हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास-27
सर सैयद मुस्लिम अभिजात वर्ग की दशा को ले कर बहुत चिन्तित थे! अपनी आंखों के सामने उन्होंने अवध के नवाब और दिल्ली के बादशाह का ह्रास और हस्र देखा था। ...
हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास - 27
सर सैयद मुस्लिम अभिजात वर्ग की दशा को ले कर बहुत चिन्तित थे! अपनी आंखों के सामने उन्होंने अवध के नवाब और दिल्ली के बादशाह का ह्रास और हस्र देखा था। हंटर की पुस्तक के शीर्षक'Our Indian Musalmans: Are they bound in conscience to rebel against the Queen?' से ही यह ध्वनित था कि अंग्रेज मुसलमानों को अपने शासन के लिए खुराफात की जड़ मानते थे और यह सोचते थे कि न तो ये पहले वफादार रहे हैं न महारानी के सत्ता संभालने के बाद रह सकते हैं!
पूरी पुस्तक इसी का दृष्टान्त प्रस्तुत करती थी परन्तु हंटर ने इसे चतुराई से यह जताते हुए कि उनकी जो दुर्गति हुई है वह हुई तो उनकी गलती के कारण है या ऐतिहासिक अपरिहार्यताओं के कारण है, यह दिखाया था कि इसके चलते मुसलमानों की दश्ाा बहुत खराब होती चली गई है। इसका लाभ हिन्दू उठाते रहे हैं । जब तक ऐसी परिस्थिति बनी रहेगी तब तक वे क्षुब्ध रहेंगे और प्रशासन के लिए समस्यायें खड़ी करते रहेंगे। हम उनसे वफादारी की आशा कर ही नहीं सकते। प्रजावत्सल प्रशासन के दायित्व का निर्वाह करते हुए सरकार को उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए, उनकी भलाई के लिए उचित उपाय करना चाहिए।
परन्तु इसके साथ ही मुसलमानों पर यह दबाव था कि जब तक तुम हिन्दुओं की तरह आधुनिक शिक्षा प्राप्त नहीं करते, तब तक तुम हमारे किसी काम के नहीं हो, इसलिए हम तुम्हारी मदद करना भी चाहें तो कैसे कर सकते हैं।
यह सचाई के बहुत करीब था और इस सचाई को सिरजने में अंग्रेजों का हाथ था। अपनी परंपरावादी सोच, धार्मिक जुनून के कारण मुसलमान अपना भला कम कर सके, अपने दुश्मनों के काम लगातार आते रहे हैं जो उनके जनून को उभार कर उनका इस्तेमाल करते रहे, फिर अपने लिए असुविधानक पाकर उनको प्रताड़ित करके उनके सामने दो ही विकल्प छोड़ते रहे हैं, या तो बन्दा बन जा, या बर्वादी के लिए तैयार हो।
कारण आवेग की प्रखरता होने पर अक्ल और सूझ-बूझ से काम लेना भी उस आवेग का अपमान प्रतीत होता है, इसलिए किसी भी आवेग की प्रखरता होने पर, घृणा नहीं, वह प्रेम के आवेग की उत्कटता हो तो भी, बुद्धि उस आवेग के नियन्त्रण में चेरी की तरह काम करती है, अध्यापिका के रूप में नहीं। ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, काम, क्रोध, लोभ, भीति, मोह सभी के प्रबल होने पर यही होता है। दिमाग है पर शैतान के कब्जे में, पर यह शैतान जिसे अक्सर भूत कहा जाता है, आवेग की इस प्रखरता में कहा जाता है कि उसके सिर पर भूत सवार है, उसमें यह भुला दिया जाता है कि भूत मन्त्र से उतारा जाता है। आवेग के अन्धे लोगों का उपयोग अपने मन और बुद्धि को संतुलित रखने वाले कर ले जाते हैं और वे इनको अपनी ओर से उत्तेजित करते हुए उनका हितैषी बन कर भी उनका सत्यानाश कर सकते हैं।
इतिहास गवाह है, लगातार ऐसा होता आया है।
अंग्रेजों ने मुसलमानों के साथ यही किया। अमेरिकी यही कर रहे हैं। यह अब तक समझ में आ जाना चाहिए। पर यह समझना जरूरी है कि उन्होंने वहाबी सैयद अहमद का उपयोग उसकी धर्मान्धता को उभार कर किया और सर सैयद अहमद का उपयोग उनमें रईसों के दिन लदने के दृष्टांत देते हुए उनके मन में आश्ांका और दहशत को उभार कर और उनका हमदर्द बन कर किया। शिकार तो दोनों बने, इसका कुछ अधिक दायित्व सर सैयद पर आता है, परन्तु जहां सर सैयद गलत लगते हैं वहां वे गलत हैं क्या?
परिणामों से किसी महान पुरुष का मूल्यांकन किया जा सकता है क्या जब कि हम जानते हैं कि अतीत में बहुविदों ने अधिक मूर्खताएं की हैं और अल्पज्ञों ने अनुकरणीय प्रबन्ध किए और शासक के रूप में अधिक सफल रहे।
यह अन्तर ज्ञान और अज्ञान का नहीं अपितु ज्ञान के भिन्न स्तरों का है। एक प्रतिभाशाली था जिसे शिक्षा का अवसर मिला, उसने किताबें पढ़ीं और किताबों के ज्ञान का अपने समय की समस्याओं का समाधान करने के लिए उपयोग किया और फेल कर गया क्योंकि वे समाधान जिस देश, काल और परिवेश के लिए थे वे उसके वर्तमान से अनमेल थे इसलिए उस पर घटित नहीं हो सकते थे।
दूसरी ओर वे प्रतिभाएं थीं जिनको शिक्षा का अवसर नहीं मिला, वे अपने ढंग से अपनी और अपने समय की समस्याओं से दो चार होते रहे । उन्हें शिक्षा भी मिली होती और ऐसी शिक्षा मिली होती जिसमें वे पुस्तकीय ज्ञान के अनुपात में अपने समय के यथार्थ से कटते न गए होते तो, सबसे कल्याणकारी समाधान सुशिक्षित और और जमीन से जुड़े लोगों के द्वारा ही मिल सकते थ।
इसे हम ज्ञानदंभ या ज्ञानान्धता के रूप में देख और समझ सकें तो हमारी समझ में यह आएगा कि अभी तो हम भारत को ही नहीं जानते हैं। दूसरों के अपने हितों और आग्रहों से प्रेरित परिभाषाओं से निर्मित भारत को जानते हैं। हम अपने आप को नहीं जानते, जब कि मनोविज्ञान और आत्मज्ञान की भारतीय उपलब्धियों के सम्मुख आधुनिक (पश्चिमी) मनोविज्ञान उतना ही पीछे है जितना पश्चिमी भाषाविज्ञान भारतीय भाषा दार्षनिकों से पीछे था। समस्या कई दृष्टियों से जटिल हो गई है इसलिए हम सर सैयद को आगे कई कोणों से समझने का प्रयत्न करेंगे।