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यह पोस्ट 3-10-16 की है, और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है । कृपया चित्र देखकर जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया न दें, यह चित्र किसी और के पोस्ट से सकारण लिया गया है और विषय से पूरी तरह संबन्धित है ।
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प्रेतबाधा मे आप भले ही मानते नहीं हों, लेकिन फिल्मों - सिरीयलोंमे कहानियां तो देखी जरूर होंगी । देखा होगा कि जब तगडा इलाज चालू हो जाता है तब प्रेत को पीडा होती है। प्रेत भी दिमाग वाला होता है, और इलाज को विफल कराने के लिए कई चालें चलता है ।

सबसे पहले तो रोगी को ही कोई ऐसी पीडा उत्पन्न करेगा कि रोगी ही नहीं उसके परिजन भी इलाज बंद कराने की माँग करेंगे । रोगी के घर मे भी उत्पात मचायेगा ताकि परिवार परेशान हो । लगातार धमकाता रहेगा कि इस ओझा के कारण सारे घर को परेशानी हो रही है, नहीं तो सब घरवालों को तो अब उसकी आदत हो गई है, उस प्रेत को अब रोग नहीं माना जाना चाहिए और वो जो कुछ कर रहा है, घर के रोज के व्यवहार का हिस्सा है, वो प्रेत अब घर का अभिन्न सदस्य ही है और उसकी पीडा से रोगी और परिवार को राहत देने की जो बात कर रहा है, वो ही बदमाश है । परिवार के अन्य सदस्यों को भी परेशान करने के लिए और भी अलग अलग आत्मायें आएंगी और आतंक मचाएंगी । यह भी हो सकता है कि तात्कालिक आतंक से छुटकारा पाने के लिए रोगी के परिजन भी ओझा को जाने के लिए कहें, रोगी आगे जाकर मरे तो भी ठीक, अभी उन्हें परेशानी नहीं चाहिए । बाद में उनकी बारी भी आएगी यह भी वो नहीं सोच सकते, उन्हें बस तात्कालिक शांति चाहिए होती है । समझ में नहीं आता ये रोगी का भला चाहते हैं या प्रेत की खुशी ।

वैसे, सबसे ताकतवर प्रेत को खबीस कहा जाता है । माना जाता है कि अतिदुष्ट मुसलमान की रूह खबीस बन जाती है जिससे मुक्ति पाना कष्ट साध्य होता है ।
आज यह चित्र किसी नदीम अंसारी के वाल पर मिला जहां मुझे किसी ने टैग किया । देखा तो वह चित्र की लिंक किसी UnOfficial PMO नाम के पेज पर जाती थी । वह पेज डॉ आंबेडकर को समर्पित था लेकिन देखनेपर पता चल रहा था कि यह जय भीम का नामधारी कोई जय मीम ही है । किसी दिव्यांग के नाम से PCO का लायसेन्स बनवाकर कोई और ही लोग पान बीड़ी की दुकान लगाते हैं बस वैसे ही ।

नदीम मिया से चर्चा हुई जिसके अंत में उनकी कलई इतनी खुल गई कि ब्लॉक मार गए । जाहिल आदमी थे और जहालत एक्सपोज होने लगी तो ब्लॉक कर दिया । एक भी बात की जानकारी तक नहीं थी । यहांतक कि मौदूदी क्या हस्ती थे यह भी पता नहीं था और पता करने की ख़्वाहिश भी नहीं थी । मौदूदी साहब के लिए "वो मौलाना भी नहीं उसे क्या पढे" (उन्हें भी नहीं) ये कहने वाले आदमी की जहालत का अंदाजा जानकार हिंदुओं को तो पता होगा ही, मुसलमान भी समझ जाएँगे ।

लेकिन तुर्रा यह था कि इस्लाम के बारे में उनका कहा फायनल है क्योंकि वे मुसलमान हैं और मैं नहीं ।

अपनी बात मनवाने के लिए इस्लाम किस तरह से दबाव डालने की सीख देता है इसका उदाहरण यह हदीस है

Bukhari 9, 84, 58 Behold: There was a fettered man beside Abu Muisa. Mu’adh asked, “Who is this (man)?” Abu Muisa said, “He was a Jew and became a Muslim and then reverted back to Judaism.” Then Abu Muisa requested Mu’adh to sit down but Mu’adh said, “I will not sit down till he has been killed. This is the judgment of Allah and His Apostle (for such cases) and repeated it thrice. Then Abu Musa ordered that the man be killed, and he was killed.
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अबु मुईसा के बाजू में एक आदमी था जिसे बेड़ियों में जकड़ा गया था। मू'आध ने पूछा 'यह कौन है?" अबू मुईसा ने जवाब दिया कि यह एक यहूदी था जो मुसलमान हुआ और अब वापस यहूदी बन गया है ।" उसके बाद अबू मुईसा ने मू'आध से आसान ग्रहण करने का अनुरोध किया । लेकिन मू'आध ने कहा "मैं नहीं बैठूँगा जब तक इसे जान से मार नहीं डाला जाये । अल्लाह और उसके रसूल का ऐसे मामलों में यही फैसला है ।" उसने त्रिवार यह बात कही । तब अबू मुईसा ने उस आदमी की कत्ल का हुक्म दिया और उसे कत्ल कर दिया गया ।
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बुखारी हदीस का संदर्भ इसलिए दिया है कि यह बात बुनियादी है इस्लाम में । नहीं तो आप को पता ही है कि मुसलमान इस्लाम सही मुसलमान गलत के नाम से किस तरह हम काफिरों को उल्लू बनाते हैं । काफिरों से झूठ भी जायज है, यह तो आप जानते ही हैं । का'ब बिन अश्रफ का किस्सा तो प्रसिद्ध है ।

अगर इस चित्र की बात करें तो प्रेत रोगी के परिजनों को धमका रहा है कि ओझा को भगाओ नहीं तो घर अशांत रहेगा और उसका जिम्मेदार ओझा होगा ।

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