आक्रमण के हथियार बदल गये हैं-9
इसी थ्योरी का उपयोग करके अंग्रेजों ने कांग्रेस में लीडर शिप खड़ी की।वे दूरदर्शी योजनाओ के साथ अपने स्वार्थ-पूर्ण कारोबारी हितों के मद्देनजर यह सब करते थे। समझ गए न कुएं में भांग कहाँ से आई।यह लोकतंत्र का सबसे घातक शस्त्र है।
आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-9
हॉवी होने की तकनीक:मशीनरी और पालिसियाँ।
यह घटना19 वीं शताब्दी के प्रारंभ की बात है। पूरब में किसान लगान की समस्या से जूझ रहे थे।उन दिनों बाबा राघवदास किसानों के सबसे बड़े नेता थे।उनके एक इशारे पर 2 लाख लोग तक इकट्ठे हो जाते।उन्होंने एक बहुत बड़ा आंदोलन किया। जिसमें पूरे पूर्वी भारत के किसान आए थे। गोरखपुर से लेकर पटना तक हिला कर रख दिया था।पता है। आंदोलन कई हफ्ते तक चला।उनसे किसी जिले का कलेक्टर तक बात करने नहीं गया। उस समय के 2-3 छोटे अखबारों में उस बड़े आंदोलन का जिक्र था।तत्कालीन कई बुजुर्ग जो थोड़े पढ़े-लिखे थे उनकी डायरियों-किताबो में उस घटना का जिक्र है।वह एक अल्पज्ञात से नेता बनकर रह गए।सहजानन्द जी भी ऐसे ही एक प्रभावी नेता थे।
उसके कुछ दिनों बाद महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका से पूर्वी चंपारण में आए।वहां उन्होंने नीलहा आंदोलन किया। किसानों को लेकर एक छोटा सा आंदोलन था।धीरे-धीरे खड़ा किया।यह कोई खास आंदोलन नहीं था।इसमें से सौ-दो सौ किसान व् आसपास के छोटे-मोटे कांग्रेसी नेता भी शामिल थे।कहाँ वकालत,...अफ्रीका,...मुबई,...कांग्रेस...कहाँ चम्पारण!!झोल ही झोल।लेकिन इस आंदोलन को प्रति जिला कलेक्टर से लेकर तत्कालीन वॉइसराय सभी ऐक्टिव हो गए।जैसे अप्रत्यक्ष समर्थन हो।उनको बुलाकर बात की गयी-बड़ी बैठक,आन-बान के साथ फोटो छपा।देश की जनता के बीच मैसेज चला गया इनकी सुनी जाती है । बन गए बड़का नेता।अंग्रेजी-अखबारों और बाद के इतिहासकारो ने खूब बढ़ा-चढ़ाकर लिखा। गांधीजी को लेकर अंग्रेज-मशीनरी,उनके अखबारों ने,अन्य प्रभावी चैनलों ने(खुद ही समझिये) और गवर्नमेंट मशीनरी ने 'इस्टैब्लिशमेंट थ्योरी, का उपयोग किया।बाद में गांधी जी देश के निर्णायक व्यक्तित्व में बदल गए ।धीरे-धीरे पार्टी पर भी कब्जा हो ही गया।वे जिसे जो बनाना चाहते थे बनाते थे।जिसे छोटा करना चाहते उनहे तरकीब आती थी।
   क्रमशः उन्होंने सारे
 राष्टवादी-नेतृत्व को कांग्रेस से बाहर कर दिया,जिन्ना को भी।, यह होती है
 गवर्नमेंट मशीनरी की शक्ति।अंग्रेजों को आता था कि किसको लीडरशिप 
देनी/पकड़ानी है।उन्होंने उसी तरह व्यवहार भी किया।मालवीय जी, तिलक,सुभाष 
चंद्र बोस,कभी अंग्रेजी रणनीति के चलते देश के नेता नहीं बनने दिए गए। 
क्योंकि अंग्रेज नही चाहता था की जन-मशीनरी उसके दायरे से निकल 
जाए।मॉस-कम्युनिकेशन में लीडरशिप-हस्तांतरण थ्योरी,इमेज बिल्डिंग थ्योरी,और
 पी-आर बेस,तथा फोकस एडवर्टाइजिंग सिस्टम का गजब इस्तेमाल है।बेचारे 
लाल-बाल-पाल-तिलक-मालवीय जी!
 (जानबूझ कर इतिहास रचना में नही घुस 
रहा।खुद ही समझ लें।आधुनिक इतिहास के बहुत सारे फंडाज बदल जाएंगे।मेरे पास 
कुछ तथ्य और प्रमाण मौजूद हैं।फिलहाल विषय केन्द्रित रहता हूं)
   यह
 तो भी होता है कि अगर जिले का कलेक्टर,एसपी,प्रशासनिक अधिकारी,आदि किसी को
 ख़ास महत्त्व देने लगे और यह मैसेज लोगो में चला जाये कि इसके द्वारा काम 
हो जाते हैं।वह स्वयं बड़ा ताकतवर आदमी में बदल जाता है।आम लोग उसके साथ 
खड़े होना शुरु हो जाते हैं।वह विधायक-मंत्री ,भी बन जाता है।ऑफिस की 
पॉलिटिक्स के जानकारों को पता होता है।ख़ास लोगो को ख़ास काम देकर कैसे ख़ास 
कैसे बना दिया जाता है।भले ही वह कोई छोटा कर्मचारी ही क्यों न हो अगर वह 
बिग-बॉस का करीबी है तो वह सब कंट्रोल कर लेता है।इसी थ्योरी का उपयोग करके
 अंग्रेजों ने कांग्रेस में लीडर शिप खड़ी की।वे दूरदर्शी योजनाओ के साथ 
अपने स्वार्थ-पूर्ण कारोबारी हितों के मद्देनजर यह सब करते थे।
 समझ गए न
 कुएं में भांग कहाँ से आई।यह लोकतंत्र का सबसे घातक शस्त्र है।सनातन समाज 
इस नये हथियार समझने में नाकामयाब रहा।फलस्वरूप कीमत तो चुकायेगा ही न।
    सड़क,बिजली,पानी,नदियां,अस्पताल,छोटे नए नगर,बड़े डैम,इधर के सत्तर 
सालों में हुई योजनाओं के नाम एक घराने के लोगो के नाम पर रखे गए है।आपने 
देखा होगा कि नेहरु नगर,नेहरु स्कूल,नेहरु वाटिका,गांधी स्कूल गांधी विहार,
 गांधी बन, गांधी जंगल।सब कुछ जवाहर,इंदिरा,राजीव गांधी और उनके नाम पर 
है।एक धमाके से लगातार इतिहास पर कब्जा।इसके पीछे एक रणनीति काम कर रही 
होती है।इमेज बिल्डिंग,महिमा मंडन थ्योरी,गरिमा-मंडन सामंती सिद्धांत काम 
करता है।वह बड़ी तेजी से जनता के बीच में फैलाते हैं कि बस यही घर,एक ही 
महान है,उद्धारक है,ईश्वर वही द्वितीयो नास्ति।।।दुनियां जानती है
 यह राजशाही नहीं है,लोकतंत्र है।
 इस लोकतंत्र में भी वह दिमाग पर घुस जाना चाहते हैं। राजशाही जैसा,सामंत 
जैसा, वह दिमाग के हर हिस्से में मौजूद होकर सदा-सदा के लिए अपनी राजसत्ता 
को घुसा देना चाहते हैं।यही स्ट्रैटजी है विश्वास करिये यह सबसे सटीक तरह 
से काम करती है।ऐसे तरीके से लंबे समय तक के लिए सत्ता पर काबिज रहा जा 
सकता है।यह केवल 70 साल तक सत्ता ही नहीं आपके चिरंतर-प्राचीन-कालीन सोच 
को,पूर्ण स्वतंत्रता की सोच को,आध्यात्मिकता और उच्चतर ज्ञान नष्ट करने की 
क्षमता भी रखती है।
    आज वही होता है।वह काम अब मीडिया-सिनेमा,और लेखन
 करता है।बाकायदे इमेज बिल्डिंग करके मीडिया पर्सनालिटी तैयार किये जाते 
है।कद बढ़ाने के हजारो मशीनरिया काम करती है।एडवर्टाइजिंग 
कम्पनी,पीआरएजेंसी, इमेजबिल्डिंग ग्रुप  वह तो बेचारे होते हैं।चन्द पैसो 
के मोहताज प्रोफेशनल।
 छुपे-रुस्तमो को जानेंगे तो आँखे फ़ैल जाएंगी।
 इस मशीनरी का उपयोग करके बाकायदे किसी देश-समाज के 'मेंटर,बड़े लोग..हैवी 
पर्सनालिटी, सिनेमा के हीरो,अर्थशास्त्री,विभिन्न विषयों के विद्वान्,नेता 
उनके द्वारा ऐसे ही तैयार किये जाते हैं।वे थोप देते हैं।हम भीड़ बनकर 
उन्हें बड़ा मान लेते हैं।मेरा एक दोस्त जो है वह कहता है कि ""यह 
जीडीपी,एसडीपी,आंकड़े,विकासदर,आदि केवल एक धोखा होती है।जो जनता के दिमाग पर
 हॉवी होने के लिए की जाती है।,वे बड़े बाबूओ की फ़ाइल जैसी दिखावा होती 
हैं।थोड़ा स्पेशल दिखने के लिए,कन्फ्यूज करने के लिए।जब समस्याये बड़ी होती 
है।तो तार्किक दिखने के लिए कुछ करना होता है।और इसी तरह की बौद्धिक जुगाली
 करके कुछ लोग ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं।वे भी समय के साथ ओपीनियन मेकर बन
 जाते हैं। अर्थशास्त्र पढ़ लेने के बाद अब कभी-कभी मुझे भी लगता है वह ठीक 
कहता था।शायद इनका जन-सामान्य से कोई लेना-देना नही होता।यह केवल बरगलाने 
के लिए होते है।
हमारे देश की बड़ी अबोध हिन्दू जनता भीड़ बनकर उनके चतुर-खेल का हिस्सा/शिकार बन जाती है।बिना जाने-बिना समझे उनको कद्दावर बनाने में लग जाती है जो साधारण से भी अति साधारण,मेधा-क्षमता और व्यक्तित्व के है।हम पर पिछले 125 साल से इस हथियार का इस्तेमाल बढ़ता गया है।
खुद व्यक्तित्व-हीनता,काम्प्लेक्स के शिकार इंडियन ही है वे आपकी सनातन पर्सनालिटी,बदल रहे हैं।वे बौद्धिकता के नाम पर आपमें नकारात्मक रूप से भावनात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे है जो देश,समाज,लोगो की पहचान, पर एक तरह का हमला है।बेसिकली थोड़ा अलग दिखने की चाह ने उन्हें ट्रैप में डाल दिया है।नामो की लिस्ट खुद बनाइये।
  आप अध्ययन करिये!
 आपको कहीं ऐसा नही दिखेगा। किसी भी देश में,इस्लाम में क्रिश्चियन 
में,अन्य समुदाय में,मजहब में कि उसके 'ओपिनियन 
मेंकर,(मीडिया-पर्सनैलिटीज)खुलेआम दूसरी विचारधारा वाले हों।खुलेआम विरोधी 
विचारधारा रखते हो। ऐनालिस्ट होना अलग बात है। पर विरोध के लिए विरोधी होना
 आश्चर्यजननक है।
 केवल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हर चीज का क्रिटिक 
होना,हर चीज की निंदा करना, अपनी हर चीज को बुरी बताना,अपने राष्ट्र की हर 
बात में कमियां निकालने वाला ऐसा ओपिनियन मेंकर क्लास पूरे वर्ल्ड में नहीं
 है।
 रिऐक्शन न मिलने की वजह से ऐसा हुआ।
 स्वाभिमान का अभाव और आत्मकुंठा
 शिक्षा,इतिहासलेखन और पाठ्यक्रमो की वजह से उपजा।हमको प्रयासपूर्वक इन के 
चंगुल से निकलने का प्रयास करना होगा।क्योंकि मॉडर्निटी, 
आधुनिकता,स्मार्टनेस,लिबर्टी के नाम पर गलैमर पोजीशन में पहुंचे लोग आपको 
केवल धोखा दे रहे हैं।वह एकदम आपके खुले शत्रु की तरह हैं। शत्रुओं के 
हथियार की तरह है जो आर्थिक,सामाजिक,राजनीतिक,भौगोलिक और आध्यात्मिक रूप से
 लगातार नुकसान पहुंचा रहा है।
      एक और बानगी देखिये हमारे यहां 
बगल में एक एनजीओ बाज रहते हैं।सेवा क्या करेंगे।,हां, उनका काम है कि 
थोड़े-मोटे, इधर-उधर से कर कराके थोड़ा बहुत नौटंकी करते रहना।बातो की 
जुगाली के गजब माहिर थे।किसी कालेज में कमतुनिष्टो के सम्पर्क में थे तो 
सनातन-जीवन पद्दति का भरपूर छिद्रान्वेषण भी सीख ही गये।हां इस्लाम और 
ईसाइयत उनकी निगाह में उच्च-वर्ग है।ऐसे लोग अपना धर्मांतरण भी नही 
करते।इससे बुराई का वेटेज बना रहे।सभी कम्युनिष्टों की तरह जुगाड़ के माहिर 
है।किसी तरह मुख्यमंत्री तक पहुंच गए।कुछ साल पहले की बात है,एक दिन घोषणा 
हुई कि साहब-बहादुर नामी 'मैग्सेसे अवार्ड,दिया जा रहा है।किस लिए? पूरा 
शहर भौचक! सेवा के लिए!
 राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलने के लिए सबसे 
इंपोर्टेंट आदमी हो गया।जगह-जगह उनके बयान छपा करते हैं।और बुद्धिजीवी वर्ग
 में गिने जाने लगे। और महान सेवक के रूप में मान्यता प्राप्त हो गए वह अलग
 से।एक सज्जन तो सीएम हो गए।
    आप देखते होंगे कि इस तरह के बहुत से 
लोगों के 'कद,बाकायदा एक मंशा के साथ बढाया जाता है।वह प्रकाशित होते 
हैं।छपने लगते है।महिमा-मंडन,प्रोत्साहन-हतोत्साहन के हथकंडे के सहारे वह 
चमकदार व्यक्तित्व की पोजीशन में पहुँचा दिए जाते हैं।बाद में उनका काम 
होता है हिन्दुओ की बुराई,सनातन की निंदा,राष्ट्र के प्रतीक चिन्हों का 
विरोध, फर्जी सेकुलरिज्म को बढ़ाना।
  अमूमन इस तरह के विदेशो मे स्थापित
 पुरष्कारो के पीछे सरकारें होती हैं,उसके पीछे कुछ कुछ बड़े एनजीओ होते 
हैं,कारपोरल होती हैं,वामी पार्टियां होती हैं,इसाई मिशनरियां,मुस्लिम लाबी
 और देश होते हैं।
 कुछ अवार्ड तो इसी देश में हैं।कुछ फिलीपींस जैसे 
छोटे-छोटे देशो में है।कुछ यूरोप में है।विशेषकर लन्दन में।कुछ अमेरिका में
 हैं। विदेशी अवॉर्डों के नाम पर मोटी रकम आवा-जाही करती 
हैबूकर,मैग्सेसे,ग्रेमी,नोबल,ग्लोब,मिस वर्ल्ड आदि-आदि।
 तरह-तरह की 
प्रतियोगिताएं भी भारत में असंवैधानिक तरीके से बहुत से नकारात्मकता से भरे
 लोगों का कद बढ़ाने का काम करती हैं।एकदम साफ साफ दिखता है कि एक निश्चित 
उद्देश्य से इन लोगों को समाज के ऊपर लाकर के इस स्टैब्लिश किया जाता है।
  उसके पीछे सरकारी मशीनरी के अलावा मीडिया के कुछ मठपति भी है।वे एक सरगना
 जैसा काम करते है। पूरी गिरोह सक्रिय होकर काम करती है कि 'भारतीय 
राष्ट्र-चेतना,को पिछड़ा बताने वाले लोग आयातित होते रहे।यह एक सोचा-समझा 
गणित है 'स्पेशफिक टाइप, लोगों को भारतीय समाज के ऊपर थोपे रखना है।वे पूरी
 कोशिश करके हिंदू समाज के अंदर से नेतृत्त्व नही आने देना चाहते।थाट 
लीडर,प्रबन्धक नही।
    कुछ अर्थशास्त्री,कुछ समाजशास्त्री,साहित्य कार,
 मनोवैज्ञानिक,इतिहासकार,शिक्षा-विद,सेफोलॉजिस्ट,स्वघोषित-वैज्ञानिक,तमाम 
तरह के विशेषज्ञ,टेलीविजन पर आते समय देखा होगा आपने।टीवी पर आ रहे
 
जप-तप-पूजा-पाठ,अर्घ्य-अभिषेक,धर्म-कर्म,योग,साधना-तपस्या से दूर-दूर तक 
सम्बन्ध न रखने वाले तमाम साधु-सन्त-धर्माधिकारी सब एक प्रकार के वैपन ही 
है आपके पुरखो की संस्कृति के खिलाफ।नाम खुद खोजिये।पहचानिये यह स्टैब्लिश 
किये जा रहे।देखते ही चैनल चेंज या बन्द करिये।इनका एक ही इलाज है इन्हें 
पूरी तरह नकार देना।
     फिल्मे,मीडिया,चैनल,न्यूज़पेपर, मैगजीन,
 सीरियल,अन्य प्रोग्राम,बहुत सारे गीत-संगीत के कार्यक्रम,ऑडीशन,न्यूज-टाक,बहस,
 किताबें, तमाम तरह के प्रोविशनल प्रोग्राम, सेमिनार,वर्कशाप यह सब के सब 
'मीडिया-पर्सनालिटी,तैयार करने का कारखाना बन चुके हैं।आपको उस सम्मोहन से 
निकलकर यह समझना होगा की एक नया आदमी,एक ऐसा आदमी जो केवल आपके 
समाज,धर्म,संस्कृति, पूर्वजों के  खिलाफ लगातार बोल रहा है,उसको सुन क्यों 
रहे हैं??
 इस देश की इतनी बड़ी संख्या के लिए वह इतना ख़ास कैसे बन गया कि उसे सुनाया जा रहा??
 क्या सुनना आवश्यक है??
  नही।उसे थोपा गया है।वह बतौर एक इंस्टूमेंट यूज किया जा रहा है।आपके विचारों को बदलने के लिए।
 सारे माध्यमों(मॉस-कम्युनिकेशन-संचार प्रणाली-मीडिया) पर वह काबिज है।उनका
 यही काम बन चुका है कि वह हमारे लिए ऐसे व्यक्ति तैयार करें जो हमारे 
ब्रेन को वाश करने का काम करे।उनका टारगेट क्या है, वह बार बार ऐसा क्यों 
करता है?
  सोचेंगे तो आपको समझ में आएगा कि सब कुछ आपके पूर्वजों के 
थाती के खिलाफ है। यह एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।यह 
धीरे-धीरे आप को नष्ट करता जा रहा है।बहुत साफ-साफ समझ जाइये हथियार बदल 
चुके हैं, बचाव की रणनीतियां भी बदलनी होंगी...।
(आगे पढ़िए 'हथियार बदल गए हैं-कारोबारी हमला 10,)
