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हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास - 24

हंटर की जिस पुस्तक के अंश मैंने पिछली पोस्ट में विस्तार से दिए हैं उस पुस्तक का प्रयोजन था अंग्रेजों के प्रति मुसलमानों के आक्रोश और घृणा को हिन्दुओं की ओर मोड़ने के लिए एक ओर हिन्दुओं को यह समझाना कि यह न समझो कि मध्यकाल में मुस्लिम शासकों ने महत्वपूर्ण पदों पर हिन्दुओ को भी नियुक्त किया इसलिए मुसलमान तुमसे प्यार करते थे। ऐसी नियुक्तियों का वे विरोध करते थे, उदाहरण दो ।
टोडरमल को जब अकबर ने अपना राजस्व मंत्री नियुक्त किया तो उसका विरोध हुआ, राणाप्रताप के विरुद्ध मुसलमान सिपहसालारों ने मानसिंह के अधीन युद्ध करने से इन्कार कर दिया : In the two best known cases, that of Raja Todar Mall the Financier, and Raja Man Singh the Greneral, formal deputations of remonstrance were sent to Court. In the case of Man Smgh, some of the Muhammadan Generals refused to serve under him in the Expedition against Rana Pratap. I have already given the statistics of the Hindus who rose to conspicuous offices under the least bigoted of the Musalman monarchs.
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On Todar Mall's appointment as Chancellor of the Empire, the Musalman princes sent a deputation to remonstrate. ' Who manages your properties and grants of land ? ' replied the Emperor. ' Our Hindu agents,' they answered. ‘ Very good,' said Akbar ; allow me also to appoint a Hindu to manage my estates.

इतना ही नहीं उसने अकबर के शासनकाल में, जिसे सबसे उदार माना जाता है, एक तालिका देकर यह दिखाया कि तुलनात्मक दृष्टि से हिन्दुओं को कितने कम पद मिले थे:
As haughty and careless conquerors of India, they managed the subordinate administration by Hindus, but they kept all the higher appointments in their own hands. For example, even after the enlightened reforms of Akbar, the distribution of the great oflSces of State stood thus: —Among the twelve highest appointments, with the title of Commander of more than Five Thousand Horse, not one was a Hindu. In the succeeding grades, with the title of Commander of from Five Thousand to Five Hundred Horse, out of 252 officers, only 31 were Hindus under Akbar. In the second next reign, out of 609 Commanders of these grades, only 110 were

और फिर उसने एक साथ दो निशाने साधे । हिन्दुओं के लिए कि मुसलमानों ने तुम्हारे साथ न्याय नहीं किया वह पहली बार ब्रिटिश शासन में हुआ। मुसलमानों के लिए कि इनको तुमने लगातार दबा कर रखा था और आज भी इन्हें नाचीज समझते हो, और उनके साथ उन्हीं स्कूलों में बैठ कर, बराबरी पर रहते हुए, पढ़ना भी तुम्हारी शान के खिलाफ है इसलिए तुम शिक्षा में पिछड़ गए और तुम्हारे आगे बढ़ने का एक ही उपाय है तुम्हारे स्कूल कालेज हिन्दु ओं से अलग हों और वे सरकारी स्कूल हों (अत: महारानी को मुसलमानों की वफादारी पाने के लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ।) यदि मुसलमानों में थोड़ी भी अक्लं हो तो उन्हें इस बदलाव के लिए तैयार होना चाहिए:
Had the Musalmans been wise, they would have perceived the change, and accepted their fate. But an ancient conquering race cannot easily divest itself of the traditions of its nobler days. ! The Bengal Muhammadans refused a system which gave them no advantages over the people whom they had so long ruled, a people whom they hated as idolaters and despised as a servile race. Religion came to the support of the popular feeling against the innovation, and for long it remained doubtful whether a Musalman boy could attend our State Schools without perdition to his soul. Had we introduced our system by means of English masters, or boldly changed the language of public business to our own tongue, their religious difficulty would in one important respect have been less. For the Muhammadans admit that the Christian Faith, however short of the full truth as finally revealed by their Prophet, is nevertheless one of the inspired religions which have been vouchsafed to mankind. But Hinduism is to them the mystery of abominations, a system of devil-worship and idolatry unbroken by a single gleam of the knowledge of the One God.^ The language of our Government Schools in Lower Bengal is Hindu, and the masters are Hindus. The higher sort of Musalmans spurned the instructions of idolaters through the medium of the language of idolatry.

इन कथनों में बहुत सारी अत्‍युक्तियां, दुरुक्तियां और घालमेल है। कारण अंगेजों ने स्‍वयं पहली बार वारेन हंस्टिंग्‍स की सूझ से हिन्‍दुओं के लिए अलग संस्‍कृत कालेज और मुसलमानों के लिए मुस्लिम कालेज खोला था जिसमें अरबी, फारसी के साथ कुछ अंग्रेजी का भी प्रबन्‍ध था परन्‍तु उसमें पढ़ने वाले न थे। वह जब तक चला उसके अजीब किस्‍से आते रहे जिसमें मारपीट, बहसबाजी, नशाखोरी और तवायफों को भी हास्‍टल में बुला लेने जैसे विचित्र कारनामें देखने में आए और अंत में कालेज बन्‍द करना पड़ा । पर यह भी सच है कि मदरसों की जिस शिक्षा में कुरान, रटंत अरबी, पढंत फारसी और वदन्‍त स्‍थानीय भाषा हो वह प्रकृति से ही भिन्‍न था संस्‍कृत पाठशालाओं की तरह । दोनों का मेल नहीं था। पर यह रंग पहली बार दिया जा रहा था।

पुस्तक रूप देने और उसे प्रकाशित करने से पहले इसे लेखों के रूप में लिखा और अंग्रेजी के अखबार में प्रकाशित कराया था और फिर उनका फारसी में अनुवाद करा कर मुसलमानों के लिए उपलब्ध कराया था या कहें, जिनको सन्देश पहुंचाना था उनको पहुंचाया गया था।
Two years ago I put forth a series of articles, showing how completely the Judicial and Revenue Services in Bengal, in which the appointments are greatly coveted, and the distribution of patronage closely watched, had been denuded of Musalmans. These articles were immediately translated into Persian, and copied into or discussed by many of the Anglo-Indian and vernacular papers.
और फिर जब लगा तीर निशाने पर लग रहा था तब उसको संवारते और संपादित करते हुए पुुस्‍तक के रूप में प्रकाशित किया गया।

यह उस समय मुसलमानों से अधिक ब्रिटिश राज की लाचारी थी कि वह अपनी बला को किसी पर टाले इसे समझने के लिए इस पुस्तक के पहले पन्ने पर नजर डालना ही पर्याप्त होगा । इसमें उसने स्वीकारा था कि कैसे आज भी बंगाल में मुसलमानों का उपद्रव जारी है और उनके हौसले कितने बुलन्द हैं। यदि कोई कहे कि वंगभंग के बाद बंगाल में विप्लवी गतिविधियों को प्रेरणा उनसे मिली थी जो इस्लामी अस्मि‍ता की लड़ाई लड़ रहे थे तो मैं तात्कालिक रूप में इसका प्रतिवाद न कर पाऊंगा क्योंकि मेरी जानकारी में ऐसा काई प्रमाण नहीं है जिससे इसका खंडन किया जा सके, जब कि इसकी संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

मुयलमानों में व्‍याप्‍त असंतोष का एक पहलू यह था कि मुगल कालीन व्यवस्था को समाप्त करके अंग्रेज सभी नौकरियों को मुसलमानों से छीन कर हिन्दुओं को दे रहे है:
The Calcutta Persian paper some time ago wrote thus : — ' All sorts of employment, great and small, are being gradually snatched away from the Muhammadans, and bestowed on men of other races, particularly the Hindus.

ऐसी सूचनाओं को हम सन्दिग्ध नहीं मानते परन्तु या तो यह एक संयोग या दुर्योग था कि हंटर की पुस्तक की प्रतियां बंगाल में पहुंची नहीं कि कुछ दिनों के भीतर एक अंग्रेज न्या‍याधीश की अदालत में ही हत्या कर दी गई। पुस्तक के दूसरे संस्करण में उसने ऐसी किसी अनहोनी की पुन: आशंका जताई तो माना जा सकता है कि उसकी व्याख्‍या से मुसलमानों को भी ठेस पहुंची थी और वे उसे छलावा मान रहे थे ।

सर सैयद अहमद की चिन्ता बहुत सही थी। अपने धर्मबन्धुनओं को अधोगति में देखना, या पिछड़ते जाते देखना, किसी के लिए क्लेशकर हो सकता है, इसे समझना कठिन नहीं है। परन्तु उनकी सोच को हम हंटर के सुझावों के इतने करीब पाते हैं कि लगता है अंग्रेजों ने उनका इस्तमाल कर लिया।

यह जानना रोचक हो सकता है कि सैयद अहमद को सर की उपाधि नहीं मिली थी, परन्तु उनको इंग्लैं ड में जो सम्मान मिला था या उनको उपयोगी मान कर महारानी ने उनको जो व्यक्तिगत आदर दिया था और वहां के संभ्रान्त जगत में उनकी जैसी पूछ हुई थी, वह नाइट की उपाधि पाने वाले किसी अन्य व्यक्ति के लिए दुर्लभ थी, परन्तु इससे ही यह भी सिद्ध होता है कि सर सैयद अहमद की महिमा कुछ तो उनकी अपनी सूझ और दूरदृष्टि पर आधारित है और कुछ आरोपित। कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है वाला मुहावरा उन पर पूरी तरह नहीं परन्तुू काफी दूर तक लागू होता है।

उन्होंने इस अहसान के बदले अंग्रेजों की सोच और समझ के समक्ष दासवत समर्पण कर दिया था जब कि उनकी अग्रता को स्वीकार करते हुए भी अपनी अस्मिता की रक्षा करना अधिक श्रेयस्कर रहा होता। उनका अंग्रेजी में उपलब्ध यह कथन उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं लगता:
Without flattering the English, I can truly say that the natives of India, high and low, merchants and petty shopkeepers, educated and illiterate, when contrasted with the English in education, manners, and uprightness, are as like them as a dirty animal is to an able and handsome man. The English have reason for believing us in India to be imbecile brutes. Although my countrymen will consider this opinion of mine an extremely harsh one, and will wonder what they are deficient in, and in what the English excel, to cause me to write as I do, I maintain that they have no cause for wonder, as they are ignorant of everything here, which is really beyond imagination and conception .... I am not thinking about those things in which, owing to the specialties of our respective countries, we and the English differ. I only remark on politeness; knowledge, good faith, cleanliness, skilled workmanship, accomplishments, and thoroughness, which are the results of education and civilisation. All good things, spiritual and worldly, which should be found in man, have been bestowed by the Almighty on Europe, and especially on England.

सैयद अहमद गलत नहीं थे, वह अनुपात का ध्यान नहीं रख सके। उन्हें जो सम्मान, संपर्क, स्वीकारभाव मिला वह उनके लिए अकल्पनीय था। अंग्रेजों की उदारता का कारण यह था कि उन्हे जिस माध्यम की तलाश थी वह उनके रूप में मिल गया था। सैयद अहमद अपने लिए कल्पनातीत को उपस्थित पा कर अभिभूत थे और यह समर्पण भाव उन संकेतों पर उन्हें मुग्धभाव से चलने को प्रेरित करता रहा जिनको हंटर ने दर्ज किया था। अलग स्कूल, अलग कालेज, प़ृथक अस्मिता और फिर भी वह दयानत या उसका प्रदर्शन जो बड़े लोगों में पाया जाता है। सैयद अहमद पर हम पहले कुछ लिख चुके है, कुछ विचार आगे करेंगे ।

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