हमारे राष्ट्र के चिढ़ऊ
आप चिढउओ को पहचान लीजिये।हमारे राष्ट्र पर आक्रामणकारी रूप मे आए।हत्याए की,मंदिर तोड़े,पुस्तकालय नष्ट किए,विध्वंस किया,जज़िया लगा कर,तीर्थ-यात्रा कर लगाकर तरह-तरह की प्रताणनाए दी।तरह-तरह के लोभ लालच दिये।जातीय विभाजन किया।दमन-दहन किए।देश बंटवारा किया,भूखण्ड को लगातार छोटा किया,किन्तु हमारे राष्ट्रीय...
हमारे राष्ट्र के चिढ़ऊ
बीस-पच्चीस साल पहले की बात है।बनारस में एक बुजुर्ग थे।कभी उनका बड़ा मान-सम्मान था।65-66 साल अवस्था रही होगी।पता नही कैसे वह राधे शब्द से चिढ़ने लगे।रही होगी कोई बात।आस-पास के लड़के राधे-राधे बोल दे तो भयंकर चढ़ जाते थे।हमे याद है शुरू में समझाते थे,फिर अवॉइड करने लगे। लेकिन कुछ दिनों बाद हमने देखा कि लड़के उनको राधे-राधे बोल कर भाग जाते हैं और वह मां-बहन आदि की गुप्त अंगो के बारे में गालियां बकते दूर तक दौड़ाते।जल्दी ही उनका नाम ‘चिढ़ऊ, हो गया। वह उसी नाम से मशहूर हो गए और धीरे-धीरे उनकी पढ़ी-लिखी इमेज भी खत्म हो गई। आपने देखा होगा आपके आसपास ऐसे कई लोग मौजूद होते हैं जिनको किसी एक खास बात से चिढ़ होती है।लोग-बाग जान जाते है तो किसी न किसी बहाने चिढ़ाने ही लगते है।धीरे-धीरे उनका यह चिढ़ना सार्वजनिक हो जाता है।शुरू में अपनी ‘चिढन,जस्टिफाई करने के लिए वह उन शब्दों के लिए एक नए-नए तर्क ढूंढते हैं,नए नए तथ्य ढूंढने कोशिश करते हैं और अंत में चिढ़ऊ नाम से मशहूर हो जाते हैं।लोग भी सतुआ-पानी लेकर पिल पड़ते हैं।भयंकर-भद्दी-कच्ची गालियां खाने का मजा लेने के लिए।शायद वह स्पेसिफिक शब्द उनकी आत्मा का हिस्सा बन जाता है।उसके रिऐक्शन में कई बड़े-बड़े लोग भी अपना व्यक्तित्व ही खो बैठते हैं।छोटे बच्चे उनसे अपना मनोरंजन करने लगते है।वह सभी के मनोरंजन का केंद्र बन जाते है।मेरे एक गाइड थे,सारे वामियों की तरह संस्कृत या प्राच्य-ग्रंथो का नाम सुनकर भी बिदकते थे।आप खुद ही सोच लीजिये उनका क्या हुआ होगा।यह तो आप खुद ही जानते होंगे की उन चिढुओ का अंत कैसा होता होगा।ऐसे ही पिछ्ले कुछ सालो से ‘राष्ट्र,शब्द सुनकर भारत मे कईयो की कल्लाने लगती है।राष्ट्रवाद शब्द से वे बेमौत मर जाते हैं। इधर के सालो मे वामी,सामी,कामी अब चिढ़ा सेंटर बन गये है।कई बड़े-स्थापित,प्रतिष्टित नामधारीयो को भी ‘राष्ट्र, शब्द सुनते ही पिन-पिनाने लगती है,वे मिचमिचाने लगते हैं।उन्हें चुभने लगता है और बच्चे भी चिढ़ाते हुए दौड़ पड़ते हैं। आजकल विद्यार्थी परिषद के छात्र उन्ही लोगों के मजे ले रहे हैं।उनके ही चेले-चापडो की जमात मीडिया ने उन ‘चिढुओ, को मजाक का पात्र बना दिया।शायद भारत राष्ट्र की आत्मा भी अभिन्नता से मज़े लेने लगी है।उनकी लिष्ट मैं नही बताऊंगा आप खुद बनाइये। आप एक विशेष चैनल को देखिये वहां चिढुओ का अड्डा है।
आप का ध्यान पिछले कई सालों से इस एक शब्द पर कई बार गया होगा भारतीय उप महाद्वीप।आपको लगा होगा चलो यह तो बड़ी अच्छी बात हो गई है।यह शब्द कम्युनिस्टों और अंग्रेजों की देन थी।जिसने भारत राष्ट्र शब्द की नीव हिलाने की योजना में से जन्म लिया था।आपने ध्यान दिया होगा की इसका सर्वाधिक उपयोग बीबीसी लंदन करता है,और दिल्ली के कुछ अखबार।कम्युनिस्टों/मुसलमानों ने इसको अपनी किताबों में उपयोग करना शुरू किया। इतिहास,भूगोल,साहित्य या कम्युनिस्ट, मुसलमानों की लिखी कोई भी किताब उठाइए।उसमें आपको भारत राष्ट्र की जगह भारतीय उपमहाद्वीप’शब्द,मिलेगा।आदिवासी,दलित,मूलनिवासी,भी ऐसे ही विभाजन-कारी शब्द है।ऐसी हजारो शब्दावलिया मिलेंगी जो इस बचे हुए राष्ट्र की नींव हिला रही हैं।वह यह जानबूझकर,सोची-समझी रणनीति के तहत करते हैं,वह इरादतन ऐसा करते हैं।क्योंकि वह हमारे दिमाग में तरह-तरह के हथकंडों से पिरो देना चाहते हैं कि यह राष्ट्र नही है।1883 में जे.आर सीले ने लिखा है,”एक मूलभूत तत्व की भारतीयों का विदेशियों से कोई द्वेष नहीं है,क्योंकि भारत में राष्ट्रीय एकता की कोई भावना नहीं है। भारत नाम की कोई इकाई है ही नहीं है इसलिए वस्तुत:यहां कोई विदेशी नहीं है,,।अंग्रेज अधिकारी इसी लाइन को अपने भाषणों और वक्तव्यों में बोलते थे। अंग्रेज लेखकों ने लिखना शुरू किया था “भारत तो केवल एक भौगोलिक अभिव्यंजना मात्र है,।यही आज के वामियो/सामियो और मीडिया के एक वर्ग ने पकड़ रखा है।ऐसे हजारो शब्द है।वे लगातार साबित करने की कोशिश करते रहते हैं।आर्य बाहर से आये,पौराणिक सनातनी काल्पनिक है,मुस्लिम काल में अच्छी शासन व्यवस्था थी,देश बाँटने के बाद भी बचे भारत के संसाधन पर मुस्लिमो का अधिकार और बढ़ गया आदि-आदि।आप खोजिये वे बेस वे जैसे ही राष्ट्र शब्द सुनते है।फड़फड़ा उठते है।
मेरा एक दोस्त पाकिस्तान,बांग्लादेश या अफ़ग़ानिस्तान नहीं बोलता वह बोलता है ‘मुस्लिमों के कब्जे वाला हिंदुस्तानी प्रदेश,।हालाकी यह मैं ठीक नहीं मानता फिर भी हमारे हिंगलाज,ननकाना साहब,लवकुंड,भवानी,जैसे कई पुण्य-स्थान उनके कब्जे मे तो है।नदिया,पहाड़ आज भी हमारे नित्य-पूजन मंत्रो मे मौजूद है।हजारो पौराणिक गाथाए इन स्थानो को राष्ट्र के तौर पर हंसे जोड़े हुये है।इन भूखंडो के अंदर बचा-खुचा हजारो साल से संघर्षरत कुछ प्रतिशत हिन्दू “राष्ट्र,जिनकी भूमि खो गयी है।जड़े तलाशता हुआ हमारा एक समुदाय उसे वामी ,कांग्रेसी क्या बतायेंगे।लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप शब्द कहकर हमसे रूहानी तौर पर हमारी जमीन को काट दिया जाता है।वैसे देखा जाए तो इस शब्द से यही गुंजित हो रहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप वे उस राष्ट्र को कह रहे हैं जो बांग्लादेश,वर्मा,पाकिस्तान,अफगानिस्तान नेपाल,श्रीलंका तक विस्तृत है।यानी अंग्रेज कहीं ना कहीं से यह रणनीति बना कर चल रहा था कि भविष्य में भी राष्ट्र शब्द की भावना के साथ यह खड़ा न हो जाए।उन्होंने एक शब्द से इसे भूखंड में बदल कर रख दिया।इसी कारण वह तिब्बत,नेपाल,वर्मा, श्रीलंका चारो को व्यवस्थागत रूप से दूर रखते थे।उन्हें डर था एक समूह व्यक्तित्व समुच्चय रूप में खड़ा हो गया तो भविष्य का शक्तिशाली राष्ट्र उनकी अर्थ-जाल के लिए खतरा होगा।इसलिए बार-बार भारतीय उपमहाद्वीप शब्द लिख रहे थे।सच्चाई तो यही है कि यह भूखंड एक राष्ट्र ही रहा है,उसमे हिन्दू सनातनी संस्कृति का एक सतत इतिहास है,उस राष्ट्र में एक वेदना है।धीरे-धीरे चतुराई से दिमागी विभाजन करके उसने इसे 8 हिस्से में बदल दिया गया।अब कम्युनिष्ट इस बचे हिस्से को भी इस बची भूमि को भी वह ‘राष्ट्रभाव, से नष्ट करना चाहते है।
पिछले सत्तर साल से कम्युनिष्ट,इसाई,इस्लामिक और उनके पिट्ठू इस राष्ट्र शब्द को नष्ट कर डालना चाहते है।उसका सहारा वे अभिव्यक्ति के तहत लेते है।अभिव्यक्तियाँ उनका हथियार बन चुकी है बेस पर वार करने के लिए।पाठ्यक्रमो,कलाओं,सिनेमा,मीडिया,लेखन और मजहबी संगठनों के द्वारा उसके आधार को खोखला कर रही है।कांग्रेसी तो दो कदम और आगे थे वे भारत राष्ट्र को कांग्रेस द्वारा जनरेट बताने में लग गए। हजारों साल की अवधारणा ही भूल गए कि तीर्थयात्रा,उद्गम स्थल,श्रद्धा स्थल,पूर्वज ,और एक राष्ट्र के हजारों साल के इतिहास को ही नकार गए।उन्होंने अपने शासनकाल में इतिहास के कोर्सों में पढ़ाना शुरु कर दिया भारत राष्ट्र तो 19 वीं सती में कांग्रेस के प्रयासों की देन है।राष्ट्र के तत्त्व के तहत यह बना पाना सम्भव ही नही था।इसका परिणाम यह रहा कि उन्होंने भ्रमित वर्ग खड़े कर दिए।
साफ-साफ़ समझिए यह राष्ट्र किसी बनर्जी की पुस्तक,कांग्रेसी या अंग्रेजी राज्य से नही उपजा है।अच्छी तरह जान लीजिये।यह देश किसी “अंग्रेजी गुलाम मानसिकता,के प्रधानमंत्री की “डिस्कवरी,नहीं थी।वह तो सरकारी एजेंडा था जिसके अपने उद्देश्य,कार्य,तरीके,योजनायें(साजिश कह सकते हैं) और निहित स्वार्थ थे,जिसने लोगो के दिमाग से खेलते हुये यह बाते बैठाने की कोशिश की थी।यह उनकी देन नही है।बल्कि युगो से सहज प्रवाहित धारा है।यह ईरान-बैक्ट्रिया से लेकर दक्षिण मे श्रीलंका और पूरब मे वर्मा और उत्तर मे तिब्बत तक तक फैला एक सतत राष्ट्र है।जिसे अंग्रेज़ो-ईसलामियों के साथ वामियों ने धीरे धीरे सिमटाकर एक भूखंड मे समेत दिया।मुस्लिम,अंग्रेज शासक और कांग्रेस की नेहरुआना थाट व् घरानावादी पार्टी पाठयक्रमो,इतिहासकारों,साहित्यकारों,फिल्मकारो के माध्यम से एक कुत्सित लक्ष्य के तहत हमारा आत्म विश्वास भंग करते रहे।उनको यह सिद्द करने के आर्थिक/सत्तात्मक लाभ था कि यह देश एक राष्ट्र नही था ”बल्कि कारवां आता गया और देश बसता गया,,अधिकाँश नें बचपन में यह “उर्दू संवाद, कांग्रेसी शासन के दौरान दूर-दर्शन और रेडियो पर सरकारी विज्ञापन के रूप में दिनो-रात सुने होंगे।आप क्या सोचते है जब कांग्रेसी,वामपंथी,मुस्लिम इतिहासकार कुछ क्रूर और अत्यंत कट्टर मुस्लिम शासकों को नरम दिल और धर्म-निरपेक्ष क्यों दिखाने,बताने की कोशिश करते रहे है?क्यों वे उन्हें हीरो बनाना चाहते थे?वह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की टीम का हिस्सा हैं जो संगठित रूप में “राष्ट्र, पर अब भी साजिशी हमले करते हैं।अब इस आक्रमण का स्वरूप व् हथियार बदल गया है लेकिन यह उतना ही “क्रूर, घातक और विध्वंसकारी है।जबकि तत्कालीन लोगो ने कितना भुगता होगा इसकी आप कल्पना नही कर सकते।आज के काश्मिरी पंडितो से कई हजार गुना ज्यादा।लेकिन इतिहास को साजिश के तहत दबाकर “राष्ट्र, की हत्या की जाती रही है।कम्पनियां बाहर से आईं,अंग्रेज बाहर से आये,मुस्लिम,मुगल,तुर्क,पठान,अरबी,शक,हूँण,मुरुंड,कुषाण आदि इस लिए बार-बार बाहर से आये “पढाया, जाता रहा।क्योंकि उन्हें आपको सिखाना-जताना-बताना था कि आर्य भी बाहर से आये यानी सनातन हिन्दू अर्थात आप भी बाहर से आये।अर्थ समझे?वे हर तरह से जताना-बताना चाहते है,तुम्हारी आत्मा मे बैठा देना चाहते है यह कोई एक राष्ट्र नही,सराय है,लूटो और विदेशों में इन्वेस्ट करो।विदेशी यानी की…विकसित देश और क्या समझे। यह कांग्रेसी।जिस किसी ने भी इस पर कुछ कहा,वह पोंगा।वह पिछड़ा…वह आधुनिकता विरोधी।मारो अपनी ही जड़ो पर।यानी 100 करोड़ हिन्दुओ के पास अपने कोई राष्ट्रात्मक वजूद नही।
आप शायद उस मंशा को आसानी से नही समझ सकते।यह एक रणनीति के तौर पर काम कर रहा है।पहले एक भूखंड पर जनसंख्या बढ़ा लो फिर बाकियों को भगा दो।यह हजार साल के अनुभव से उन्होने सीख लिया था कि इसे नही मिटाया जा सकता।उन्होंने देश को एक आधार लेकर बांटा था।जिन्ना और मुस्लिम नेतृत्व ‘जिद,से अड़ा था।“जिन्ना, का ऐतिहासिक ‘तर्क वाक्य, था”इस देश में पाकिस्तान राष्ट्र की नीव् तो उसी दिन पड़ गयी थी जिस दिन इस भूमि का पहला हिन्दू मुसलमान बना…और इसी बात पर देश बंट गया…मुस्लिमो का 81 वां राष्ट्र पाकिस्तान नाम से बन गया।हजारो साल से वहा रह रहे वहां से 2 करोड,हिन्दूओ,सिखो,बौद्धो को क्रूरता से निकाल कर अपनी बची राष्ट्रभूमि,में भगा दिया गया।उनकी बेटिया और स्ंपत्तिया छीन ली।कुल 30 लाख लोगो का कत्ल कर दिया।उस सिद्धांत को मानकर बंटवारा करके भी जाने किस मंशा के तहत उनका 8 प्रतिशत राष्ट्र, नेहरू,गांधी जी ने यही रोक लिया।आगे की कहानी और साफ है।टीपू,अकबर,औरंगजेब,अलाउद्दीन महान थे।हम कोर्ष में पढ़ते रहे।वे नीव हिला रहे थे।
राष्ट्र यानी जन,भूमि,संस्क्रृति तत्त्व से बनता है।विश्व भर में यही परिभाषा मान्य है।हजारों साल के साथ-साथ रहने के अनुभवो से उपजी रहन-सहन की आदते ही “संस्कृति, कहलाती है।यूरोप में “भाषा, को भी आधार लिया है।लेकिन सत्यापित करने पर दिखेगा।वह संस्कृति तत्व में समाहित है।कोई भी बता सकता है कि राष्ट्र के लिए “सरकार,यानी राज व्यवस्था तत्व आवश्यक नही है।वह तो वर्तमान में ”राज्य,की अवधारणा है।राज्य (एक भगौलिक समष्टि) के निमित् सरकार है और उसकी परिभाषा, नियमावली यानि संविधान है।परन्तु राष्ट्र की अवधारणा पूर्णतः वैचारिक-संस्कारिक है। कुछ लोग इसी में राज्य को समाहित समझते हैं।सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं भी उसी में शामिल है।राज्य का राष्ट्र के तरफ बढ़ना बिस्तरण है पर इसके उलट संकुचन।जब जन,भूमि,सरकार और क़ानून(संविधान)सुरक्षा व्यवस्था के साथ इकट्ठा होता है तो ‘राज्य, कहा जाता है।कानून कभी भी सार्वभौमिक-सर्वकालिक आधार नही होता है।कभी बलवान की लाठी “क़ानून,होती है,तो कभी सामाजिक समझौते क़ानून कहलाते है।कभी “राजा की इच्छा ही क़ानून,, कही जाती है तो कभी एक धार्मिक पुस्तक क़ानून के रूप में मान्य।“विधिक शासन,राज्यकीय स्थानिक व्यवस्था है न कि “राष्ट्रीय चेतना,। उदाहरण राष्ट्रकूटो और प्रतिहार राज्य में भयंकर युद्द चल रहा था।उसी समय वादामी से कई हजार तीर्थयात्र्री उसी समय अवध राज्य के “काशी में परिक्रमा के लिए आए थे।प्रतिहार राजा ने काशी के सामंत से कहकर उनके खाने-रहने की पूरी देख-रेख की।मतलब समझ गए न!धर्म एवं राज्य अलग-अलग अवधारणाये हैं। और यह भी कि हम राष्ट्र है।राज्य शरीर है और राष्ट्र मन,“वसुधैव कुटुंबकम” आत्मा है।
बौद्ध,शैव,वैष्णव,शाक्त,कापालिक,मूर्तिभक्त,लिंगायत,योगी,जोगी,वटुक,अघोर,भैरवक,आग्निहोत्र,जैनी,इन्द्रक,देव-पूजक, ग्रहपूजक, नास्तिक, प्रकृतक, जाबालक, जैन, सिख, यति, तांत्रिक,मांत्रिक,याज्ञिक यह पूजा पद्धतिया इसी भारत भूमि की हिन्दू संस्कृति से निर्माण हुए है।इसलिए ये हिंदुत्व के ही अंग है।इसलिए ये कभी कटने-बांटने की बात नही करते।ऊपर जो परम्पराए, सोच बतायी गयी है,यह सिर्फ प्राचीन बाते नही है।यह उतना ही नया,आज भी है।अभी भी हम उसे मनाते है,अभी भी हम उनका पालन करते है,अभी भी हम उन्ही सीख के आधारों पर आगे बढ़ रहे है।सनातनी सोच ‘नित नूतन चिर पुरातन, है।इस तरह भारत राष्ट्र के लिए हिन्दुत्व ही राष्ट्रीत्व है।हम इस भूमि की नदी-पहाड़ो, नगरो, कुनो, जंगलो की पूजा करते आए है।सांस्कृतिक एकता के सूत्र देश के चार कोनो में 4 मठ स्थापित किए।यही नहीं अन्य ऋषियों, मनीषियों ने देश के विविध कोनो में जाकर ज्ञान और संस्कृति का प्रचार किया, वहाँ श्रद्धा के केंद्र बनाए है।इसी विचार से विविध स्थानो में 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई थी,51 शक्तिपीठ बनाए गए उनमे से कई अफगान,पाकिस्तानमे,नेपाल,श्रीलंका भी है।हरेक हिन्दू इन सबकी तीर्थयात्रा,दर्शन करना हिन्दू जीवन का लक्ष्य मानता है।उत्तर भारत के ज्योतिर्मठ में दक्षिण भारत का पुजारी और दक्षिण में रामेश्वरम में स्थित श्रृंगेरी मठ में उत्तर भारत का ही पुजारी नियुक्त हो सकता है।हिमालय के निवासी शिव दक्षिण के रामेश्वरम में पूजे जाते है, तो दक्षिण में कन्याकुमारी में जन्मी कन्या पूरे देश में माँ पार्वती के नाम से पूज्य हैं……द्वारिका (गुजरात) के कृष्ण, उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से पूजा होती है,तो हिमालय के शिव इसी पश्चिम के राज्य गुजरात में सोमनाथ भगवान के नाम से पूजित हैं।उत्तर भारत में स्थित जम्मू के वैष्णो माता के मंदिर में केवल दक्षिण भारत का फल नारियल ही चढ़ाया जाता है वहीं दक्षिण के रामेश्वरम में भगवान शिव को केवल उत्तर की गंगा नदी का जल ही चढ़ता है ।हमारे हवन पूजा की सामग्री केसर, गूगुल, पान, सुपारी, नारियल, बताशा, दशांग, कपूर,अक्षत,पवित्र नदियों के जल,गंगा पर सारे देश की श्रद्धा है।कश्मीर में आपको गोपाल मिलेंगे तो बंगाल में कृष्ण और प्रणवन, गुजरात में जग्मेश अर्थात नाम के स्वरुप में ही राष्ट्रीयता मिल जायेगी।पूरे देश के पूर्वज एक है यही बातें भगवान शिव और कृष्ण के साथ भी लागू होती हैं।इनके प्रति पूरे देश की श्रद्धा है।इन सबके पीछे की प्रेरणा या इसका हेतु क्या है?कश्मीर या पूर्वी भारत देश से कहीं भी यह एकरूपता आपको दिखेगी।समाज चाहे जहां पहुँच जाए, चाहे जितनी तरक्की कर ले, एक राष्ट्र निर्माण के लिए उनकी मानसिक एकता की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी, और हिन्दुत्व ही उस जरूरत को पूरा करता है।
सनातनत्व” ही अपने राष्ट्र (भारत) की “अस्मिता/आत्मा” है।जो सनातन काल से इस पवित्र भूखंड पर मौजूद थी।अगर यह “अस्मिता” नष्ट होगी तो शायद देश का “अस्तित्व” रहेगा लेकिन वह अस्तित्व “आत्मा विरहित” होगा।जैसे हर एक व्यक्ती के 2 मूल होते है जीवत्व और व्यक्तित्व।”जीवत्व” के आधार पर हर व्यक्ति समान होता है।यानी 2 कान, 2 हाथ, 1 ह्रदय, 2 आँखे…वगैरह।ये सब व्यक्ति का “बहिरंग” होता है…लेकिन “व्यक्तित्व” के आधार पर हर व्यक्ति अलग होती है।जैसे कोई अहंकारी, कोई क्रोधी, कोई बुद्धिमान, कोई दयालु वगैरह।ये सब व्यक्ति का “अंतरंग” होता है। यानी हर मानव “जीवत्व” के आधार पर सामान किन्तु “व्यक्तित्व” के आधार पर अलग“राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न” ये सभी दशरथ के पुत्र थे, इसलिए “दशरथी”लेकिन “कोदंडधारी” यानी सिर्फ “राम”।ठीक इसी प्रकार से हर राष्ट्र का है,राष्ट्र का “जीवत्व” मतलब वहाँ की “सरकार, सुविधाये,भौगोलिक सीमाये, इत्त्यादि” जो सभी राष्ट्रों में होता है।किंतु राष्ट्र का व्यक्तित्व है।वहां का इतिहास,जन,भूमि,संस्कृति, परंपराये,भाषायेँ,कार्यपद्धति,रहन-सहन,जीवन पद्धति इत्यादि-इत्यादि। यह हर राष्ट्र में अलग-अलग होता है।उदाहरण यूरोप की राष्टीयता का उदय “प्रतिक्रिया” के कारण हुआ (पोप, नेपोलियन, इत्यादि)।किन्तु हजारों सालों पहले भारत पर किसी का आक्रमण नहीं हुआ था, शान्ति थी, फिर भी अपने ऋषि मुनियों ने एक व्यवस्था बनायी थी (not as a reaction to something but to make system for sustaining human being)…और इसी से हमारे राष्ट्र का उदय एवं विकास हुआ।हमारे पूर्वजों ने हमें “मम सत्यं” की सीख नहीं दी, बल्कि “एकं सदविप्र: बहुधा वदन्ती” महत्त्व बताया है।परदेशी चिंतन कहता है, “think of the devil and he is here” लेकिन हमारा चिंतन कहता है, “अरे सौ साल जियो, अभी आप ही को याद कर रहे थे”…ऐसा तत्व, ऐसे विचार, यही “हिंदुत्व” की परिभाषा है जो हमारे राष्ट्र का आधार है।उसका चरित्र ही सेकंड अस्तित्व की मान्यता देता है।यह एक पूजा-पद्धति,एक किताब और एक मजहब की सामी अवधारणा से भिन्न-भिन्न आस्थाओ के सःअस्तित्व का राष्ट्र है।जब कोई तमिलनाडु की विशेषता पूछता है तो बताया जाता है, “कम्बरामायणं, गोपुरम”, महाराष्ट्र की विशेषता “गणेशोत्सव”, बंगाल की विशेषता “दुर्गा पूजा”, इत्तर प्रदेश की विशेषता “काशी, मथुरा, अयोध्या”, …मतलब क्या…तो भारत में किसी भी जगह की विशेषता वहाँ के हिंदुओं की विशेषता ही बतायी जाती है।वहाँ के हिंदु परम्पराओं की विशेषता होती है और इसीलिए, “हिंदुत्व” ही यहाँ का मूल आधार एवं आत्मा है।इस भूमि(राष्ट्रमाता के प्रति) गहरा लगाव, पूर्वजों(राम,कृष्ण,महावीर,गौतम,नानक,रविदास,राणा प्रताप आदि )से नाता,और सांस्कृतिक चेतना(प्रत्येक पूजा-पद्धति,और अध्यात्मिक उन्नति की स्वतंत्रता) के प्रति पूर्ण-रूपेण श्रद्धा ही आपको “हिंदुत्व, का स्वरुप प्रदान करती है न कि एक किताब,एक व्यक्ति,एक व्यक्ति या एक बाहरी धर्म स्थल के प्रति कट्टर संगठनात्मक/सम्राज्यात्मक/शासनात्मक अभिवृत्ति।
यह समझना बहुत ही सरल है यदि “राष्ट्र का व्यक्तित्व वहां का इतिहास,संस्कृति ,परम्पराएँ हैँ तो इन सब में कभी न कभी इस्लाम, ईसाई भी जो कि नागरिक के तौर पर अब शामिल हो गए हैं क्योंकि उनके पूर्वज भी इसी भूमि पर हमारे जैसे नामो के साथ रहे हैं।पितरों के प्रति आस्था के साथ कभी न कभी यहाँ रहे हैं।(ये मेरा नही कई अनेक लोगों का मत है )जैसे ही वे इतिहास से जुड़ेंगे,पितरों से जुड़ेंगे स्वयं राष्ट्रिय चेतना से जुड़ जायेंगे।उन्हें अपनी जड़ों को पहचनना चाहिए।अपना अतीत खोजना-जुड़ना होगा।केवल आज की भारत भूमि ही नही पाक,अफगान,श्रीलंका,बांग्लादेश,वर्मा,तिब्बत इन सबकी सबकी जड़े इसी मूल राष्ट्रीय तत्व में समाहित है।इन देशों के लिए यही आर्थिक,सामाजिक,आत्मिक विकास और सुरक्षा का अहसास भी होगा।अरेबिक और सेमेटिक राजनीति से उपजी उनकी नकली राष्ट्र्रियता उन्हें घोर अभाव,दरिद्रता और अंतहीन भू-भौतिक दुःखों में जकडे हुए है लेकिन साम्प्रदायिक कट्टरता उनको सच मानने ही नही देती।
हिन्दुत्व पर यह विश्लेषण किसी के विरोध के लिए नहीं है।यह हमारी राष्ट्रीयता को और अधिक मजबूत करने के लिए है, जो लोग इसे अपने विरुद्ध मान रहे हो वो एकदम गलत हैं।हम सब मत पंथो का सम्मान करें सबके अस्तित्व को स्वीकार करें, लेकिन भारत में हिन्दुत्व को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने दें, नहीं तमाम अच्छी बाते होते हुए भी यह देश एक राष्ट्र नहीं रह पाएगा।ये इसी भूमि से ” इसका अर्थ तो भूगोल है (जो शायद परिवर्तनशील है हमेशा से) भारत वर्ष की सीमा कभी एक नही रही है।दूसरी बात हिन्दू तो पृथ्वी को माता मानता है।क्या इस पृथ्वी का अर्थ केवल भगौलिक भारत की सीमाओं से है ? एक तर्क और यदि भारत में कोई अभारतीय धर्म स्वीकार नही है तो उसी तर्क से हिंदुत्व वैश्विक कैसे बन पायेगा ?हिंदुत्व इस राष्ट्र का मूल है जो चिरंजीवी है अतः “भारत राष्ट्र ” भी चिरंजीवी है और यह राष्ट्र तभी तक है जबतक हिंदुत्व है।जैसे ही यहाँ से उजड़ते है या कभी हिंदुत्व खतम होता है तो फिर वह सोच,वह चेतना ही समाप्त हो जाएगी क्योकि वह इसी भूमि से जुड़ी है।ये राज्य तो रहेगा लेकिन राष्ट्र का कोई अवशेष भी नहीं रहेगा। क्योंकि ये केवल तत्त्व रूप में है।राष्ट्रीय एकता बिना सांस्कृतिक एकता के संभव नहीं है।अगर ये नहीं होता तो आज तक हमारी हस्ती नहीं टिकती।दुनिया में यह एक शोध का विसय है इतनी विसमता के बाद भी आज भारत खड़ा है।बहुत कोशिश हुयी खंडित करने की।यह आज भी निरंतर जारी है।कभी कभी डर भी लगता है।कैसे सजो के रखा जाए।।फिर मन में संतोष होता है।।की आज राष्ट्रीय सवम सेवक है।जो दिन रात इस दिशा में लगा हुआ है चाहे जितनी भी कठिनाई क्यों न हो।
हिंदुत्व ही वैश्विक बन सकता है क्योंकी, सिर्फ “हिंदुत्व” में ही “वसुधैव कुटुम्बकम्” की संकल्पना रखी गयी है।यह उद्दात्त-भावना विश्व की अन्य किसी भी सोच मे नही है।हिंदुत्व यानी एक विचारधारा है जिसमेँ “विश्व कल्याण” की बाते बतायी गयी है।इन्हें समझ लें, वो इसे जरूर अपनायेंगे, भलें वो अपने आप में किसी भी प्रार्थना पद्धति को अपनाते हो।मेरी सोच (जो शायद बेहद संकुचित है ?)वैश्विक परिवार की कल्पना हिंदुत्व है।देखा जाये तो राष्ट्रवाद इस विशिस्ट स्वतत्रतावादी सोच-सभ्यता-संस्कृति को भगौलिक सुरक्षा के लिए अपनाई गई एक विचारधारा है।जिसकी उत्पत्ति भारतीय प्राचीनतम भारतीय सभ्यता में शुरुआती दौर से ही मौजूद था।राष्ट्रवाद साधन है वैश्विक परिवार को साकार करने का, लक्ष्य है।
ISIS एक राष्ट्र बनने के प्रयास में ही हजारो सालो की प्राचीन मूर्तियो और धरोहरो को नष्ट कर रहा है,यही कम अफगानिस्तान के वामियान मे तालिबान ने भी किया था।हजार साल से वे यही कर रहे है।ईसाई या इस्लाम अथवा वामी जहां गये उन्होने पुराने अतीत को मिटा दिया,पुरुखों को ही विलेन चित्रित करना शुरू कर दिया।क्योकि उनके वैचारिक दर्शन का पुष्ट होना आवश्यक है उस भू में।वो राज्य तो बन गया है अब राष्ट्र बनने का प्रयास कर रहा है।कैसे बन सकते हैं भला? राष्ट्र का निर्माण हजारो सालो का दीघर्र कालीन प्रक्रिया है जो उसकी संस्कृति से पुष्ट होती है।जब ये कहा जाता है की हिंदुत्व ही राष्ट्रियता है तो उसका तात्पर्य की पथ,सम्प्रदाय की धार्मिकता से नहीं वरन् ‘एकम् सत्वि-पा बहुदा-वदन्ति, से होता है।उस हजारो सालो के संस्कृतक मूल्य से है जिससे कभी मत के यहाँ संघर्ष नहीं हुआ। विमर्श जरूर हुआ बौद्ध बने,नायियक-सांख्यिक बन गए अंत में वेदांती बन गए।शंकर ने विमर्श में शास्त्रार्थ से सबको अपना बना लिया।खून-खराबे से सनातन भूमि मे कभी दार्शनिक धार्मिक मान्यताये नहीं बदली गयी।इन 1 हजार सालो मे ईसाई और मुसलमान राष्ट्रो में कुसेड्स और जिहाद आदि द्वारा धमान्तरण-मतांतरण करते रहे।यह हमारी संस्कृति और राष्ट्र के लिए एक दम नई चीज थी।
संविधान,अगर आप एक किताब की बात कर रहे हैं तो “वह, राज्य में रहने वाले
लोगो(नागरिको )के लिए ”व्यवस्थागत नियमावली,से ज्यादा नही है।मजहबी रूप
लेने के बाद कई बार वह किताब ज्यादा ही ईश्वरीय लगने लगती है।अगर हम
देश,काल,परिस्थितियों के अनुसार ‘नियमावली,न बदलने के लिए अड़े तो वही
कट्टरता(असहिष्णुता) है।फिर हम “कुफ्र, और काफिर भी घोषित करते हैं और जीने
का हक भी छीनने लगते हैं।
एक दिन हमे लगने लगता है वही किताब दुनियां
भर में लागू करके “सभी,को उसके अनुसार रहना चाहिए यही “विस्तारवादी
साम्राज्यवादी,बातें हैं जिनसे राष्ट्र डरता है।क्योकि राष्ट्र अमूमन
“स्वतंत्रता, के ”पोषक,होते हैं जो कि संस्कृति से उपजता है।15 लाख कश्मीरी
हिन्दुओं ने घाटी छोड़ी थी जो किसी यूरोप के देश की आबादी के बराबर थी।वहां
“जन है, भूमि है जिसकी संस्कृति और जीवन शैली हमारे “राष्ट्र, में रहने को
तैयार नही।हर बार ऐसा ही होता है।हिंदू घटा-देश
बॅंटा।वर्मा,अफगानिस्तान,श्रीलंका,तिब्बत,नेपाल,सिंध,पूरा
पंजाब,पख्तून,,बलूचिस्तान,खैबर-पख्तूनवा,बांग्लादेश सहित,पूर्वी दुनियाँ और
मालदीव आदि के सभी नागरिक दिमागी तौर पर स्वतंत्र अखण्ड भारत में साँस
लेने ही वाले थे कि ‘चिढ़ऊ चाचा, आ गए।उन्होंने सख्त लहजे मे संदेश दिया(जो
कोई सुन-समझ नही पाया)‘कत्तई नही,।क्योकि आगे के शासन,इतिहास और पाठ्यक्रमो
पर उनका और उनके वंश का कब्जा हो गया था।हमारा उद्देश्य है इस
‘अखण्ड-राष्ट्र, को किसी भी कीमत पर न बनने देना,।यह सब उन्होंने लिबरल-वे
में महानता के पहनावे में किया।नागरिकों के साथ-साथ इतिहास और नियति भी
स्तब्ध रह गई।
आप चिढउओ को पहचान लीजिये।हमारे राष्ट्र पर आक्रामणकारी रूप मे आए।हत्याए की,मंदिर तोड़े,पुस्तकालय नष्ट किए,विध्वंस किया,जज़िया लगा कर,तीर्थ-यात्रा कर लगाकर तरह-तरह की प्रताणनाए दी।तरह-तरह के लोभ लालच दिये।जातीय विभाजन किया।दमन-दहन किए।देश बंटवारा किया,भूखण्ड को लगातार छोटा किया,किन्तु हमारे राष्ट्रीय भाव नही नष्ट कर पाये।बाद के शासको ने शासनो,पाठ्यक्रमो,नीतियो से मति फेरने की लगातार चेष्टा की,फिर अब क्या कर लेंगे जब राष्ट्रात्मा जाग चुकी है। जानकार, विशेषज्ञ, लेखक, ओपिनियन मेकर से वे ‘चिढ़ऊ,मे बदल गए यही उसका प्रमाण है।