हिन्दुत्व के प्रति घृणा का इतिहास-40
हिन्दूफोबिया ...... कंपनी के गवर्नर जनरल सर्व शक्ति सम्पन्न सीईओ थे जिनकी योग्यता का मानदंड यह था कि वे शेयर धारकों को कितना लाभ पहुंचा सकते हैं. यही काम कम्पनी के अमलों का था. यह पूरा जत्था एक गिरोह की तरह काम करता था...
हिंदुत्व के प्रति घृणा का इतिहास – 40
हिन्दूफोबिया
कंपनी के गवर्नर जनरल सर्व शक्ति सम्पन्न सीईओ थे जिनकी योग्यता का
मानदंड यह था कि वे शेयर धारकों को कितना लाभ पहुंचा सकते हैं. यही काम
कम्पनी के अमलों का था. यह पूरा जत्था एक गिरोह की तरह काम करता था. अधिक
से अधिक लूटकर कम्पनी के डाइरेक्टरों की नज़र में योग्य और अपनी नज़र में
राष्ट्रभक्त. जूलियस सीजर में सीजर की हत्या के बाद उसके त्याग और रोम के
लिए निष्ठां की याद दिलाते हुए Antony कहता है:
He hath brought many captives home to Rome
Whose ransoms did the general coffers fill:
यही उनका आदर्श था. यदि दूसरे देश के लोगों को बन्दी बनाकर गुलामों के रूप में बेचकर अपने देश को मालामाल कर सकते थे तो यह भी उनका महान त्याग था. यह उनके लिए गौरव की बात थी. भारत के लोगों के साथ वे क्या करते हैं इससे डाइरेक्टरों का कोई लेना देना न था. अतः जितनी आतुरता से उन्होंने भारत के आर्थिक ताने बने को नष्ट किया वह इतिहास का हिस्सा हैं. परन्तु यह काम उन्होंने ऐसे नाटकीय ढंग से किया की उद्योगधंधों के नष्ट होने का सबसे बुरा प्रभाव जिन शूद्रों पर पड़ा उनके मन में भी यह भ्रम है कि अंग्रेज न आये होते तो उनको सामाजिक न्याय न मिलता , वे जल्द चले गए इसलिए यह काम अधूरा रह गया. सौ दो सौ साल रह जाते तो यह काम पूरा हो गया होता जब कि मिजाज से वे इतने नस्लवादी थे कि वे अपने कुत्तों और घोड़ों तक की नस्ल का हिसाब रखते थे. रंगभेद के मामले में वे उतने ही आग्रही थे जितने छुआछूत के मामले में वर्णवादी ब्राह्मण .
परन्तु इस क्रूरता को भी उन्होंने इस तरह किया कि हिंदुओं में उची श्रेणी के लोगों को ही नहीं पिछड़ी जातियों को भी कुछ राहत अनुभव हुई. इनमें से एक था शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाना. संस्कृत और अरबी फ़ारसी की जगह बोलचाल की भाषाओं को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाना और सामाजिक व्यवहार में छूतछात से परहेज. पर सबसे बड़ी बात कि अन्याय भी कानून की आड़ लेकर करना जो मध्यकालीन निरंकुशता से मुक्ति का आभास देता था और इसलिए जिसका इस आधार पर विरोध किया जा सकता था जो मध्य काल में सम्भव न था. इसके साथ एक और काम उन्होंने यह किया कि कुलीनता की जगह उपयुक्तता को चयन का आधार बनाया और यह आशा जगाई कि सरकारी काम काज में किसी को भी योग्यता के आधार पर स्थान मिलेगा.
उनकी अपनी सुरक्षा की चिंता ही उस सीमित और दिखावटी मानवीयता और सदाशयता का चरित्र तय करती थी जिसे वे अपनी और से विज्ञापित करते थे. इसके चलते उन्होंने पहले मिशनरी गतिविधियों से शासन को अलग रखा और हिन्दू जीवन मूल्यों के उज्वल पक्षों की सराहना की और उसकी विकृतियों के लिए बाद की गिरावट को जिम्मेदार बताया. धार्मिक और सामाजिक हस्तक्षेप से बचते रहे. हिंदुओं को यह समझा कर लुभाया कि अब वे मुस्लिम स्वेच्छाचारी शासन से मुक्त हैं. अब पहली बार कानून का राज्य स्थापित हुआ है जिसमें कोई छोटा बड़ा नहीं है. इसी के साथ यह दिलासा भी कि भारतीयों को प्रशासन में हिस्सेदारी मिलेगी.
वे इस बात से अधिक चिंतित नहीं थे की गोरों की इतनी कम संख्या के बल पर वे भारत को नियंत्रण में नहीं रख सकते क्योंकि इससे कम संख्या के बल पर उन्होंने अपना राज कायम किया था और जो रियासतें उनके अधिकार में नहीं आई थीं उनके लिए संकट बने हुए थे.
उनके लिए संकट दो कारणों से पैदा हुआ था जिसकी गंभीरता का आकलन आरम्भ में नही हो सका. यह था पार्लमेंट के 1813 के चार्टर द्वारा पार्लमेंट के प्रति जवाबदेही, कानून सम्मत शासन के अपने ही आश्वासन के कारण सार्वजनिक आलोचना का विषय बनना और छापाखाने के साथ विचारों के प्रसार का हथियार भारतीयों के हाथ में भी आना.
किसी भारतीय भाषा में पत्रिका लिकालने में पहल तो सीरामपुर के फ्रेंच मिशनरियों ने की, संस्कृत पुस्तकों के अनुवाद प्रकाशित करने में भी वे अंग्रेजों से आगे रहे, पर भारतीयों में सबसे आगे राजा राममोहन रॉय ही रहे. यह जुटाया हुआ ज्ञान है इसलिए जहां से इसे लिया है उस ब्लॉग के ही शब्दों में जिसका शीर्षक ट्यूशन दिया हुआ था:
In 1818 Digdarshan was started as the
first Bengali weekly by Marshman from Srirampore.On December 4th 1821
Raja Ram Mohan Roy started Samvad Kaumudi.In 1822 he published a weekly
Mirat-ul-Akbar in Persian language. In 1837 Syed-ul-Akbhar a weekly in
Urdu was published. In 1838 Dilli Akbhar was published. In 1840 Hindu
Patriot was started by Harishchandra Mukherjee. In 1851 Gujarati
fortnightly Rust Goftar was started by Dadabhai Naroji.In 1862 Indian
Mirror was started .Initially the editor was Devendranath Tagore
followed by Keshavchandra Sen and Narendranath Sen.On 28th September
1861 Bombay Times, Bombay Standard, Bombay Courier and The Telegraph
merged together to form Times of India. Its editor was Robert Knight. It
was established by Carey, Ward and marshman in 1818.Initially it was
monthly but latter changed to weekly. In 1875 Statesman was started by
Robert Knight. In 1890 Statesman and Friend of India merged to become
Statesman. In 1865 Pioneer was started from Allahabad.On 20th September
1878, Hindu was started from Madras by G.Subramanium Aiyar as a
weekly.later it was made triweekly in Oct 1883 when Kusturiangar became
its editor. In 1889 it was made a daily.On 2nd January 1881 Kesari and
Mahratta was started by Lokmanya Tilak and Kelkar.
CensorAct 1799 by
Lord Wellesley : Every newspaper should print the names of printer,
editor and proprietor. Before printing any material it should be
submitted to the secretary of Censorship. This Act was abolished by
Hastings.
Licensing regulation Act 1823 by John Adam : Every
publisher should get a license from the government, defaulters would be
fined Rs 400 and the press would be ceased by the government. Government
has right to cancel the license. Charles Metcalf abolished the Act.
इससे पहले के पत्र पत्रिकाएं अंग्रेजों के द्वारा निकली गई थीं और
अंग्रेजी में थीं जिनमे भी सरकार की आलोचना होती थी और इसलिए पहला
प्रतिबन्ध उनके कारण हे लगा था. परन्तु उनका नज़रिया और आलोचना का आधार
भिन्न था.
In 1780 James Augustus Hicky started the first newspaper
weekly in India called Bengal Gazette .This paper attacked both Warren
Hastings and Chief Justice EImpey.In 1785 Madras Courier Weekly was
started. In 1790 Bombay Courier and in 1791 Bombay Gazette merged with
Bombay Herald in 1792.
तलवार खरीदी जा सकती है, पैसे के बल पर तलवारबाजों (भटों अर्थात जान पर खेलनेवाले भाड़े के योद्धाओं ) की फौज भरती की जा सकती है, जानकारी मोल ली जा सकती है, सूचना के आढतियों को भी बैगपाइपर बन कर पीछे कतार में लगाया जा सकता है, परन्तु विचार और विचारक को नहीं खरीदा जा सकता क्योंकि वह बिकाऊ मॉल नही होता. उसके साथ केवल उसका विवेक और अंतरात्मा होती है और कोई नही पर जब वह समझ में आ जाता है तो कई बार दुश्मन भी साथ हो जाते हैं.
स्वतंत्रता संग्राम १८८५ में कांग्रेस की स्थापना के साथ नहीं आरम्भ हुआ था. यह राजा राममोहन के साथ आरम्भ हुआ था.और यदि इसके भी पीछे जाएँ तो उस ध्रुव सिद्धांत का पता चलेगा की मृत्यु जन्म के साथ ही पैदा होती हैं, असंख्य छोटी मोटी व्याधियों और अशक्यताओं के रूप में दबोचने का प्रयत्न करती और जिजीविषा के हाथों हारती रहती हैं और एकदिन जिजीविषा पर विजय पा लेती हैं जिसे हम पहली बार पहचानते और जीवन का अंत या जिजीविषा का समाप्त हो जाना या मृत्यु कहते हैं.
कंपनी को अपने काम के लिए संचार की आवश्यकता थी. क्रेताऔर विक्रेता को एक दूसरे की भाषा समझने की जरुरत थी. उच्चारण दोनों का अपना रहा पर दोनों ने दूसरे की भाषा समझी. जब तक दोनों एक दूसरे की भाषा जानते रहे पैसा और मुनाफा दिशा निर्धारित करता रहा. जब एक ने सोचा हमें अपने मातहदों और प्रजा की भाषा सीखने की क्या जरुरत वहीं से पासा पलट गया. दूसरे के सूचना और ज्ञान में अधिक अधिकार से प्रवेश करने वाला उस पर भारी पड़ने लगा जिस को उसके द्वारा सुलभ कराई गई सूचना पर निर्भर करना था. कहें, स्वतन्त्रता का बीजारोपण भारतीयों के अंग्रेजी ज्ञान से ही आरम्भ हो गया था. राजा राम मोहन रॉय मैकाले की शिक्षा नीति की उपज नहीं थे, वह उस आंदोलन के जनक थे जिसमे मैकाले एक सीमित अर्थ में राजा राममोहन राय के कंधे से कंधा मिलाकर चले और मजाक यह कि भारत में रहते न मैकाले राममोहन राय से मिला न सम्भवतः १८३३ में इंग्लॅण्ड में चार्टर एक्ट के सशोधन पर अपना पक्ष रखने इंग्लैंड पहुंचे राममोहन राय मैकाले से मिले. अंग्रेज़ो की घबराहट भाषा और सूचना और प्रचार के औज़ारों से और अपनी एक सभ्य राष्ट्र की छवि की रक्षा की चिंता से पैदा हुई. पर आज हम उस पर बात नहीं कर सकते.