हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास-26
हिन्दू समाज के धार्मिक नेताओं में कुछ को इस बात की चिन्ता रही है कि इसका कोई ऐसा मंच नहीं है जिससे पूरे समाज को जोड़ा जा सके। उन्होंने संश्लिष्ट् संस्कृति (जिसे कंपोजिट कल्चर कहें तो कुछ लोग अधिक आसानी से समझ सकेंगे) की दुर्बलता को समझा ..
हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास - 26
सामुदायिक एकजुटता के लिए संगठन का होना जरूरी है। संगठित समाज या इकाइयों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अच्छा या बुरा जो भी निर्णय हो, पूरे समुदाय या कहें दायाद की ऊर्जा उसी दिशा में प्रवाहित होती है। इस तरह का संगठन कबीलाई अवशेष है और इसका विकसित समाजों या अवस्थाओं से मेल नहीं बैठता। हमारी जातियों में, उनकी बिरादरी पंचायतों में आज भी इनका नमूना देखा जा सकता है।
हिन्दू समाज के धार्मिक नेताओं में कुछ को इस बात की चिन्ता रही है कि इसका कोई ऐसा मंच नहीं है जिससे पूरे समाज को जोड़ा जा सके। उन्होंने संश्लिष्ट् संस्कृति (जिसे कंपोजिट कल्चर कहें तो कुछ लोग अधिक आसानी से समझ सकेंगे) की दुर्बलता को समझा या कहें इसकी शक्ति को दुर्बलता मान लिया, पर यह नहीं देखा कि संगठित इकाइयों की अपनी कमजोरियां अधिक खेदजनक हैं और ये उनके आगे बढ़ने में रुकावट पैदा करती हैं।
हमने बहुत पहले अपनी एक पोस्टं में यह सुझाया था कि इस इकहरेपन के कारण ही यदि किसी खूंखार से खूंखार कबीले में किसी भी तरह से बदलाव आता है तो पूरा कबीला बदल जाता है। हूणों, शकों, किरगीजों, मंगोलों जैसे आतंककारी समाजों में भी जब इस्लाम का प्रवेश हुआ तो बहुत कम समय में ही पूरा का पूरा क्षेत्र धर्मान्तरित हो गया और उनकी क्रूरताओं का भी इस्लाम में अन्तरण हो गया।
हमारे अपने देश में यदि किसी पेशे या जाति के लोगों ने धर्मान्तरण का निर्णय किया तो पूरी की पूरी जाति, उपजाति या उस पेशे से जुड़े लोग धर्मान्तरित हो गए जैसा हम जोगियों, नटो, बुनकरों, रंगरेजों आदि के मामले में देख आए हैं।
यहां इसका स्मरण इसलिए आया कि इस केन्द्रीयता के कारण ही सैयद अहमद बहुत थोड़े समय में वहाबी मत से मुसलमानों को जोड़ने में ही सफल नहीं हुआ, बल्कि उसकी उपयोगिता को पहचान कर उसके माध्यम से अंग्रेजों ने पूरे वहाबी समुदाय का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेेमाल कर लिया। आज भी उनका वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाता है, भले इससे उनके समाज का कोई भला हो या नहीं, नेतृत्व करने या समाज को प्रभावित करने वाले व्यक्ति का अपना भला तो होता ही है। ठीक इसी कारण और इसी तरह हिन्दू समाज की जातियों और उपजातियों का वोटबैंक के रूप में इस्ते माल कर लिया जाता है।
ब्रिटिश कूट विदों ने यह जानते हुए कि सैयद
अहमद का प्रभाव पश्चिमी भारत में उसके नशे के जाल के चलते रहा है और रणजीत
सिंह की कठोरता के कारण उसका कारोबार बन्द हो गया था, इसलिए उसके द्वारा
संगठित मुस्लिम शक्ति का उपयोग रणजीत सिंह के खिलाफ किया जा सकता है। जिहाद
नशे के कारोबार के आधार पर तो संभव नहीं था, परन्तु रणजीत सिंह ने अपने
राज्य में गोवध पर भी रोक लगा दी थी और इसको आधार बना कर मुसलमानों को
धर्मयुद्ध के लिए उकसाया जा सकता है। रणजीत सिंह से अंग्रेजों के आशंकित
रहने का कारण हम पहले बता चुके हैं। यह बात कंपनी शासित क्षेत्र में
मुसलमानों को धर्मयुद्ध करने लिए लोगों को लामबन्द करने, उनके लिए धन की
व्यवस्था करने की जो छूट मिली थी, जिसका उल्लेेख हंटर ने सहमे हुए ढंग से
किया है मानो यह सब कुछ हो रहा था और अंग्रेज इससे घबराए हुए थे और उनके
सामने बेबस अनुभव कर रहे थे, उसका खुलासा सर सैयद ने अपनी समीक्षा में किया
है:
Now we have seen how recruits and money were forwarded from
Patna and other parts of Bengal, and India generally, during the three
first periods of frontier Wahabi history; but I think it is very evident
that not a man of these was intended or used for an attack on British
India, nor was there the slightest grounds for supposing,
during these three periods, that there was a rebellious spirit growing up amongst the general Mohammedan public in India.
उनकी अपनी नजर में सिक्खों के खिलाफ वहाबियों का उपद्रव मुसलमानों के
प्रति सिक्खों के अत्याचार के कारण था। अत्याचार का अन्य कोई कारण सर सैयद
ने नहीं दिया है इसलिए हम मान सकते हैं कि उनकी नजर में गोवध पर प्रतिबन्ध
मुसलमानों पर अत्याचार था। अफीम और तंबाकू की तस्करी तो हो नहीं सकती थी
क्योंकि इसके आदी तो हिन्दू मुसलमान दोनों थे, और इसके आधार पर मुसलमानों
को उत्तेजित किया नहीं जा सकता था। मुसलमानों के मतान्तरण का या उनको अपने
मजहब के पालन के लिए किसी टैक्स आदि का सवाल नहीं उठता, इसलिए जब सर सैयद
अहमद मुसलमानों के प्रति सिक्खों की ज्यादती की बात करते हैं तो यही एक
मात्र कारण दिखाई देता है और इसका वह बिना नाम लिए समर्थन करते हैं:
We
have already seen, in the oppression of Mohammedans by the Sikhs, what
reason the former had for attacking the latter; but no reason has yet
been shown, either by Dr Hunter or by any one else, for this sudden
hatred to the British.
यहां याद दिला दें कि इससे पहले सिक्खों
द्वारा मुसलमानों के दमन का कोई प्रमाण सर सैयद ने नहीं दिया है सिवाय इसके
कि एक स्थल पर अपने बचाव में एक वहाबी ने किसी अंग्रेज के यह पूछने पर कि
यदि विधर्मी (वस्तुत: इनफिडिल या उस धर्म में विश्वास न करने वाले) होने के
कारण तुम सिक्खों के विरुद्ध विद्रोह करते हो तो हमारे प्रति क्यों
नहीं, जिसके जवाब में उसने कहा था कि अंग्रेज उनको उत्पी्डित नहीं करते
जिसका हवाला हम दे आए हैं। पर सिक्खों
के प्रति धर्मयुद्ध को वह जायज ठहराते लगते हैं:
(1) Wahabi jihad—represented by our author to have been one against
the British—was intended solely for the conquest of the Sikhs;
(2)
The summons issued by Syed Ahmad to the Mohammedans, in favour of a
jihad against the Sikhs, completely refutes it (jihad against the
British).
हमें ध्यान इस पर देना चाहिए कि सर सैयद को यह पता था कि मुसलमानों के अतिवादी जज्बात का उपयोग अंग्रेजों ने अपना काम साधने के लिए किया।, अर्थात् रणजीत सिंह पर सीधे हमला करने की जगह उनको परेशान करके अपने साथ समझौता करने को बाध्य करने के लिए उनकाे बलि का बकरा बनाया था। पर वह इसकाे कहने का साहस नहीं करते।
उन्हें यह भी पता था कि वहाबियों को धर्मयुद्ध के लिए उकसा कर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करने की उनकी जो योजना थी उसकी कीमत हिन्दुओं, कहें, सिखों को जितनी देनी पड़ी, वहाबी जिहादियों को उससे अधिक देनी पड़ी, इसका लाभ अंग्रेजों ने उठाया, परन्तु वह इसका संकेत तक नहीं करते हैं।
हंटर अपनी पुस्तदक
में पागलपन के इस उभार में वहाबियों के साथ बलूचिस्तान और अफगान कबीलों के
हिन्दुओं पर किए जाने वाले आक्रमणों का खुला विवरण देते हैं जो उस कटुता
को जीवन्त कर सकता है:
A fanatical war, of varying success, against
the Sikhs followed. Both sides massacred without mercy, and the bitter
hatred between the Muhammadan Crescenders and the Hindu Sikhs lives in a
hundred local traditions. Ranjit Singh strengthened his frontier by
several of the skillful generals whom the breaking up of Napolenic
armies had cast loose upon the world… The Muhammadans burst down from
time to time, burning and murdering wherever they went. On the other
hand, bold Sikhs villagers armed en masse, beat back the hill fanatics
into their mountains, and hunted them down like beasts. The fierce
passions of the time left behind a land tenure of a horrible nature – a
Tenure by Blood. The Hindu borders still display with pride a Grant for
their village lands on payment of a hundred heads of the Hussainkhel
tribes as a yearly grant.
सच कहें तो मध्य काल में ही नहीं, राजसत्ता को रास न आने वाली सचाइयों को खुल कर बयान करना उन्नीेसवीं शताब्दीा में भी सुरक्षित नहीं था, इसलिए ब्रितानी साजिश को भांपते हुए भी वह उसकी आलोचना न कर पाए होंगे । फिर भी उन दिनों ही इस पुस्तक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बांग्ला के कुछ अखबारों ने इसे सामाजिक कलह पैदा करने के इरादे से लिखी गई पु्स्तक करार दिया था और उनके संपादक हिन्दू थे जिनके प्रति हंटर का रवैया सर सैयद के अनुसार भी सहानुभूतिपूर्ण था।
हम मान सकते हैं कि सर सैयद दरबारी परंपरा में पले होने के कारण तेवर साफगोई का रखते हुए भी बहुत संभल कर अपनी बात करते और अपने समुदाय के लिए रियायते पाने की फिक्र में इस समीक्षा के दहाड़ते हुए शीर्षक के बाद भी दुहाई देते हुए प्रतीत होते हैं और उनके उन अत्यायचारों को भी चालू ढंग से, बिना अभियोग लगाए पेश करते हैं।
उदाहरण के लिए रणजीत
सिंह यह भांप कर कि उनके सीमान्तों से होने वाले उपद्रवों के पीछे
अंग्रेजों का हाथ है, उनसे संधि करने पर विवश होते हैं, अपने राज्य का कुछ
हिस्सा भी अंग्रेजों को सौंपनेेे को बाध्य होते हैं और इस बात पर राजी
होते हैं कि वह कंपनी के इलाके की ओर किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं करेंगे।
अपना मकसद पूरा हो जाने के साथ ही उन्हीं वहाबियों का समर्थन अंग्रेज छोड़
देते हैं, उन्हें मदद बंद हो जाती है। वे अब उन्हें अपने लिए भी खतरा
मानने लगते हैं, इसी के चलते सैयद अहमद मारा जाता है, दूसरे नेताओं को
सीमान्त छोड़ कर देश वापस आना पड़ता है और वहाबियों को अपने लिए संकट बनने
से रोकने के लिए अंग्रेज पटना में उन्हें फांसी की सजा भी दे देते हैं
परन्तु उसका भी जिक्र वह बड़े चालू ढंग से करते हैं:
They were the
two disciples of Hazrat Syed Ahmad Shaheed. When the Jehad of 1831 was
withdrawn, they retired to frontier. But the British government
persuaded them to come back to India to which they agreed and came back
to Patna. But the government suspected them of intriguing and the whole
Patna family was involved in it. Patna was declared as a centre of
anti-British activities and during 1867-70 five cases were instituted
against the Patna family in which many noted preachers were sentenced to
death.
इसके पीछे भावुक कौमों को उत्तेजित करके ऐसी विध्वंसक गतिविधियों में लगाना जिससे अपने शत्रुओं काे आजिज करके झुकाया जा सके और फिर उनको हिंसा का चस्का पड़ जाने के बाद अपने लिए भी खतरनाक मान कर उनको मिटाने की ठीक वही चाल अंग्रेजों ने कट्टरपंथी वहाबियों के साथ चली थी जो हमारे सामने उसी तरह की कट्टरता अरबों में उभार कर उनको तालिबानी बना कर उनका अफगानिस्ताान में इस्ते माल करके रूस को मात देने के बाद अमेरिकियों ने किया।
इस चाल की ओर न तो सैयद अहमद संकेत करते हैं न मेरी जानकारी के किसी दूसरे ने किया। परोक्ष रूप में वह स्वयं अंग्रेजी चाल के मुहरे बन जाते हैं । पर यह ध्यान दें कि सर सैयद अपने सम्मान के लिए अपनी जान जोखिम में डाल सकते थे, पर, अपनी समझ से, अपनी कौम के हित के लिए वह किसी सीमा तक झुकने के लिए तैयार थे । मुसलमानों के लिए अलग कौम का प्रयोग भी मेरी जानकारी में पहली बार उन्होंने ही किया।