत कर रहे होते है।सनातनीयों को जात-पांत मे बांटने वाले हथियारो को पहचानना सीखना होगा।उनके पास वह सबसे अभेद हथियार है जो हमारे मतो को तो विभाजित करता है किन्तु उनको मजबूत कर देता है।याद रखिए आपके मतो को ही आपकी सेना पर नियंत्रण करने की शक्ति दी गई है।कई बार सेनाए मैदानी युद्द जीत लेंगी लेकिन गलत मत आपको हरा देगा संभव है की निष्ठाये भिन्न हो।सनद रहे 70 साल का इतिहास।हम यह समझ ही नही पाये।अश्त्र-शस्त्र युद्द के तरीके बदल चुके हैं।उनके निशाने पर तो हमारा धर्म-पुरखो की थाती ही है।पर तौर-तरीके,अस्त्र-शस्त्र,हथकंडे नये।हमेशा की तरह हम उनको पहचानने में गलती कर रहे हैं,देरी भी।इतिहास पढ़िये वे केवल आपके राष्ट्रीय अस्तित्व पर वार करते है।वे समग्रता-सम्पूर्णता पर हमला करते है।वे समझ पर हमला करते हैं व्यक्तित्व पर हमला करते हैं।वह आमूल-चूक प्राचीन संस्कृति पर हमला करते हैं।वे हजारो साल पुरानी संस्कृति को तबाह करना चाहते हैं।समस्या यह है कि हम उन्हें पहचानते नहीं। हम पहचानना नहीं चाहते।हथियार बदल गए हैं और हम उन हथियारो को रिकग्नाइज नही कर पा रहे।यह बात सबसे खतरनाक है।

सैन्य-विज्ञान के सिद्धांतो मे भी बहुत से बदलाव आए है।सेना बहुत कुछ अपनी कमजोरियों पर विजय पाने मे सफल रही है।परंतु मनोबल और परिवार का गहन-संबंध होता है।विशेषकर घरेलू -राजनीतिक मोरचे कि असफलता सैनिको को कमजोर करती है।निर्णयो मे देरी और काइयाँ-पन के पीछे छिपे भ्रष्टाचार को हर कोई भाँप ही लेता है।किसी जमाने मे जासूसी-पन मुख्य हथियार होते थे वे आज भी है उनको आप कमतर मत समझिए।सेना के लिए हतोत्साह प्रोजेक्ट के रूप मे भी सरकार के कुछ निर्णय काम करते रहे है।आज मीडियाटिक-वार भी एक महत्वपूर्ण मोरचा होता है।आपने देखा होगा अमेरिका जैसे देश पहले शत्रु देश की इमेज बनाते है फिर सबसे आखिरी मे सेना भेजते है।पिछले दिनो की कुछ घटनाए याद करिए हमारे यहाँ भी मीडिया मे कई लोग ऐसे है अप्रत्यक्ष रूप से शत्रुओ की मदद करते है।एक तरफ तो वे लाबिंग करके सुरक्षा-निर्णयों को प्रभावित करते है,दूसरी तरफ सेना की इमेज खराब करके मनोबल प्रभावित करते है,तीसरी तरफ जनता मे गलत संदेश देकर भ्रम पैदा करते है।उनके हथियारो को पहचानिए।

अमेरिकन संविधान लिखित होने के बावजूद बहुत छोटा है।पर बहुत खूब-सूरत है।संयुक्त राज्य अमेरिका, महाद्वीपीय देश है।एक संघीय गणतंत्र है। ५० राज्यों और एक संघीय ज़िले से बना है।३०.५ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह चीन और भारत के बाद विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।स्वतन्त्रता और पूर्ण स्वतन्त्रता उसकी सुंदरता है।मुझे कभी-कभी लगता है कि उन्होने सनातनी जीवन शैली का अध्ययन करके वह संविधान लिखा है।सनातनी जीवन शैली लिखित नही आचरण मे ही मौजूद है।हजारो साल का अभ्यास सेकंड-इक्झिस्टेंट को मान्यता दिला सकता है।पर लोकतन्त्र मे अपनी ही लादने की प्रवृत्ति घातक होती है।कई समाज ऐसे होते है जिनके सोच,संस्कार,प्रवृत्तियाँ, 'सांप्रदायिक राजनीतिक विस्तार-वादी संगठन,दूसरों के अस्तित्व-समापन की तैयारी मे लगे रहते है।अमेरिकन संविधान-अभिभूत नागरिक(व्यक्ति नही)उसे दुश्मन कहता है।यहां बात दुश्मनों की नहीं है।अब दुश्मन स्पष्ट है।सारी दुनिया के लिए अंडरस्टुड है कि दुश्मन कौन है।वही जो हमारे जन,भूमि,संस्कृति और मूलप्रवाह का दुश्मन है,जो हमारी देश का दुश्मन है,हमारे इतिहास का दुश्मन है।हमारे पितरों का दुश्मन है, जो हमारे शानदार अतीत का दुश्मन है,वही हमारे राष्ट्र का दुश्मन है वही हमारा भी दुश्मन है। मैं उस शत्रु को पहचानने की बात नहीं कर रहा मैं यहां नये अस्त्र-शस्त्र की बात कर रहा हूं।वह अनदेखे-अनजाने,अपरिचित,घातक औजार जो हमे काफी अंदर तक नुकसान पहुंचाते है।केवल प्राणलेवा ही नही,व्यक्तित्त्व के नाशक है,अस्तित्त्व के लिए विनाशकारी है।यहां बात है हमारे अस्तित्व की,उसकी सुरक्षा की। इसलिए हर-एक एंगल से उसको सोचना-समझना पड़ेगा। राजनीतिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा,सांस्कृतिक सुरक्षा अपने आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा अपनी जीवनशैली की सुरक्षा, स्वरुप के साथ परस्पर अंतर्संबंधों की सुरक्षा, इस पर हमें ही सोचना होगा।कोई दूसरा न सोचेगा।जीवनशैली पर हर हर तरफ से आक्रमण हो रहे हैं समस्या यह है कि इन आक्रमणो को हम पहचानते तक नहीं।यह तरीके इन 100 सालों में विकसित हुए हैं।उन्हें हम पहचानते नहीं, उन हथियारों को हम समझते नहीं।क्योकि इन सालों में हथियार बदल गए हैं उनको देखने की दृष्टि नही विकसित कर पाए।

श्रद्धा के उपहास,पुराने टूटे पड़े मंदिर,आपके सामने ही आराध्यो के मजाक उड़ा कर बनाये जाते चुटकुले,आस्थाओं पर फिल्माए-दिखाये जाते घटिया दृश्य,आप के मंदिरों,उपासना स्थलों के सामने अथवा आसपास अंडे और शराब की दुकानें,रेलवे स्टेशनों,सेना मुख्यालय,हर सड़क के बीच या किनारे या हरेक मुख्य जगहों पर और जगह-जगह बनती-बढ़ती हुई मजारे हुई,कई सार्वजनिक मांसाहारी त्यौहार,डेली सुबह से ही कई बार गूंजती लाउड-स्पीकर की तेज आवाजें,हर 4 किलोमीटर पर बने हुए ऊंची सी बिल्डिंगे, शहर के बीचोंबीच जगह-जगह कटे हुए बकरे-चिकन मांस की दुकानें,शुक्रवार को बीच सड़क पर विशिष्ट गणवेश में एक साथ दिख रहे चेहरे,जगह-जगह गोलबंदी कर एक विशिष्ट वेशभूषा में घूम रहे लोग,छोटे शहरों में भी हर महीने में हो रही विशिष्ट तौर-तरीके से हत्याएं यह सब हथियार ही हैं.यह सब डराने के हथियार हैं।यह सब मनोविज्ञान के हथियार हैं। यह सब हावी होने के हथियार हैं।इन्हें भी पहचानिए लेकिन इन पर मैं नहीं लिखूंगा।क्योकि हजारो साल से इसे हम देख सुन रहे हैं

अंग्रेज़ो के जाने के बाद यदि इस देश के नेताओ,चिंतको,ऐक्टिविस्ट्स,,नीति-नियंताओ,ओपिनियन-मेकर्स इतिहासकारों ने यदि हिंदुत्व समझा होता,सांस्कृतिक चेतना के महत्व को जाना होता,यदि उन्हें ये पता होता की शिक्षा में सर्वोच्च स्थान नैतिक शिक्षा का होता।मूल्यों का होना चाहिए था।अपनी संस्कृति और सभ्यता का गौरव होना चाहिए था अगर वह थोड़ा भी समझते तो इस पवित्र भारतभूमि के समाज का इस तरह तक नैतिक पतन नहीं होता।इस समाज में निर्भया नहीं रौंदी जाती।सत्ता के लोभी नही होते।,सामाजिक द्वेष नही होता है।हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी पहचान है,हमारा अस्तित्व है,और इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है।हम हिन्दू हैं,सनातनी हैं,हमारा इतिहास है हमने कभी भी किसी पर अपना धर्म या या अपनी जीवन पद्धति दूसरों पर थोपने की नीति में कभी विश्वास नही किया।हिंदुत्व तो अध्यात्म है,प्राकृतिक अवधारणा है,वैज्ञानिक जीवन-संवेदना है।घर-घर में वेदोच्चार हो,गीता पाठ हो ।पृथ्वीराज,शिवाजी और राणा प्रताप की कथाएं बच्चे सुनें,समाज को वास्तविक हीरो मिले।सनातनी कॉस्मोलॉजी को पढ़ें।हिंदुत्व के मूल से जुड़ें, उसे महसूस करें तो यह खुद मे ही संविधान-प्रदत्त स्वतंतता से जुड़ा देगी।इतिहास से जुड़कर ही अपनी भूमि-पुत्र के गौरव से जुड़ा जा सकता है।ये सब आवश्यक है राष्ट्रीय समाज को पुनः खड़ा करने के लिए। जिस समाज में स्वाभिमान हो,नैतिकता हो,सम्मान हो,पुरुषार्थ हो।यह चीजे इधर के नीति-निर्धारक अगर समझते तो अब तक युग-युगीन राष्ट्रात्मा जागृत हो गई होती।हम विश्व के सिरमौर हो चुके होते पर नही उनके उद्देश्य,हिडेन एजेंडे थे।

वैसे वर्षों पुरानी कुंठा अब बाहर आ रही है।लड़के जबाब लिखने लगे है।बड़ी संख्या में प्रतिरोध के लिए आगे आ रहे।कर्णी सेना/शिवसेना और जगह-जगह छोटे-छोटे संगठन भी उसी का प्रतीक है।लोग इतिहास जानने लगे हैं उसमे छुपी साजिशो को पहचानने लगे है।,वर्तमान झेल रहे हैं,और भविष्य में अपना अस्तित्व बचाना चाहते हैं।अगर पाकिस्तान ख़त्म हो गया तो भी इस्लाम बचा रहेगा,अगर अमेरिका ख़त्म हो गया तो भी दुनिया में ईसाईयों की संख्या बनी रहेगी ।पर अगर भारत ख़त्म हुआ तो पूरी हिन्दू सभ्यता ख़त्म हो जाएगी और अगर हिंदुत्व समाप्त हो गया तो भारत का पतन हो जाएगा ।भारतीय और हिन्दू समानार्थी शब्द हैं ।आप इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक मुल्क का ही उदहारण ले लें,वहां आज भी नमाज़ पढ़ने वाले पूरी आस्था के साथ भाग लेते है। उन्होंने अपनी पूजा पद्धति बदली है,अपनी संस्कृति नहीं।वहां कोई अब्दुल,हमीद,आज़म,नसीरुद्दीन नही होता, उनके नामों से भी उनकी संस्कृति झलकती है ।यहाँ तो धर्मान्तरण के साथ राष्ट्रांतरण भी हो जाता है ।क्या कारण था कि रोम,यूनान और मिस्त्र की प्राचीन सभ्यताएं ,और ऐसी कई विराट संस्कृतियां विलुप्त हो गईं ? पूरी संस्कृति का ही विनाश हो गया? ये कैसे लोग थे जिन्होंने ये मान लिया था कि उनका धर्म या उनकी सभ्यता सर्वोच्च है और सदियों पुरानी महान सभ्यताओं को पूर्णतः नष्ट कर दिया?
ये कैसे लोग हैं जो सीरिया या गाजा में मरे मुस्लिमों के लिए छाती पीटते हैं और बांग्लादेश और बलोचिस्तान में हिंदुओं पर हुए अत्याचार पर चुप्पी साध लेते हैं ?काश्मीर,बंगाल,केरला आदि के मुद्दो पर सांस अटक जाती है?धर्मान्तरण जैसी खतरनाक चीज पर नही बोलते?आतंकवाद की परिभाषाये नही बनाने देते।

सेकुलरिज्म,साम्प्रदायिकता,असंगठित स्वरूप,भाषाई विवाद,नस्ल-भेद,अन्य संवैधानिक कमजोरियां,आर्थिक-असमानता,आरक्षण,विदेशी आर्थिक-जाल,कामर्शियल लाबिंग,गरीबी,अशिक्षा,भ्रष्टाचार,बेरोजगारी,नक्सलवाद तथा अन्य आदि भी एक समस्या है।इस सीरीज मे इन सभी पर चर्चा नहीं करूंगा।कई बार आपके समाज पर संविधान को भी एक अतिरेक रूप में दुरूपयोग होता है,उस पर मैं चर्चा नहीं करूंगा।वोटिंग भी एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होता है इस पर मैं चर्चा नहीं करूंगा। गजवा-ए-हिंद पर भी मैं कुछ नहीं लिखूंगा।इधर संस्कृति में जो बदलाव आए हैं उनको मैं नहीं चिन्हित करूंगा।व्यवहारिक रूप से व्यापारिक,कमर्शियल, बदलाव आए हैं उन पर लिखने का कोई मतलब नहीं है।उसके लिए पूरे कई-कई विभाग बने हुए हैं। विभिन्न सांप्रदायिक मुद्दे,धारा 370 कॉमन सिविलकोड,कश्मीर,आतंकवाद,अयोध्या-राम-मंदिर अलगाववादी नजरिया को मैं अभी नहीं चर्चा करूंगा क्योंकि बहुत सारे लोग इस पर चर्चा करने वाले पहले से ही मौजूद हैं।बहुत सारे विशेषज्ञ हैं,इस पर भी बहुत सारे विभाग बने हुए हैं जो यही काम ही करते हैं।यह सब बाई-प्रोडक्ट हाँ,यानी बीमारी के लक्षण असल बीमारी कोई और है यह तो प्रकट रूप में सामने आ गए है।सरकारों की अनदेखी के चलते असली समस्याओ पर कोई विमर्श ही नही होता हैं।हम इस सीरीज में उन्ही की चर्चा कर रहे हैं।असली हथियार,असली आक्रमण पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

अब हथियारों के नाम भी बदल गए है गोया कि सिनेमा,शिक्षा,मीडिया,साहित्य,इतिहास,अन्य लेखन,व्युरोक्रेसी,राजनीति,
मनोरंजन,गीत,संगीत,बोली,भाषा,पहनावा,जीवन शैली,हर तरफ से घुसपैठ और आक्रमण हो रहे हैं।इस बार हमले दिमाग के रास्ते से हैं।चुपचाप बिना किसी घोषणा के।कोई शोर नही सीधे वे आपको जीत लेते हैं।बिना किसी मुकाबले के।वे आपकी सोच और समझ के साथ कल्पनाओं और जीवन की शैली बदल रहे है।
वह इस तरह हिडेन रूप में है ही कि हमें यहां उसको अनालिसिस करने के लिए बैठना पड़ा हैं।हम चाहते हैं लोग जाने। हम दुश्मनों के टारगेट, उनके निशाने,उनके तौर-तरीके, उनके हथियारों ठीक से जान लें।
यह पूरी सीरीज उन्हीं हथियारों को उन्ही टारगेट को चिन्हित कर रही है।हम इस लेख-माला में उन बातों पर डिस्कशन कर रहे, विश्लेषण कर रहे और बहुत सारा शोध मैटर रख रहे।यह कोई एक दो दिन का तैयार की गई फेसबुकिया सामग्री नहीं है।यह पूरे 30 सालों की अध्ययन सामग्री है।इसे हमने परिश्रम से,चिंतन-मनन से इकट्ठा किया है और हम चाहते हैं कि लोग भी इसे ठीक से जाने।धैर्य से हमारे साथ मनन करिये आखिरी लेख तक आते-आते बहुत कुछ पिक्चर स्पष्ट हो जाएगा।फिर हम बचाव के उपाय व्यक्तिगत स्तर पर कर सकेंगे।दुश्मनो के औजारो को काट सकने की हमारी क्षमता हमे मजबूत बनाएगी।

नोट-बेसिकली यह सीरीज का पहला भाग था,उस समय परिस्थितियों-वश दूसरे को पोस्ट कर दिया गया था। इसे अब इसलिए पब्लिश किया जा रहा है।ताकी सीरीज के सबसे महत्त्वपूर्ण-डेंजरस भाग को आपके सामने लाने का औचित्य दिया जा सके।

(अभी बाकी है)

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