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क्या पता, बारात में सभी आमंत्रित न हों ?

छत्रपति शिवाजी महाराज के एक बड़े प्रसिद्ध किस्से का यह हिस्सा है । आप इसे जानते ही होंगे, लेकिन यहाँ उसे दोहराने का मेरा कुछ हेतु होगा यह तो आप जानते ही हैं । इसीलिए केवल मुख्य बिन्दुओं को ही आप के संज्ञान में ला रहा हूँ, वो भी अनुक्रमांक दे कर । कृपया धैर्य रखें और साथ रहें ।

१ पुणे पर मुग़ल कब्जा हुआ था, शाइस्तेखान तो लाल महल में रह रहा था । सभी जगह चौकियाँ थी, कडा पहरा था । कुछ चुनिन्दा सैनिकों के एक छोटे दस्ते के साथ शिवाजी महाराज भेंस बदलकर एक बड़ी बारात में शामिल हुए । बाराती बन कर चौकियों से पार हुए और चुपचाप एक एक आदमी कट लिया ताकि किसी को कम होती संख्या झट से नजर न आए ।

२ एक तो यह इलाका उनका अपना ही था, चप्पे चप्पे, कोने कोने से परिचित थे । तिसपर भी मुगलों के आने से जो भी परिस्थितियाँ बदली थी उसकी भी जर्रा जर्रा जानकारी जासूसों से पाई गई थी । यह तो आप भी जानते ही होंगे कि वो कैसे लाल महल में घुसे, पहरेदारों को कैसे निपटाया । शाइस्तेखान की बीवी अगर प्रसंगवधान न दिखाती और दिया न बुझा देती तो वो मारा ही जाता । खिड़की से कूदकर भाग निकला तो छायापर अंदाज से किया वार उसकी उँगलियाँ ले गया । नसीब से ठीक कूद गया नहीं तो गिर कर मर भी सकता था, बच गया ।

३ अपना हेतु समाप्त देखकर शिवाजी महाराज भी भाग निकले । पूरी मुग़ल फौज से निपटने थोड़े ही आए थे । जिस तरह से पीछा करते मुगल फौजों को गुमराह किया वो भी अपने आप में मिसाल बन गया है । जब तक पूरी छावनी जागृत हो कर सक्रिय हो उसके पहले पैदल ही तय और सुरक्षित रास्ते से शहर के बाहर निकले थे, जहां घोड़े तैयार ही रखे थे ।

४ रास्ता वो चुना जहां बीच में एक दोराहा था । वहीं एक गाय - बैलों का झुंड भी था । उनके सींगों से मशालें बांध रखी थी । मशाले जलायी गई और उस झुंड को इनके विपरीत दिशा में हांक दिया गया । पीछा करती मुगल फौज दूर से मशालें देख कर उस दिशा में दौड़ पड़ी, दूसरे रास्ते से शिवाजी महाराज सुरक्षित मुकाम पर पहुँच गए ।

किस्सा समाप्त, अब मुद्दे पर आते हैं ।

एक पोस्ट लिखी थी, आप के घर की महिलाओं से आप की बातचीत कैसी है ? आप ने पढ़ी न हो तो कृपया पढ़ लीजिएगा, आप के घर की महिलाओं के साथ आप की बातचीत कैसी है? इस पोस्ट का प्रयोजन स्पष्ट होने लगेगा ।

हम गुरु होने का जब दंभ करते हैं तो एक बात भूल जाते हैं कि गुरु खुद अपनी ही विद्या से हराया जा सकता है । जो हम सिखाते हैं उस से खुद सीख लेते दिखते नहीं । यह भी नहीं समझते कि हमारी ही तरकीब हमींपर आजमाई जा रही है । यहाँ देखते हैं कैसे यह तरकीब से हमें मात दी जा रही है ।

१ बारात में भेंस बदलकर शामिल । आज समाज में सहजीवन सा है । हिन्दू का घर खुला है, सभी के लिए मुक्तद्वार था, और है भी । दादी परदादी म्लेच्छ को घर में लेने से इंकार करती थी, उनके बाद वो दीवार टूटी और पोती परपोती म्लेच्छ के यहाँ चली गई । लेकिन यह दीवार नहीं, बांध था । समुंदर की लहर अंदर घुसती है तो आप का कुछ खींच कर ले जाती है । आप के यहाँ ऐसा कुछ नहीं छोड़ती जिससे आप को लाभ हो । कुछ छोड़ा तो बहता हुआ कचरा या मर के सडती हुई मछलियाँ जो खाने योग्य नहीं । या कहीं पहले ही जो बह गए उनके शव ।

इसके विपरीत आप खुद ही देखिये कितनों के घर आप के लिए खुले हैं ? क्या आप कभी उनके एरिया में किसी के घर का पता ढूँढने गए हैं ? देखिये कभी, आप पाएंगे कि वहाँ के लोग बहुत ही आप के मदद के लिए तत्पर होते हैं । आप जरा ढूंढते से दिखे तो कोई न कोई आप से पूछेगा, चार लोग इकट्ठा होंगे और आप को कोई उस व्यक्ति के घर तक पहुंचा आयेगा और यह भी देखेगा कि आप का वहाँ स्वागत हुआ है या नहीं । बस इस बात को जरा यूं समझिए कि आप की मदद नहीं की जा रही बल्कि आप को खुद भटक कर कुछ भी देखने जानने का मौका नहीं दिया जा रहा । यह भी देखा जा रहा है कि वाकई आप का कोई परिचित है जिसको कल तलब किया जा सकता है अगर आप गलत आदमी लगे तो ।

उनकी स्वरक्षा को ले कर जो जागरूकता है वो जबर्दस्त होती है और एक परिच्छेद या पोस्ट में समेटा जाये इतना छोटा विषय नहीं है । बस इतना ही कहूँगा कि इतनी जागरूकता के पीछे असुरक्षितता की भावना होती है और यह भावना से वर्चस्व की भावना पोषित होती है कि जब हमारी सत्ता होगी तभी हम सुरक्षित होंगे । यह असुरक्षितता और वर्चस्व अंडा और मुर्गी का मामला है, एक दूसरे को जन्म देता रहता है ।

२ आज वे भले ही मन से देशनिष्ठा से अपनी विचारधारा को वरीयता देते हैं, लेकिन यहीं की पैदाइश हैं कई पीढ़ियों से । इलाका पता है, अपना ही है । बस उनका रहिवास जहां होता है वो पराया हो जाता है इस देश से, अपना हो कर भी । जानकारी तो जर्रे जर्रे की होती है, और फिर मोबाइल रिचार्ज की टपरियाँ, अंडे की होम डिलिवरी, पंचर के दुकान, और कुछ नहीं तो भिखारी, कब काम आएंगे?

३ और ४ जिस तरह शिवाजी महाराज भाग निकले थे उसी तरह सही सलामत पलायन के सभी रास्ते तो पता ही होते हैं । और जैसे उन्होने अपने रास्ते में दोराहे पर गाय बैलों का झुंड तैयार रखा था और उनके सींगों में मशाले बांध कर तैयार रखी थी (यह सब ऐन वक़्त पर नहीं हो सकता) उसी तरह मीडिया को तैयार रखा जाता है, पर्चे तैयार रखे जाते हैं, अभ्यासपूर्ण भाषण और विवेचन तैयार रहते हैं और टीवी पर बचाव के लिए well briefed एंकर भी जो अपने कर्णकर्कश काकस्वर में उच्चरव करते हैं - क्या ऐसे ही व्यक्ति को रवीश कहा जाता है ? जिज्ञासा है ।

मानवाधिकार वाले भी पूरे तैयारी से मुहिम को फतेह करने में जुटे रहते हैं ।
मुग़ल चौकन्ने रहते तो शिवाजी महाराज शायद मारे भी जाते । हिन्दू भारतीय होने के कारण शिवाजी महाराज के प्रति अत्यधिक आदर है, लेकिन चौकन्ने रहने की बात से हमें कुछ सीखना तो होगा ही । यह भी कहा जा सकता है कि मुग़ल सुस्त रहे क्यूंकि हम ही सुस्त थे और उन्होने हम में कभी भी चातुर्य, मुस्तैदी और हिम्मत नहीं पायी थी । शिवाजी महाराज उनके लिए एक surprise package थे कुछ हद तक इसलिए कामयाब हुए ।

बाकी इतिहास से हमारे शत्रुओं ने योग्य सीख ली और हमें ही सबक सीखा रहे हैं । और हम ? सबक रहने दीजिये, इतिहास भी सीखने में मानते नहीं । क्या आप ने यह सुना नहीं है कि हमें वर्तमान और भविष्य की ओर देखना है, इतिहास में रमे नहीं रहना है ? वैसे उनका तर्क सही है, और मैं उस से सहमत भी हूँ, लेकिन नतीजा यह होता है कि हम इतिहास सीखते भी नहीं है । इस बात को समझना होगा कि इतिहास सीखने और सीख लेने का विषय है, चिथड़े पहन कर पूर्वजों के रेशमी वस्त्रों के गुणगान करने का नहीं ।

आज हमारा घर, हमारा समाज लाल महल बना है और शाइस्तेखान वही सब तरीके आजमा रहा हैं जो उसे शिवाजी महाराज से सबक के तौर पर मिले थे । और हम हैं कि पलंग के सामने खड़े दुश्मन को देख कर बत्ती भी बुझाने की हमें सूझ नहीं ।

राम भरोसे दुनिया कब तक कायम रहेगी? एक बात दोहरा रहा हूँ - मुग़ल चौकन्ने रहते तो शिवाजी महाराज शायद मारे भी जाते । आज हम मुघलाए हैं । चौकन्ने होइए, चौकन्ने रहिए ।
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