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तुम जहां भी हो ......
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जब भी मैं कुछ कहना चाहता हुँ ,
मै एक माध्यम चुनता हू जो मेरी भावनाओ को समझ सके ,
क्योकि नही देखा कभी ख्व़ाबों मे उसको कभी उसके लिये नही सोचा न कभी उसके नाम से मैं आशना था !
न हृदय में उसको पाने की तमन्ना थी
न ही उसके साथ रहने के सपने संजोए थे ,
मगर...
शायद ही उस शक्स ने जो खुद से ज्यादा मुझ में रहता था ,
कभी तन्हाइयों मे अकेले न छोड़ा ,,
आज खो गया हैं कही
किसी दूर की उन स्वप्निल पर्वतीय कन्दराओ में जहां मेरे प्रेम का प्रकाश उस भीषण अंधकार को भेद नही सकता !
मै उस अनंत मौन को और कुछ अंसुलझे प्रश्नो से घिरा ..
अशांत सा एकांत की खोज में विश्व पथ से दूर अपनी स्व निर्मित पगडन्डी यो पर बढा जा रहा !!
कुछ सालो पहले शुरू हुआ कारवा इतनी ज्लद बिखर जायेगा यह न सोचा था ,
बैठा था आज कई दिन बाद शाम को और धीरे -धीरे अतीत में उतरता चला गया मन ...
कभी एक शक्स ने कहा था मैं यही कही मिल जाऊगी बस जरा कुरेद कर देखना ,उसने हृदय पर हाथ रख कर !
हा वह सही थी ,
वह तो भीतर ही है जिसे मैं तलाश कर रहा ..
सुनो ये दुनिया इतनी भी बड़ी नही ,
कि तुम्हारे होने को महसूस न कर पाऊं
और इतना शोर भी नही इस दुनिया में कि तुम्हारी सांसो की गति का उठना गिरना न सुन पाऊ !
इस विश्व के मृगों मे इतनी कस्तुरी नही जो तुम्हारी महक को मुझसे छिपा सके ...
हां यह है की तुम मेरी बांहो की हद मे नही ,
तुम एक खोया हुआ पता हो
मेरी डायरी का गुम हुआ एक कोरा पन्ना हो ...
मगर कुछ पते शायद न ढूंढ़ने के लिये बने होते हैं .....
और तुम्हारा पता तो यह वेदित हृदय है मेरा ....
मेरा मुठ्ठी भर का हृदय क्या लापता होगा ,,

बहुत छोटी हैं जानां ये दूनिया तुम्हारे लापता होने के लिये !
हमेशा मेरी रूह की हद में हो ,,,
तुम जहां भी हो ..........
@अंकित तिवारी "आवारा"


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