आख़िर कुछ मिलता भी है अपनी जाति को वोट देने से?
हमारी जाति का मुख्यमंत्री तो अरबपति हो जाता है, कुछ अधिकारी भी रिश्वत में करोड़ों कमाते है, लेकिन आम व्यक्ति को, चाहे किसी भी जाति का हो, मिलता है महिलाओं का अपमान व ख़ुद की हत्या।
लोकतंत्र में क़ानून व्यवस्था व आर्थिक स्तिथि का स्तर नदी या तालाब में पानी के समान होता है: सबके लिए एक समान। कुछ ऊँची नीची लहरें होती है, लेकिन क्षणिक।
जिस पुलिस सर्कल में सिंहासन यादव जी की जिहाद हत्या हुई, जब उन्होंने अपने परिवार की महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने की कोशिश की, उस पुलिस सर्कल के पुलिस CO एक यादव अधिकारी ही है।
कल बहुत दिन बाद TV on किया तो एक चैनल पर ओपिन्यन पोल चल रहा था। सपा कह रही थी यादव व मुसलमान तो हमें वोट दे ही रहे है। बसपा कह रही थी कि दलित व मुसलमान तो हमें वोट दे ही रहे है।
क्या मिलता है अपनी जाति को वोट देने से?
कुछ हज़ार सरकारी नौकरी निकलती है हर प्रदेश में। उनमें धाँधली से किसी एक जाति को थोड़ी ज़्यादा नौकरी मिल जाती है, कुछेक हज़ार। कुछ अपनी जाति के अधिकारियों को मलाईदार पोस्ट मिल जाती है। याने धाँधली व रिश्वत के लिए अपनी जाति को वोट देते है हम लोग। और फिर सोचते है कि हमारे परिवार की महिलायें व हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा। हमारी सोच में खोट है उसे नहीं देख पाते हम लोग, व उस खोटी सोच से ही जो परिणाम होते है उसी की वजह से हम ग़रीब है, बेरोज़गार है, व असुरक्षित है, ये नहीं देख पाते है हम लोग। हमारी जाति का मुख्यमंत्री तो अरबपति हो जाता है, कुछ अधिकारी भी रिश्वत में करोड़ों कमाते है, लेकिन आम व्यक्ति को, चाहे किसी भी जाति का हो, मिलता है महिलाओं का अपमान व ख़ुद की हत्या।
जाति के कुछेक हज़ार लोगों की सरकारी नौकरी की क़ीमत चुकाते है जाति के लाखों करोड़ों बेरोज़गार युवक व असुरक्षित लड़कियाँ। आपकी वोट अगर धाँधली के लिए है तो याद रखिए जिस समाज में धाँधली व रिश्वतखोरी हो रही है उसमें आप भी रहते है ।
जाति के कल्याण के बहुत सारे अच्छे तरीक़े भी है। धाँधली व रिश्वतख़ोरी बढ़ने से हर जाति का बँटाधर हो रहा है ये नहीं देख पाते हम लोग। क्यूँकि चुनाव परिणाम की बात तो नेता व पत्रकार करते है, चुनाव परिणाम के परिणाम की बात वो नहीं करते। क्यूँकि चुनाव परिणाम से नेता व पत्रकार करोड़पति बनते है, व चुनाव परिणाम के परिणाम से सिंहासन यादव जी के परिवार की महिलाओं का अपमान होता है व उनकी खुद की हत्या होती है।
चुनाव में जाति प्रतिशत तो सब देखते है। कभी मुंबई में UP व बिहार से आए लोगों की जाति पुछिएगा। चोंक जाएँगे आप, और शायद वो लोग ख़ुद भी। क्यूँकि तब उन्हें शायद पता चलेगा कि अपनी जाति को वोट देकर क्या क़ीमत चुकाई है उन लोगों ने।
(साभार)