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भगवद्गीता_ में (१५.६) भगवान् श्रीकृष्ण के धाम का वर्णन इस प्रकार हुआ है :

       न तद् भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः।

       यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद् धाम परमं मम।।

"मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्रमा द्वारा, न ही अग्नि या बिजली द्वारा प्रकाशित होता है। जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं वे इस भौतिक जगत में फिर कभी नहीं लौटते।"

    यह श्लोक उस नित्य आकाश (परमधाम) का वर्णन प्रस्तुत करता है। निस्सन्देह हमें आकाश की भौतिक धारणा है, और हम इसे सूर्य, चन्द्र, तारे आदि के सम्बन्ध में सोचते हैं। किन्तु इस श्लोक में भगवान् बताते हैं कि नित्य आकाश में सूर्य, चन्द्र, अग्नि या बिजली किसी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर से निकलने वाली ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है। हम अन्य लोगों तक पहुँचने का कठिन प्रयास कर रहे हैं, लेकिन परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है। यह धाम गोलोक कहा जाता है। ब्रह्मसंहिता में (५.३७) इसका अतीव सुन्दर वर्णन मिलता है---गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूत:। भगवान् अपने धाम गोलोक में नित्य वास करते हैं फिर भी इस लोक से उन तक पहुँचा जा सकता है और ऐसा करने के लिए वे अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं जो उनका असली रूप है। जब वे इस रूप को प्रकट करते हैं तब हमें इसकी कल्पना करने की आवश्यकता नहीं रह जाती कि उनका रूप कैसा है। ऐसे चिन्तन को निरुत्साहित करने के लिए ही वे अवतार लेते हैं, और अपने श्यामसुन्दर स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं। दुर्भाग्यवश अल्पज्ञ लोग उनकी हँसी उड़ाते हैं क्योंकि वे हमारे जैसे बन कर आते हैं और मनुष्य रूप धारण करके हमारे साथ खेलते-कूदते हैं। लेकिन इस कारण हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे हमारी तरह हैं। वे अपनी सर्वशक्तिमत्ता के कारण ही अपने वास्तविक रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं, और अपनी लीलाओं का प्रदर्शन करते हैं, जो उनके धाम में होने वाली लीलाओं की अनुकृतियाँ (प्रतिरूप) होती हैं।

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